आईपीसी की धारा 497 को रद्द करने के बावजूद सशस्त्र बल कर्मी को व्यभिचार के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना होगा: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण है फैसले में स्पष्ट किया कि शीर्ष अदालत ने 2018 में एक फैसले में आईपीसी की धारा 497 को रद्द कर दिया था, जिसके तहत व्यभिचार को अपराध माना जाता था, इसके बाद भी व्यभिचार के लिए सशस्त्र बल में कार्यरत व्यक्ति के खिलाफ शुरू की गई कोर्ट मार्शल की कार्यवाही प्रभावित नहीं होगी।
पीठ ने कहा कि जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में 2018 का फैसला सशस्त्र बल अधिनियमों के प्रावधानों से बिल्कुल भी संबंधित नहीं था। पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 33 के अनुसार, सशस्त्र बलों को नियंत्रित करने वाले कानून मौलिक अधिकारों की प्रयोज्यता से छूट प्रदान कर सकते हैं।
जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस सीटी रविकुमार की पांच जजों की पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा दायर एक आवेदन में आदेश पारित किया।
2019 में तीन जजों की पीठ ने आवेदन को संविधान पीठ को भेज दिया था, क्योंकि जोसेफ शाइन का फैसला पांच जजों की पीठ द्वारा दिया गया था।
न्यायालय का आज का आदेश इस प्रकार है,
"इस अदालत का फैसला केवल धारा 497 आईपीसी और धारा 198 (2) सीआरपीसी की वैधता से संबंधित था ... इस मामले में, इस अदालत के पास सशस्त्र बल अधिनियम के प्रावधानों के प्रभाव पर विचार करने का कोई अवसर नहीं था। जैसा कि हम देखते हैं, ऐसा नहीं है कि इस अदालत ने व्यभिचार को मंजूरी दे दी है। इस अदालत ने पाया कि व्यभिचार एक आधुनिक समस्या हो सकती है। इस अदालत ने यह भी माना कि यह विवाह के विघटन के लिए एक आधार बना रहेगा ... इस तथ्य के मद्देनजर कि अनुच्छेद 33 के संदर्भ में कृत्यों की योजना इस न्यायालय के समक्ष विचार के लिए नहीं आती है, हमें यह देखना और स्पष्ट करना चाहिए कि इस न्यायालय का निर्णय सशस्त्र बल अधिनियमों के प्रभाव और प्रावधानों से बिल्कुल भी संबंधित नहीं था। इस अदालत से न तो पूछा गया था और न ही इसने सेना अधिनियम की धारा 45 और धारा 63 के साथ-साथ अन्य अधिनियमों (नौसेना अधिनियम, वायु सेना अधिनियम) के संबंधित प्रावधानों के प्रभाव पर फैसला सुनाने का साहस किया है।"
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान ने पीठ को बताया था कि सशस्त्र बल न्यायाधिकरण की ओर से जोसेफ शाइन फैसले का हवाला देकर अनुचित यौन आचरण के लिए कर्मियों के खिलाफ शुरू की गई कुछ अनुशासनात्मक कार्यवाही को रद्द करने के मद्देनजर आवेदन दायर किया गया था।
एएसजी ने बताया कि जोसेफ शाइन का फैसला आईपीसी की धारा 497 के पितृसत्तात्मक अर्थों पर आधारित था; हालांकि, सेना में की गई कार्रवाई लिंग तटस्थ है और महिला अधिकारी भी अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए उत्तरदायी हैं।
दीवान ने कहा कि व्यभिचार के खिलाफ कार्रवाई यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि जो अधिकारी अपने परिवार से दूर दूर दराज के क्षेत्रों में सेवा दे रहे हैं वे असुरक्षित या निराश महसूस न करें।
जोसफ शाइन मामले में याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील कलेश्वरम राज ने प्रस्तुत किया कि यूनियन का स्पष्टीकरण आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है और जोसेफ शाइन मामले में सेना के अधिकारियों के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि एक सामान्य स्पष्टीकरण निर्देश नहीं दिया जा सकता है और व्यक्तिगत मामलों की केस-टू-केस आधार पर जांच की जानी है।