मद्रास हाईकोर्ट ने लॉ ऑफिसर नियुक्ति नियमों में संशोधन को बरकरार रखा

Update: 2021-06-17 05:57 GMT

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मद्रास हाईकोर्ट ने बुधवार को मद्रास हाईकोर्ट लॉ ऑफिसर और इसकी मदुरै पीठ (नियुक्ति) नियम, 2017 के तहत सरकारी अधिवक्ताओं की नियुक्ति के नियमों में किए गए संशोधन (वर्ष 2019 में) की वैधता के खिलाफ दायर एक याचिका का निपटारा किया।

न्यायमूर्ति टीएस शिवगनम और न्यायमूर्ति एस. अनंती की खंडपीठ ने नियम 4 (i) के उप-खंड (k) की वैधता को बरकरार रखा, जो सरकारी अधिवक्ता के रूप में नियुक्त होने की योग्यता को निर्धारित करता है।

नियम को चुनौती

संशोधित नियम में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति उच्च न्यायालय में सरकारी अधिवक्ता के रूप में नियुक्ति होने के लिए तब तक पात्र नहीं होगा जब तक कि वह अपने वरिष्ठ द्वारा दिए गए इस आशय का पत्र प्रस्तुत नहीं करता कि उसने उसके सहयोगी के रूप में काम किया है और हाईकोर्ट में कम से कम तीन साल तक काम किया है।

चुनौती में यह भी तर्क दिया गया कि संशोधन मेधावी उम्मीदवारों को मद्रास उच्च न्यायालय और इसकी मदुरै पीठ में राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले विधि अधिकारियों के रूप में नियुक्ति के लिए समान अवसर से वंचित करता है।

यह भी तर्क दिया गया कि इसका यह परिणाम होगा कि अनुभवहीन अधिवक्ताओं को विधि अधिकारी के रूप में नियुक्त किया जाएगा और यह इस न्यायालय के न्याय प्रशासन को प्रभावित करेगा।

न्यायालय की टिप्पणियां

कोर्ट ने शुरुआत में कहा कि याचिका में सरकारी विधि अधिकारियों को जारी किए गए किसी भी नियुक्ति आदेश को चुनौती नहीं दी गई है, बल्कि चुनौती 2017 के नियमों में संशोधन को लेकर है।

कोर्ट ने इस प्रकार वी. वसंतकुमार बनाम मुख्य सचिव, तमिलनाडु सरकार के मामले में मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय को ध्यान में रखते हुए कहा कि,

"सरकारी अधिवक्ताओं के चयन का कार्य सरकार के क्षेत्र में आता है। ऐसी नियुक्तियों की न्यायिक पुनर्विचार केवल इस जांच तक सीमित होगी कि नियुक्ति की प्रक्रिया अनियमित, अवैध, विकृति या तर्कहीन तो नहीं है।"

पीठ ने नियम 4 (i) (k) में कोई तर्कहीनता या अवैधता या मनमानी या कोई भेदभाव नहीं पाया है।

पीठ ने आगे कहा कि,

" प्रत्येक वरिष्ठ हमेशा अपने कनिष्ठों (जब वे विभिन्न पदों पर आसीन होंगे) की उपलब्धियों पर गर्व करता है और याचिकाकर्ता को वरिष्ठ द्वारा दिए गए पत्र को अत्यधिक विश्वास और गंभीरता से प्रमाणित करना चाहिए कि जूनियर ने सीनियर के यहां तीन साल की अवधि तक कोर्ट के समक्ष कार्य किया है।"

अदालत की राय है कि बहुत बार, बार के एक युवा सदस्य को सीनियर के कार्यालय की वकालत में अधिवक्ताओं के नामों की सूची के निचले भाग में शामिल होने में तीन साल से अधिक समय लग जाता है।

कोर्ट ने राज्य सरकार की इस दलील पर भी गौर किया कि चयन की प्रक्रिया अभी शुरू नहीं हुई है और पारदर्शी तरीके से 2021 में सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवारों का चयन और नियुक्ति करने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा।

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के लिए कुछ चीजों को मानना और अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी।

अस्थायी नियुक्तियां

कोर्ट ने देखा कि महाधिवक्ता द्वारा किए गए अनुरोध पर तमिलनाडु सरकार ने सरकार के लिए दीवानी और आपराधिक मामलों में अस्थायी रूप से पेश होने के लिए वकीलों की नियुक्ति की थी, जब तक कि कानून अधिकारियों का चयन और नियमों के अनुसार नियुक्त नहीं किया जाता है।

कोर्ट ने इस पर कहा कि,

"हमें उक्त सरकारी आदेशों की जांच करने की आवश्यकता नहीं है और ऐसी अस्थायी नियुक्तियों पर लगाए गए सभी आरोपों और आशंकाओं को अनिवार्य रूप से खारिज किया जाना चाहिए।"

कोर्ट ने इस संदर्भ में यह भी नोट किया कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से न्यायालय के समक्ष पेश हुए महाधिवक्ता ने यह भी उल्लेख किया कि ये नियुक्तियां सरकार को इस न्यायालय के समक्ष प्रतिनिधित्व करने में सक्षम बनाने के लिए हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस न्यायालय के समक्ष राज्य के लिए कानून अधिकारियों की अनुपस्थिति के कारण किसी भी तरह से कार्यवाही प्रभावित नहीं हो रही है।

कोर्ट ने कहा कि चयन प्रक्रिया का संचालन करने और राज्य सरकार के लिए पेश होने के लिए वकीलों की नियुक्ति में प्रतिवादियों द्वारा सावधानी बरती जानी चाहिए, ताकि न्यायालयों को प्रभावी सहायता दी जा सके।

कोर्ट ने राज्य सरकार को प्रकाशन जारी कर और संदेश भेजकर विधि अधिकारियों की चयन प्रक्रिया का व्यापक प्रचार-प्रसार करने के लिए कदम उठाने के लिए भी कहा और संबंधित अधिवक्ता/बार एसोसिएशन अपने सदस्यों को आगामी चयन के बारे में सूचित कर सकते हैं।

केस का शीर्षक - ए कन्नन बनाम तमिलनाडु राज्य और अन्य।

आदेश की कॉपी यहां पढ़ें:



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