'रक्षक ही शिकारी बन गया': कोर्ट ने दत्तक माता की हत्या के दोषी को मृत्युदंड सुनाया, रामचरितमानस और कुरान का हवाला देते हुए संतानोचित कर्तव्य बताया
श्योपुर की जिला एवं सेशन कोर्ट ने बुधवार (23 जुलाई) को आर्थिक लालच में अपनी माँ की नृशंस हत्या के जुर्म में व्यक्ति को मृत्युदंड सुनाया। सजा सुनाते हुए अदालत ने रामचरितमानस, गुरु ग्रंथ साहिब, कुरान और बाइबिल की आयतों का हवाला देते हुए माता-पिता और बच्चे के रिश्ते की नैतिक और नैतिक पवित्रता पर ज़ोर दिया।
अदालत ने कहा कि सभी प्रमुख धर्मग्रंथ सार्वभौमिक रूप से माता-पिता के प्रति सम्मान, देखभाल और आज्ञाकारिता के मूल्यों का समर्थन करते हैं, जिन सिद्धांतों का दत्तक पुत्र ने गंभीर रूप से उल्लंघन किया था।
मच्छी सिंह बनाम पंजाब राज्य 1983 में स्थापित सिद्धांतों का हवाला देते हुए अदालत ने माना कि यह मामला 'दुर्लभतम से दुर्लभतम' श्रेणी में आता है, जिसके लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 के तहत मृत्युदंड दिया जाना उचित है।
सजा सुनाने से पहले अदालत ने अपराध की भयावह प्रकृति और जिस निर्दयी इरादे से इसे अंजाम दिया गया, उस पर ज़ोर दिया। यह भी कहा गया कि बेटे ने जिस तरह से हत्या को अंजाम दिया, उसमें नरमी की कोई गुंजाइश नहीं थी।
अदालत ने इस प्रकार टिप्पणी की:
"आरोपी द्वारा अपनी माता उषाबाई को जीने से धक्का देकर नीचे गिराया गया, फिर सरिये से उसके सिर में एक से अधिक बार वार किया गया, साडी से गला घोंटकर बाथरूम में शव को ईंट सीमेन्ट से चुनकर चबूतरा बना दिया और साक्ष्य को विलोपित किया। आरोपी द्वारा यह जानते हुए कि वह अपनी माता का नॉमिनी है और माता की मृत्यु के पश्चात् उसे समस्त राशि मिलना है। जेवर और रूपये प्राप्त करने के लिए बडे ही निर्मम तरीके से अपनी माता को मारकर हत्या की है। ऐसी स्थिति में आरोपी किसी भी दया का पात्र नहीं है। अपराध एक नृशंस प्रकृति का है।"
स्पेशल जज लीलाधर सोलंकी ने कहा,
"जब वह व्यक्ति जो वृद्ध माता-पिता का समर्थक और रक्षक माना जाता है, उनका भक्षक बन जाता है, तो यह समाज की चेतना को झकझोर देता है।"
कोर्ट ने हिंदी में कहा:
"जिस पर माता पिता की रक्षा का दायित्व होता है, जो माता पिता के बुढापे का सहारा होता है वही यदि रक्षक ही भक्षक बन जावे तो फिर माता पिता उस संतान का लालन-पालन क्यों करेंगे। यदि बागड ही खेत खाने लग जाये तो फिर किसान किस पर विश्वास करेगा। आरोपी के विरूद्ध नरम रूख अपनाया गया तो कोई भी निःसंतान माता पिता किसी भी अनाथ बालक को गोद नहीं लेगे और समाज में काफी विपरीत प्रभाव होगा।"
आरोपी दीपक को एक साल की उम्र में ग्वालियर के एक अनाथालय से गोद लिया गया था और उषा देवी (मृत) और उनके पति ने बड़े प्यार और देखभाल से उसका पालन-पोषण किया। उसे अच्छी शिक्षा दी गई और उसके पिता के फिक्स्ड डिपॉजिट और उसकी माँ के सभी बैंक खातों में उसे नॉमिनी बनाया गया।
2021 में वन विभाग में गार्ड रहे दीपक के पिता का निधन हो गया। नॉमिनी होने के नाते दीपक को ₹16.85 लाख मिले, जिसमें से उसने ₹14 लाख शेयर बाजार में गँवा दिए और बाकी ₹2.85 लाख खर्च कर दिए।
आर्थिक तंगी का सामना करते हुए उसने अपनी माँ से पैसे मांगने शुरू किए, जिनके खातों में कुल मिलाकर लगभग ₹32 लाख थे। हालांकि, उन्होंने बार-बार उसे पैसे देने से इनकार किया।
पड़ोसियों की गवाही से पुष्टि हुई कि माँ और बेटे के बीच पैसों की मांग को लेकर अक्सर झगड़ा होता था। कई गवाहों ने गवाही दी कि आरोपी ने कई मौकों पर अपनी माँ से पैसे मांगे और उन्हें धमकाया।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, 6 मई, 2024 को सुबह 10:30 से 11 बजे के बीच, उषा देवी नहाने के बाद तुलसी के पौधे में पानी देने जा रही थीं, तभी सीढ़ियों पर उनका सामना उनके बेटे से हुआ। जैसे ही वह बीच रास्ते में पहुंचीं, बेटे ने उन्हें धक्का दे दिया, जिससे वह गिर गईं और उनके सिर में चोटें आईं।
यह देखकर कि वह अभी भी जीवित हैं, उनके बेटे ने लोहे की छड़ से उनके माथे पर कई बार वार किया। फिर उसने उनकी साड़ी से उनका गला घोंट दिया, उनके शरीर को साड़ी में लपेट दिया और सीढ़ियों के नीचे स्थित बाथरूम में सीमेंट और ईंटों के नीचे दफना दिया।
दो दिन बाद 8 मई, 2024 को वह अपनी माँ के बारे में रिपोर्ट दर्ज कराने पुलिस स्टेशन गया और आरोप लगाया कि जब वह अस्पताल गए, तब उनकी माँ गायब हो गई थीं। हालांकि, उनके बयानों में विसंगतियों के कारण संदेह पैदा हुआ और कड़ी पूछताछ के बाद, उन्होंने अपना अपराध कबूल कर लिया।
निचली अदालत का फैसला
साक्ष्यों और गवाहों के बयानों पर विचार करने के बाद अदालत ने पाया कि अभियोजन पक्ष ने बिना किसी उचित संदेह के आरोपी के अपराध को सफलतापूर्वक सिद्ध कर दिया था।
न्यायालय ने शरद बिरधीचंद सारदा बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में निर्धारित परिस्थितिजन्य साक्ष्य मानक का हवाला देते हुए कहा कि अभियुक्त के विरुद्ध निम्नलिखित परिस्थितियां सामने आईं:
1. घटना के समय, अभियुक्त अपनी माँ के साथ घर पर अकेला था।
2. पूछताछ करने पर, अभियुक्त ने बताया कि उसकी माँ मंदिर गई थी।
3. अभियुक्त ने दावा किया कि वह स्वयं इलाज के लिए अस्पताल गया था।
4. अभियुक्त के खुलासे के आधार पर, मृतक के आभूषण और पैसे बरामद किए गए।
5. अभियुक्त के खुलासे के बाद मृतक का शव, जिसे बाथरूम में ईंटों और सीमेंट से दबा दिया गया था, खुदाई के दौरान बरामद किया गया।
सजा सुनाते समय न्यायालय ने माता-पिता-संतान के रिश्ते की पवित्रता को रेखांकित करने के लिए प्रमुख धर्मग्रंथों की नैतिक और धार्मिक शिक्षाओं का हवाला दिया।
रामचरितमानस से उद्धरण देते हुए न्यायालय ने कहा:
"सुनु जननी सोइ सुतु बडभागी। जो पितु मातु वचन अनुरागी ।। तनय मातु पितु तोषनिहारा। दुलर्भ जननी सकल संसारा ।।"
कोर्ट ने गुरु ग्रंथ साहिब का उल्लेख करते हुए करते हुए:
"...मात पिता की सेवा करही, अपना गति भित्ती जाणी। मात पिता को वीरा कहे वीर बिना कुल कैसे चले। मात पिता की आज्ञा सिर धरे, मात पिता की राखी करे। दयाल दया करे, जिसु माता का झोला निबालिया। सो दिनु मुठे भुलाणे।"
इसके साथ ही कोर्ट ने कुरान की सूरः अल इसरा का उल्लेख किया (17:23),
"...तुम्हारे रब ने फैसला कर दिया है कि उसके सिवा किसी की बंदगी न करो और माँ बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। यदि उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढापे को पहुँच जाये तो उन्हें उह तक न कहो और न उन्हें झिझको बल्कि उनसे शिष्टतापूर्वक बात करो।"
कोर्ट ने आगे पवित्र बाइबिल का उल्लेख करते हुए कहा,
"अपने पिता और अपनी माता का आदर करना। जो कोई अपने माता-पिता को मारे या शाप दे, उसे अवश्य मार डाला जाए।" (निर्गमन 21:15-17)
अदालत ने कहा कि ये सभी धर्मग्रंथ सार्वभौमिक रूप से पितृभक्ति, आज्ञाकारिता और माता-पिता की देखभाल, विशेषकर वृद्धावस्था में, के सिद्धांतों को बढ़ावा देते हैं।
इसी पृष्ठभूमि में अदालत ने उसे मृत्युदंड और 1,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। साथ ही उसे 7 साल के कठोर कारावास और 1,000 रुपये के जुर्माने की भी सजा सुनाई गई।
Case Title: State of MP v Deepak Pachouri (ST/70/2024)