भगौड़ा व्यक्ति आत्मसमर्पण कर दे तो कुर्की आदेश खत्म हो जाता है, उसके बाद संपत्ति की बिक्री पर कोई बाधा नहीं: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि किसी संपत्ति की कुर्की का मकसद तब खत्म हो जाएगा जब भगोड़ा व्यक्ति, जिसकी संपत्ति है, अदालत में आत्मसमर्पण कर देगा। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार जब संपत्ति को बाद में किसी अन्य को बेचा जाएगा तो ऐसा कोई कुर्की आदेश मौजूद नहीं होगा, जो संपत्ति संबंधी कर भुगतान को बाधित करे।
जस्टिस मुरली पुरूषोतमन ने विमलाबेन अजीतभाई पटेल बनाम वत्सलाबेन अशोकभाई पटेल और अन्य (2008), और अब्दुल खादर बनाम केरल राज्य (2015) में दिए गए में निर्णयों पर भरोसा किया, जिनमें कहा गया था कि एक बार वह व्यक्ति, जिसके खिलाफ घोषणा जारी की गई थी और जिसकी संपत्ति कुर्क की गई थी, अदालत में आत्मसमर्पण कर देता है और स्थायी वारंट रद्द कर दिया जाता है, तो वह अब वह भगोड़ा नहीं रहेगा और संपत्ति की कुर्की का मकसद भी खत्म हो जाएगा।
मामले में याचिकाकर्ता ने 2005 में उमरकोया नामक व्यक्ति से 4.58 एकड़ भूमि खरीदी थी। भूमि की खरीद के बाद म्यूटेशन किया गया था, और याचिकाकर्ता ने 2011 तक कर भुगतान किया था। हालांकि, जब याचिकाकर्ता ने बाद की अवधि के लिए भूमि कर माफ कराने का प्रयास किया तो ग्राम अधिकारी (यहां दूसरा प्रतिवादी) ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया, इस आधार पर कि संबंधित संपत्ति के खिलाफ मजिस्ट्रेट कोर्ट ने कुर्की का आदेश दिया। कुर्की आदेश लागू होने के दौरान ही यह संपत्ति याचिकाकर्ता को बेच दी गई।
याचिकाकर्ता ने उपरोक्त तर्क पर आपत्ति जताई और ग्राम अधिकारी के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
कोर्ट ने न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट कोर्ट, परप्पनगडी से रिपोर्ट मांगी कि क्या इस मामले में कोर्ट के समक्ष कोई कार्यवाही लंबित है। रिपोर्ट का अवलोकन करने पर, न्यायालय ने पाया कि उपरोक्त उमर, जिससे याचिकाकर्ता ने संपत्ति खरीदी थी, ने न्यायालय के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था और अपना दोष स्वीकार कर लिया था। मजिस्ट्रेट कोर्ट ने तदनुसार उसकी याचिका स्वीकार कर ली और उसे जुर्माना भरने की सजा सुनाई।
कोर्ट ने कहा,
"इस प्रकार कुर्की का उद्देश्य समाप्त हो गया है और कुर्की स्वतः ही हटा ली गई है। यह ध्यान रखना उचित है कि अटैच संपत्ति की कोई बिक्री आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 85 के तहत नहीं की गई थी।
इस प्रकार यह घोषित किया गया कि संपत्ति के संबंध में कोई कुर्की नहीं हुई थी, और राजस्व अधिकारियों को संपत्ति के संबंध में याचिकाकर्ता से बाद की अवधि के लिए भूमि कर स्वीकार करने का निर्देश दिया गया था।
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