एक बार आरोपी के व्यक्तिगत रूप से या वकील के माध्यम से पेश होने के बाद अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकती: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि एक बार जब कोई आरोपी व्यक्तिगत रूप से या अपने वकील के माध्यम से अदालत में पेश हो जाता है तो वह आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 438 का इस्तेमाल कर अग्रिम जमानत की मांग नहीं कर सकता।
मामले में जस्टिस एचपी संदेश ने रमेश नामक एक व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी। उसे उसके खिलाफ जारी वारंट को वापस लेने के लिए जरूरी आवेदन दाखिल करने के लिए ट्रायल कोर्ट से संपर्क करने का निर्देश दिया।
पृष्ठभूमि
अभियोजन मामले के अनुसार, डेप्यूटी रेंज फॉरेस्ट ऑफिसर, गौरीबिदनूर रेंज ने याचिकाकर्ता के घर से तीन नंबर मॉनिटर लिज़र्ड और तीन नंबर ग्रे फ्रेंकोलिन बरामद किया। जिसके बाद उन्होंने मजिस्ट्रेट कोर्ट के समक्ष वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 55 (बी) सहपठित धारा 51 के तहत शिकायत दर्ज की।
ट्रायल कोर्ट ने उक्त अपराध का संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज कर आरोपी को सम्मन जारी किया, जो 05.10.2020 को अपने वकील के माध्यम से पेश हुआ और सीआरपीसी की धारा 205 के तहत एक आवेदन दाखिल करके छूट मांगी, जिसे ट्रायल कोर्ट ने अनुमति दी थी।
हालांकि, बाद में आरोपी अनुपस्थित रहा और इसलिए उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया। इसके बाद उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए सत्र अदालत का दरवाजा खटखटाया, जिसे खारिज कर दिया गया। जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया।
याचिकाकर्ताओं की प्रस्तुतियां
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता धीरज एके ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता है और शिकायतकर्ता द्वारा की गई तलाशी वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की धारा 50 (8) के अनुसार नहीं थी।
यह तर्क दिया गया था कि शिकायतकर्ता ने कुछ सूचनाओं के आधार पर कथित तौर पर बिना सर्च वारंट के याचिकाकर्ता के घर की तलाशी ली और महाजर के तहत जब्ती की और वह जब्ती ही संदिग्ध है।
अभियोजन पक्ष ने याचिका का विरोध किया
यह प्रस्तुत किया गया था कि याचिका स्वयं ही सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि एक बार जब आरोपी/याचिकाकर्ता अपने वकील के माध्यम से ट्रायल कोर्ट के सामने पेश हुए, तो उन्हें सीआरपीसी की धारा 438 के बजाय ट्रायल कोर्ट के आदेश को वापस लेने के लिए एक आवेदन करना चाहिए था।
न्यायालय के निष्कर्ष
पीठ ने एसआर नागराज बनाम कर्नाटक राज्य 2011 एससीसी ऑनलाइन कर्नाटक 3301 और के सोमशेखर बनाम कर्नाटक राज्य 2015 एससीसी ऑनलाइन कर्नाटक 8412 पर भरोसा किया।
इन मामलों में यह तय किया गया था कि एक बार जब अभियुक्त निचली अदालत में पेश हुआ और उसके बाद किसी भी बाद की तारीख पर उसकी अनुपस्थिति के कारण उसके खिलाफ जानबूझकर अनुपस्थिति के आरोप में अदालत ने वारंट जारी किया तो धारा 438 सीआरपीसी के तहत अग्रिम जमानत का उपाय ऐसे व्यक्ति के लिए उपलब्ध नहीं होता है।
इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता एक वकील के माध्यम से ट्रायल कोर्ट के सामने पेश हुआ था और उसने सीआरपीसी की धारा 205 के तहत एक आवेदन दायर किया था, बजाय कि धारा 317 सीआरपीसी के तहत, और एक दिन के लिए छूट की मांग की थी।
जिस पर कोर्ट ने कहा, " एक बार छूट की मांग करने वाले एक आवेदन की अनुमति मिलने के बाद, याचिकाकर्ता फिर से सीआरपीसी की धारा 438 का उपयोग नहीं कर सकता है...। "
पीठ ने कहा, "जब इस तरह के मामले का तथ्य यह है कि एक बार जब वह अदालत के माध्यम से पेश हुए, चाहे वह वकील के माध्यम से हो या व्यक्तिगत रूप से, वह अग्रिम जमानत की मांग नहीं कर सकते।"
जिसके बाद यह कहा गया, "याचिकाकर्ता को कानूनी रूप से पेश होने की अनुमति है और एक बार उसे कानूनी रूप से पेश होने की अनुमति मिलने के बाद वह यह तर्क नहीं दे सकता कि वह ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश नहीं हुआ है और इसलिए सीआरपीसी की धारा 438 के तहत याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। "
केस शीर्षक: रमेश बनाम राज्य उप आरएफओ के माध्यम से
केस नंबर: आपराधिक याचिका संख्या 9975/2021
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (कर्नाटक) 31
आदेश की तिथि: 21 जनवरी 2022
उपस्थिति: याचिकाकर्ता की ओर सेअधिवक्ता धीरज एके; प्रतिवादी की ओर से एडवोकेट विनायक वीएस