सीआरपीसी की धारा 427 के तहत 'पहले से सजा भुगत रहा है' का मतलब सजा के वारंट के क्रियान्वयन के बाद शारीरिक हिरासत हैः मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2020-05-13 05:00 GMT

 Madras High Court

मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 427 के तहत ‌दिए गए एक वाक्यांश "पहले से ही सजा भुगत रहा है" की व्याख्या की है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मूल अधिकार के साथ संतुलित करन का प्रयास किया है।

सीआरपीसी की धारा 427 उन परिस्थितियों से संबंधित है, जहां पहले से ही सजा भुगत रहे दोषी को दूसरे अपराध में सजा सुनाई जाए। धारा 427 (1) में कहा गया है कि बाद की सजा आमतौर पर पिछले सजा की निरंतरता में यानी क्रमवार होती है, - अर्थात बाद की सजा पिछली सजा की समाप्ति के बाद ही शुरू होगी। हालांकि, सजा देने वाली अदालत यह निर्दिष्ट कर सकती है कि बाद की सजा पिछली सजा के साथ समवर्ती रूप से चलेगी। जब तक सजा देने वाली अदालत यह निर्दिष्ट नहीं करती, तब तक बाद के वाक्य को "क्रमवार" माना जाएगा।

मौजूदा मामले में, हाईकोर्ट की मदुरै बेंच के जस्टिस जीआर स्वामीनाथन ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक 60 वर्षीय व्यक्ति द्वारा दायर याचिका का निस्तारण कर रहे थे, जिसमें उसने मांग की थी कि 5 मामलों में चल रही उसकी सजाओं को समवर्ती करने का निर्देश दिया जाए।

इस मामले में चश्मे की पांच दुकानों में की गई एक ही तारीख को की गई चोरी और सेंधमारी के अपराधों के संबंध में सभी सजाएं एक ही तारीख को सुनाई गई थी। उसे प्रत्येक मामले में तीन वर्ष के साधारण कारावास और प्रत्येक अपराध के लिए 5000 रुपए का जुर्माना देने की सजा सुनाई गई थी।

मजिस्ट्रेट कोर्ट ने सजा सुनाते समय यह निर्दिष्ट नहीं किया कि सजा समवर्ती होगी या नहीं, जिसका मतलब यह था कि सजा लगातार चलती रहेगी, उसे जेल में पंद्रह साल तक रहना होगा। न्यायालय के समक्ष मुद्दा था कि क्या मौजूदा स्थिति में धारा 427 (1) लागू होगी और क्या "क्रमवार" सजा का प्रावधान स्वतः लागू हो जाएगा।

कोर्ट ने कहा,

"सवाल यह है कि जब सजा देने वाली अदालत सीआरपीसी की धारा 427 के संदर्भ में किसी भी प्रकार निर्देशा पारित करने में विफल रही, तो क्या क्रमवार सजा का प्रावधान स्वतः प्रभावित होगा?"

जस्टिस जीआर स्वामीनाथन की पीठ ने "पहले से सजा भुगत रहा है" वाक्य पर जोर देते हुए कहा, "सीआरपीसी की धारा 427 (1) को लागू करने के लिए, यह शर्त अग्रगामी होनी चाहिए कि बाद के मामले में सजा पाया दोषी व्यक्ति , पिछले मामले में पहल से ही कारावास की सजा भुगत रहा हो। यदि ऐसा नहीं है तो धारा 427 (1) बिल्कुल लागू नहीं होगा।"

इसके बाद, न्यायालय ने "पहले से ही करावास की सजा भुगत रहा है" वाक्यांश के दायरे की जांच की। अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति को "पहले से ही सजा भुगत रहा है" तभी कहा जा सकता है जब वह सीआरपीसी की धारा 425 के तहत वारंट के क्र‌ियान्वयन में शारीरिक रूप से हिरासत में हो।

"पूरा मुद्दा "पहले से ही कारावास की सजा भुगत रहा है" वाक्या पर ठहर जाता है। "पहले से ही" का अर्थ है "अतीत में या अब से पहले किसी विशेष समय में"। "भुगत रहा है" का अर्थ है "किसी चीज का अनुभव करना" (ऑक्सफोर्ड एडवांस्ड लर्नर्स डिक्शनरी, 9वां संस्करण)।

किसी को यह नहीं कहा जा सकता है कि कारावास की सजा भुगत रहा है, जब तक कि सीआरपीसी की धारा 425 के तहत उसके निष्पादन के लिए वारंट जारी नहीं किया गया था और यह प्रभावी हो गया था। अगर दोषी को ऐसे वारंट के बाद शारीरिक रूप से हिरासत में लिया गया था, तब यह कहा जा सकता है कि वह कारावास की सजा भुगत रहा है, अन्यथा नहीं।"

कोर्ट ने कहा,

"इस प्रकार, सीआरपीसी की धारा 427 (1) को लागू करने के लिए, यह शर्त अग्रगामी होनी चाहिए कि बाद के मामले में दोषी व्यक्ति पहले से ही पिछले मामले में कारावास की सजा भुगत रहा था।"

अनुच्छेद 21 के आलोक में प्रावधान की व्याख्या

कोर्ट ने कहा कि धारा 427 के तहत सजा की प्रकृति निर्दिष्ट न करने की अदालत की चूक का अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।

"मान लीजिए, एक अभियुक्त को एक ही दिन में एक से अधिक मामलों में दोषी पाया जाता है और सजा सुनाई जाती है। यह संबंध‌ित न्यायालय पर है कि वह स्पष्ट करे कि बाद के मामले में सजा कब तक प्रभावी होगी। यदि अदालत इस पहलू पर शांत है, सजा उस तारीख से प्रारंभ हो जाएगी, जब उन्हें प्रभावी होन का आदेश दिया गया था।

धारा 427 (1) में यह निर्धारित किया गया है कि सजा किसी प्रकार चलाई जाएगी। इसमें कहा गया है कि यदि अदालत चुप है और कोई निर्देश नहीं दिया गया है कि बाद के मामलों में सजा समवर्ती रूप से चलेगी तो यह क्रमवार चलेगी। न्यायालय की चुप्पी का ऐसा प्रतिकूल परिणाम व्यक्तिगत स्वतंत्रता का गंभीर रूप से प्रभाव‌ित करता है।

संविधान में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बहुत महत्व दिया गया है। इसलिए, ऐस प्रावधान बार निष्पक्ष, न्यायसंगत और उचित रूप से समझा जाना चा‌हिए।"

कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामला 'क्लासिक प्रूफ' है।

"जब न्यायिक मजिस्ट्रेट नं 5, तिरुचिरापल्ली की फाइल पर 2017 के सीसी नंबर 297 में याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई, तो उसे पहले से ही 2017 के सीसी नंबर 296 में दोषी ठहराया जा चुका था और सजा सुनाई गई थी। लेकिन तब, वह केवल दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई। वह किसी भी कारावास में सजा नहीं भुगत रहा था। बाद के मामले 2017 के सीसी नंबर 298 के 300 तक में भी यही तर्क लागू होता है।"

पीठ ने कहा,

"इसलिए, भले ही ऐसा निर्देश पारित नहीं किया गया था कि बाद की सजा पिछली सजा की समवर्ती होगी, सीआरपीसी की धारा 427 के मद्देनजर यह समवर्ती ही रहेगी।"

कोर्ट ने आगे कहा कि,

"यदि धारा 427 (1) की व्याख्या उपरोक्त ढंग से नहीं की जाती है तो इसका परिणाम यह होगा कि याचिकाकर्ता लगातार दस सालों तक जेल में सड़ता रहेगा। मेरे विचार से यह एक राक्षसी स्थिति होगी।"

मामले का विवरण

केस टाइटल: शेख मदार बनाम तमिलनाडु राज्य व अन्य।

केस नं: Crl OP (MD) नंबर 18030/2019

कोरम: जस्टिस जीआर स्वामीनाथन

प्रतिनिधित्व: एडवोकेट आर अलागुमानी (आवेदक के लिए); सरकारी एडवोकेट ए रॉबिन्सन (राज्य के लिए)

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