बकरीद के मद्देनजर उत्तर-प्रदेश में COVID-19 प्रतिबंध/नियमों में छूट देने को लेकर दाखिल याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ख़ारिज की

Update: 2020-08-01 05:54 GMT

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बुधवार (29 जुलाई) को एक जनहित याचिका का निस्तारण किया, जिसमें राज्य सरकार के दिनांक 12 जुलाई के दिशानिर्देशों में छूट देने की मांग की गयी थी।

दरअसल, ये दिशानिर्देश, COVID-19 महामारी के मद्देनजर राज्य में दो दिनों के लॉकडाउन (प्रत्येक शनिवार और रविवार को) का प्रावधान करता है। याचिकाकर्ता का कहना था कि 1 अगस्त शनिवार को बकरीद या ईद-अल-अजहा का त्योहार पड़ रहा है।

याचिकाकर्ता, डॉ. मोहम्मद अयूब ने यह दावा करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था कि प्रदेश में प्रत्येक शनिवार और रविवार को लागू होने वाला लॉकडाउन, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और 25 के तहत गारंटीकृत अधिकारों का उल्लंघन करता है।

न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और याचिका को खारिज करते हुए कहा,

"हम इस तरह की स्थिति में हैं, जहां लगाए गए प्रतिबंधों को न तो मनमाना या अनुचित दिखाया गया है, न ही दिशानिर्देशों के तहत निहित शर्तों में छूट देने करने का कोई कारण मिलता है।"

याचिकाकर्ता का मामला

याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष यह प्रस्तुत किया था कि 31.07.2020 को पड़ने वाले ईद-अल-अजहा के त्योहार पर कुर्बानी (बलिदान) अनिवार्य है। उन्होंने आगे कहा कि त्योहार वास्तव में शनिवार, 1 अगस्त, 2020 को है।

याचिकाकर्ता ने इसलिए अदालत से यह प्रार्थना की कि त्योहार के उक्त दिन कुरबानी के लिए राज्य सरकार के दिनांक 12.07.2020 के दिशानिर्देशों में छूट प्रदान की जाए, जो COVID-19 महामारी के मद्देनजर दो दिनों (हर शनिवार और रविवार को) के लॉकडाउन का प्रावधान करता है।

न्यायालय का अवलोकन

अदालत ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकार हमेशा संविधान में एक विशेषाधिकार प्राप्त स्थान का आनंद लेते हैं और सभ्य समाज में एक अद्वितीय स्थान पर कब्जा करते हैं। उन्हें पारलौकिक, अविभाज्य और आदिकालीन माना जाता है।

हालांकि, जैसा कि अदालत ने कहा, "भाग III के तहत मौलिक अधिकार एक पूर्ण प्रकृति के नहीं हैं और वे उचित प्रतिबंधों के अधीन हैं।"

अनुच्छेद 25 के सम्बन्ध में, जो सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार देता है, अदालत ने देखा कि "अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार, हालांकि, लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्नय तथा इस भाग (III) के अन्य उपबंधों के अधीन है।"

अदालत ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्नय के हित में उचित प्रतिबंध लगाने की शक्ति आवश्यक हो सकती है, बशर्ते कि लगाए गए प्रतिबंध अनुचित और मनमाने न हों।

गौरतलब है कि, पीठ ने आगे यह कहा कि

"अनुच्छेद 25 के अंतर्गत अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार, चूँकि लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्नय तथा इस भाग (III) के अन्य उपबंधों के अधीन है, इसलिए राज्य सरकार द्वारा COVID-19 महामारी के कारण बनी असाधारण स्थिति के दौरान सप्ताह में दो दिन के लिए तालाबंदी करने को लेकर लगाए गए प्रतिबंध याचिकाकर्ताओं या किसी भी धार्मिक समुदाय के सदस्यों के मौलिक अधिकारों का हनन करते हुए नहीं कहे जा सकते हैं।"

आगे अदालत ने कहा,

"याचिकाकर्ता के लिए पेश वकील हमारे सामने यह स्थापित करने में असमर्थ हैं कि किस तरह से याचिकाकर्ता या किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन, COVID-19 महामारी के प्रभाव में राज्य सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के संदर्भ में लगाए गए प्रतिबंध करते हैं, विशेष रूप से COVID-19 महामारी के इन अभूतपूर्व समय में, जो राज्य पर एक महत्वपूर्ण दायित्व रखता है जिससे उसके द्वारा अपने नागरिकों के स्वास्थ्य और जीवन को सुरक्षित करने के उपाय किए जा सकें।"

अंत में, न्यायालय ने वर्तमान याचिका में किसी भी प्रकार के जनहित के तत्व को नहीं पाया जिससे भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अदालत अपने असाधारण क्षेत्राधिकार का प्रयोग कर सके। रिट याचिका इस प्रकार विफल रही और तदनुसार खारिज कर दी गयी।

गौरतलब है कि मई के महीने में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ईद की नमाज अदा करने हेतु मस्जिद/ईदगाह खोलने की मांग को लेकर दायर याचिका को यह कहते हुए निपटा दिया था कि इस मांग के लिए याचिकाकर्ता को पहले सरकार से संपर्क करना चाहिए।

मामले का विवरण:

केस नं: जनहित याचिका (पीआईएल) संख्या – 749 ऑफ़ 2020

केस शीर्षक: डॉ. मोहम्मद अयूब बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 3 अन्य

कोरम: न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव 

आदेश की प्रति 



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