फांसीघर विवाद: केजरीवाल–सिसोदिया की याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी, प्रथम दृष्टया असंगत
दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को आम आदमी पार्टी (AAP) के नेताओं अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया द्वारा दायर उस याचिका पर कल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया, जिसमें दिल्ली विधानसभा की विशेषाधिकार समिति द्वारा जारी समन को चुनौती दी गई। यह समन कथित फांसीघर विवाद के संबंध में भेजा गया था।
जस्टिस सचिन दत्ता ने सुनवाई के दौरान मौखिक टिप्पणी की कि प्रथमदृष्टया याचिका सुनवाई योग्य नहीं लगती।
दिल्ली विधानसभा की ओर से उपस्थित सीनियर एडवोकेट जयंती मेहता ने कहा कि वह एक अन्य मामले में व्यस्त हैं और मामले को कल (बुधवार) के लिए सूचीबद्ध किया जाए। इसके बाद अदालत ने मामले को बुधवार के लिए तय कर दिया।
केजरीवाल और सिसोदिया की ओर से सीनियर एडवोकेट शादन फरासत पेश हुए। उन्होंने स्थगन आवेदन पर नोटिस जारी करने का अनुरोध किया। उनका कहना था कि विवादित नोटिस स्वयं में ही अधिकार–क्षेत्र से बाहर है।
मेहता ने जब कहा कि याचिका मेंटेनेबल नहीं है तो फरासत ने दलील दी कि वह अदालत को दिखाएंगे कि यह पूरी तरह मेंटेनेबल है और इसके समर्थन में उन्होंने अदालत के तीन फैसलों का हवाला देने की बात कही।
याचिका के अनुसार फांसीघर के उद्घाटन के तीन साल बाद और सातवीं विधानसभा के विघटन के कई महीनों बाद पहली बार 8वीं विधानसभा में 5 अगस्त को फांसीघर की प्रामाणिकता का मुद्दा उठाया गया।
याचिका में कहा गया कि 'फांसीघर' स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का सांकेतिक स्मारक है और इसके उद्घाटन से संबंधित तथ्य सार्वजनिक रूप से विदित हैं।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि विधानसभा समितियों को कानून निर्माण या जनहित में निगरानी से जुड़े मामलों में जांच करने का अधिकार है लेकिन विधानसभा परिसर में स्थित किसी संरचना के निर्माण या डिज़ाइन से संबंधित प्रश्न न तो कानून निर्माण के लिए आवश्यक हैं और न ही सार्वजनिक निगरानी से जुड़े मामले हैं।
याचिका में यह भी कहा गया कि विशेषाधिकार समिति को ऐतिहासिक तथ्यों की प्रामाणिकता की जांच करने का अधिकार–क्षेत्र नहीं है। खासकर तब जब पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ने इन्हें स्वीकार किया था और न ही उन्हें उन विशिष्ट व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है, जो उद्घाटन समारोह में शामिल हुए थे।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने 9 सितंबर, 2025 के नोटिस का जवाब दे दिया था लेकिन समिति ने उन्हें उचित तरीके से नहीं देखा। 4 नवंबर, 2025 के समन में उनके जवाब में उठाए गए आपत्तियों का कोई उल्लेख नहीं है।
केजरीवाल और सिसोदिया ने आरोप लगाया कि कार्यवाही अधिकार क्षेत्र की कमी, प्रक्रिया–गत त्रुटियों, संवैधानिक कमियों और विधायी शक्ति के दुरुपयोग से प्रभावित है।
याचिका में कहा गया,
"ये कार्यवाही संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत दिए गए मूल अधिकारों का उल्लंघन करती हैं, इसलिए रद्द किए जाने योग्य हैं।"