असम हत्याएं- "खून जमीन पर गिरा; एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना, त्रासदी": गुवाहाटी हाईकोर्ट ने बेदखली अभियान पर सरकार से जवाब मांगा
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने असम में चल रहे बेदखली अभियान और 23 सितंबर को धौलपुर की हुए हत्याकांड, जिसमें दो नागरिक मारे गए थे और लगभग 20 अन्य घायल हो गए थे, के संबंध में दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को अपना जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया। मामले को 3 नवंबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।
चीफ जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस सौमित्र सैकिया की खंडपीठ असम सरकार के "जबरन निष्कासन" के खिलाफ असम विधानसभा में विपक्ष के नेता देवव्रत सैकिया द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उल्लेखनीय है कि 23 सितंबर की घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया था, जिसमें एक फोटोग्राफर बिजॉय बोनिया को जमीन पर पड़े एक व्यक्ति के शव पर हिंसक रूप से कूदते देखा जा सकता है।
सैकिया की ओर से दायर याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह ने कहा कि याचिका में मूल रूप से तीन बिंदुओं पर ध्यान दिया गया है-
-असम के दरांग जिले के सिपाझार में बेदखली अभियान के बीच 23 सितंबर को धौलपुर गांव में हुई हत्याओं के संबंध में
-बेदखली अभियान के संबंध में कि क्या यह कानून के अनुसार है और क्या कानूनी प्रावधानों का पालन किया गया है या नहीं।
-2007 की राष्ट्रीय पुनर्वास नीति (केंद्र सरकार) और असम के पुनर्वास ढांचे के दिशानिर्देशों (FREMA द्वारा तैयार) का अनिवार्य अनुपालन
जनहित याचिका में हाल ही में धौलपुर बेदखली अभियान के अलावा सरकार द्वारा उठाए गए बेदखली अभियान के कम से कम पांच उदाहरणों को संदर्भित किया गया है, जिसके दौरान याचिका में मानवाधिकारों का उल्लंघन होने का आरोप लगाया गया था।
जनहित याचिका में मांग की गई है कि बेदखल किए गए व्यक्तियों के साथ बातचीत की जाए और उसके बाद राज्य सरकार द्वारा समयबद्ध तरीके से उनके पुनर्वास और मुआवजे की योजनाएं शुरू की जाएं।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर उदय सिंह ने प्रस्तुत किया कि राज्य सरकार द्वारा जिन्हें बेदखल करने की मांग की गई है, ऐसे लोगों के मामलों में "अनिवार्य सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन" सुनिश्चित करने के लिए उपरोक्त उपायों में से कोई भी कदम नहीं उठाया गया है।
उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए अदालत के हस्तक्षेप की भी मांग की कि ऐसे लोगों के संबंध में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन अधिनियम, 2013 में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार के सिद्धांतों को लागू किया जाए।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि सिपझार में रहने वाले लोग हाशिए के लोग हैं और सामाजिक आर्थिक रूप से वंचित वर्गों से हैं और उन्हें 1960 के आसपास बार-बार बाढ़ और कटाव के कारण पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
याचिका राज्य सरकार के कैबिनेट के फैसले को चुनौती देती है, जिसमें कृषि फार्म/वन स्थापित करने के लिए लगभग 75,000 बीघा भूमि को मंजूरी देने के प्रस्ताव को लागू किया गया है। याचिका में कहा गया है कि निर्णय मनमाना है, अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है, संविधान के भाग IX और IX-A का उल्लंघन है, जिसमें आर्थिक और सामाजिक नियोजन के लोकतंत्रीकरण की आवश्यकता की बात कही गई है। यह पंचायत अधिनियम, 1994 का उल्लंघन है।
अदालत की कार्यवाही
मामले की सुनवाई की शुरुआत में महाधिवक्ता ने कहा कि 23 सितंबर के बेदखली अभियान के दौरान सरकार की योजना दशकों से सरकारी जमीन पर रह रहे करीब 125 परिवारों को बेदखल करने की थी, लेकिन दूसरी तरफ से पथराव हुआ और इससे कई पुलिसकर्मी घायल हो गए. और वे अस्पताल में भर्ती हैं।
महाधिवक्ता ने यह भी कहा कि मुश्किल से 500-600 लोग होने चाहिए थे, लेकिन 20,000 लोग थे, जिनमें ज्यादातर बाहरी थे और संदिग्ध पृष्ठभूमि वाले थे, जिन्होंने पुलिसकर्मियों पर हमला किया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि स्थानीय लोग बेदखली अभियान के लिए सहमत थे, लेकिन कुछ बाहरी लोगों के कारण अशांति पैदा हुई।
यह भी तर्क दिया गया कि चूंकि याचिकाकर्ता राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता (कांग्रेस के सदस्य) हैं, इसलिए न्यायालय को न्यायालय में किसी भी राजनीतिक लड़ाई की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
महाधिवक्ता ने दलील दी, "यदि वे एक राजनीतिक लड़ाई लड़ना चाहते हैं, तो उन्हें अदालत के बाहर लड़ने दें।"
उन्होंने स्पष्ट किया कि धौलपुर गांव 1,2 और 3 (जिला दरांग) को बेदखली अभियान में पहले ही साफ कर दिया गया है।
इसके बाद, याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिंह ने प्रस्तुत किया कि उन्होंने बेदखल किए गए लोगों के लिए मुआवजे और सीआरपीसी की धारा 176 के तहत पुलिस द्वारा हत्या की जांच की मांग की है।
वरिष्ठ अधिवक्ता सिंह ने केंद्र सरकार की 2007 की पुनर्वास नीति और असम के पुनर्वास ढांचे के दिशा-निर्देशों (FREMA द्वारा तैयार) का भी उल्लेख किया ।
इस पर, मुख्य न्यायाधीश धूलिया ने कहा कि चूंकि धौलपुर की घटना हिरासत में मौत का मामला नहीं था और राज्य सरकार ने पहले ही हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज के नेतृत्व मामले की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग नियुक्त किया है, याचिकाकर्ता को और क्या चाहिए।
सीजे धूलिया ने आगे कहा, "यह एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी, यह एक त्रासदी है। हम राज्य से एक विस्तृत हलफनामा मांगेंगे। मुद्दा यह है तीन लोगों की जान गई। खून जमीन पर गिर गया। आपकी बात के संबंध में कि एक राजनीतिक व्यक्ति ने याचिका दायर की है, हम उन्हें रोक नहीं सकते, इसमें कोई समस्या नहीं है।"
इसके अलावा, राज्य के एजी ने तर्क दिया कि असम की स्थिति देश के बाकी हिस्सों से काफी अलग है और जमीनी हकीकत कुछ अलग है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि भूमि काफी उपजाऊ है जहां ये लोग (कथित अतिक्रमणकर्ता) रह रहे हैं और भूमि सरकार की कृषि परियोजना का एक हिस्सा है और वह इसे वन क्षेत्र बनाना चाहती है।
इस पर सीजे धूलिया ने मौखिक रूप से कहा: "अब आपको आदमी को उजाड़कर जंगल बसाना है? हम भी तो यही रहे हैं हम यह भी जानते हैं कि क्या हो रहा है।"
अहम बात यह है कि एजी ने तर्क दिया कि सवाल यह है कि क्या एक सरकार के तौर, हम अपनी जमीन पर कब्जा करने की अनुमति दे सकते हैं या नहीं। उन्होंने कोर्ट में यह भी पूछा कि सरकार ने (लोगों को बेदखल करके) क्या गलत किया?
उन्होंने तर्क दिया, "जिन्हें बेदखल किया जा रहा है, उनमें 60% एनआरसी सूची में नहीं हैं।"
जवाब में एजी के बयान को 'आश्चर्यजनक' बताते हुए सीनियर एडवोकेट चंदर यू सिंह ने कहा कि एनआरसी सूची सरकार द्वारा प्रकाशित नहीं की गई है और फिर भी एजी का तर्क है कि बेदखल किए जा रहे 60% लोगों का नाम एनआरसी सूची में नहीं है।
कोर्ट ने मामल में प्रतिवाद दायर करने के लिए राज्य को तीन सप्ताह का समय दिया। कोर्ट ने मामले को 3 नवंबर के लिए सूचीबद्ध किया और राज्य सरकार दुर्गा पूजा की छुट्टियों के बाद ही बेदखली नोटिस देने का निर्देश दिया।
याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता चंदर यू सिंह ने किया और अधिवक्ता तलहा अब्दुल रहमान, बिलाल इकराम, गौतम भाटिया और नताशा माहेश्वरी ने उनकी सहायता की।