कलकत्ता हाईकोर्ट ने किया बड़ा फैसला: पीड़िता को सुने बिना दी गई POCSO आरोपी की जमानत निलंबित

Update: 2025-09-05 08:48 GMT

कलकत्ता हाईकोर्ट ने POCSO मामले में निचली अदालत द्वारा आरोपी को दी गई ज़मानत को निलंबित कर दिया है। अदालत ने पाया कि ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को ज़मानत देते समय पीड़िता/सूचना देने वाले को सुनवाई का अवसर नहीं दिया, जिससे भारतीय नागरिक सुरक्षा सहिंता (BNSS) 2023 की धारा 483(2) का उल्लंघन हुआ।

जस्टिस बिवास पटनायक ने अपने आदेश में कहा,

“इस मामले में निर्विवाद रूप से यह तथ्य है कि पीड़िता/सूचना देने वाले को आरोपी की ज़मानत अर्जी की जानकारी नहीं दी गई। परिणामस्वरूप उसके सुनवाई में भाग लेने के अधिकार का हनन हुआ है जबकि यह अधिकार क़ानून के तहत मान्यता प्राप्त है। ऐसी स्थिति में ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित ज़मानत आदेश न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।”

हाईकोर्ट ने 9 जून 2025 के ज़मानत आदेश को तीन सप्ताह के लिए निलंबित कर आरोपी को ट्रायल कोर्ट में आत्मसमर्पण करने और नई जमानत अर्जी दायर करने का निर्देश दिया।

पूरा मामला

मामले में याचिकाकर्ता ने दलील दी कि यौन अपराधों में पीड़िता को ज़मानत सुनवाई में शामिल होने का अवसर दिया जाना आवश्यक है। लेकिन ट्रायल कोर्ट ने यह अवसर दिए बिना ज़मानत मंज़ूर कर ली जो कानून के विपरीत है।

वहीं आरोपी की ओर से तर्क दिया गया कि ज़मानत आदेश को निरस्त करना और ज़मानत रद्द करना दो अलग अवधारणाएँ हैं। ज़मानत रद्द करने के लिए नए हालात जैसे सबूतों से छेड़छाड़, गवाहों को धमकाना आदि होने चाहिए।

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यहां मुख्य मुद्दा पीड़िता को सुनवाई में शामिल न करने का था जबकि BNSS की धारा 483(2) विशेष रूप से कहती है कि नाबालिगों से जुड़े यौन अपराधों के मामलों में ज़मानत सुनवाई के समय पीड़िता या उसका प्रतिनिधि मौजूद होना चाहिए।

हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट का आदेश निलंबित करते हुए आरोपी को निर्देश दिया कि वह तीन सप्ताह के भीतर पुनः ज़मानत के लिए आवेदन करे।

टाइटल: [S.483(2) BNSS] Kaustav Bagchi v. State of West Bengal & Anr

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