"अनुच्‍छेद 21 में दफन करने का अध‌िकार भी शामिल", मद्रास हाईकोर्ट ने चेन्नई में डॉक्टर के अंतिम संस्‍कार पर हुए हमले के बाद राज्य सरकार को दिया नोटिस

Update: 2020-04-20 16:33 GMT

Madras High Court

मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त दफन के अध‌िकार के मुद्दे पर नोटिस जारी किया है। हाईकोर्ट ने रविवार को टीवी पर प्रसारित एक समाचार पर स्वतः संज्ञान लिया, जिसके मुताबिक, दिल का दौरा पड़ने से मरे एक डॉक्टर को दफन करने का, जिसकी COVID 19 के संक्रमण के कारण सेहत और खराब हो गई थी, बड़े पैमाने पर विरोध किया गया, जिसके कारण कानून-व्यवस्‍था की स्थिति पैदा हुई।

हाईकोर्ट की ‌डिविजन बेंच ने कहा, "न्यायालय की राय में अनुच्छेद 21 के दायरे और विस्तार में दफन का अधिकार शामिल है। उक्त मामले में प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि कथित उपरोक्त कृत्यों के कारण डॉक्टर जैसे आदर्श पेशे में रह चुके एक व्यक्ति को मृत्यु के बाद, उस कब्र‌िस्तान में, जिसे इसी उद्देश्य से रखा गया था, में अंतिम संस्‍कार यानी दफन होने के अधिकार से वंचित किया गया, और ऐसा कानून-व्यवस्‍था की समस्या के कारण हुआ। जिन अधिकारियों ने हालत को नियंत्रित करने का प्रयास किया, उन्हें चोट भी आईं।"

उल्लेखनीय है ‌कि एक मीडिया चैनल "पुथिया थालेमई" ने एक समाचार प्रसारित किया था, जिसमें दिखाया गया था कि एक डॉक्टर, जिसे पहले से ही स्वास्थ्य समस्याएं थीं, को COVID-19 संक्रमण के कारण पैदा हुई जटिलताओं के कारण दिल का दौरा पड़ा और उसकी मौत हो गई। डॉक्टर का शव चेन्नई के किल्पौक स्थित एक ईसाई कब्रिस्तान में ले जाया गया, जहां बड़ी संख्या में क्षेत्र के निवासी इकट्ठे हो गए और शव को दफनाने का विरोध किया।

कोर्ट ने कहा, "परिणामस्वरूप शव को वेलंगड़ु ले जाया गया और दफन किया गया। जिस एम्बुलेंस में शव ले जाया गया, उस पर भी हमला किया गया। शव ले जा रहे व्यक्तियों पर भी हमला किया गया।"

कोर्ट ने यह भी कहा कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 'COVID-19 से संबंधित सामा‌जिक कलंकों' और 'शव प्रबंधन' के संबंध में दिशानिर्देश भी जारी किए हैं। लोगों को उक्त दिशा-निर्देशों की जानकारी होनी चाहिए और उनका पालन करना चाहिए।

"नागरिकों को कानून और व्यवस्था को अपने हाथों नहीं लेना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो निश्चित रूप से अराजकता पैदा होगी। भविष्य में भी ऐसी घटनाओं के होने की संभावना है।"

कोर्ट ने आईपीसी की धारा 297 का हवाला दिया, जिसके तहत दफन करने के स्थानों पर अतिचार के लिए सजा निर्धारित की गई है। किसी की भावनाओं को आहत करने या उनके धर्म का अपमान करने या ऐसी जानकारी के साथ कि वह ऐसा करने वाला या वाली है, किसी उपासना स्थल या कब्रगाह या अंतिम संस्कार के लिए चिन्हित जगह या शव के अवशेषों को रखने के लिए तय जगह पर यदि कोई व्यक्ति अतिचार करता है, या किसी शव का अपमान करता है या अंतिम संस्‍कार के लिए इकट्ठा लोगों की परेशान करता है, तो ऐसे व्यक्ति को एक वर्ष की कैद या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा।

कोर्ट ने कहा, 1963 के खड़क सिंह के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 के दायरे की व्याख्या की थी- " उक्त प्रावधान शरीर या हाथ या पैर के विच्छेदन से भी मना करता है। ...."

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