इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अनिवार्य प्रावधानों के अनुपालन के संबंध में उत्तर प्रदेश के परिवहन आयुक्त से जवाब मांगा

Update: 2020-11-27 10:27 GMT

मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने आयुक्त से कहा है कि वे अगली तारीख यानी 6 जनवरी, 2020 से पहले एक हलफनामे के रूप में अपना जवाब दाखिल करें।

आदेश मेंं कहा गया कि,

"रिट याचिका में दिए गए तथ्यों पर विचार करने के बाद, हम मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अनिवार्य प्रावधान के अनुपालन के संबंध में उत्तरदाता, नंबर 2, परिवहन आयुक्त, उत्तर प्रदेश को बुलाना करना उचित समझते हैं। "

न्यायालय ने विशेष रूप से धारा 113 अर्थात वजन और उपयोग पर सीमाएं, धारा 114, 115 व 194 के अनुपालन पर जवाब माँगा है।

वर्तमान याचिका में याचिकाकर्ता ने ये भी कहा कि यद्यपि वाहनों पर ओवरलोडिंग की जांच करना आवश्यक है मगर कहीं - कहीं पर राज्य मशीनरी को एक अलग स्थान भी दिया गया है लेकिन उत्तर प्रदेश राज्य में, वाहन यात्री के साथ-साथ व्यापारी भी उपरोक्त प्रावधानों का उल्लंघन करते है। और ये भी कहा गया कि वाहनों में ओवरलोडिंग सड़क दुर्घटनाओं का एक बड़ा कारण है।

2017 में, यूपी सरकार ने ओवरलोड वाहनों से कम से कम 23 करोड़ रुपये का जुर्माना एकत्र किया था।

सितंबर 2019 में, केंद्र सरकार ने मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 को लागू किया, जिसमें 2000/- रू से 20,000/- रू तक जुर्माना बढ़ा दिया गया। संशोधन अधिनियम में आगे कहा कि जुर्माने मात्र भुगतान करने से उल्लंघनकर्ता को मुक्त नहीं किया जाएगा और मोटर वाहन को तब तक नहीं छोड़ा जायेगा जब तक कि अतिरिक्त भार व्यक्ति द्वारा हटा नहीं लिया जाता।

इस साल जुलाई में उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने ओवरलोडिंग सहित यातायात उल्लंघन के लिए उच्च दंड की घोषणा की थी।

केस का शीर्षक: सतीश कुमार चौधरी बनाम उत्तर प्रदेश और अन्य

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