इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग को 20 दिसंबर तक शहरी निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी करने से रोका

Update: 2022-12-14 16:13 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को राज्य निर्वाचन आयोग को शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव की अधिसूचना जारी करने पर 20 दिसंबर तक रोक लगा दी।

कोर्ट ने यह आदेश प्रदेश सरकार की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा सोमवार को पूछे गए सवाल का जवाब दाखिल करने के लिए 3 दिन का और समय मांगे जाने के बाद दिया गया। उल्‍लेखनीय है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा था कि क्या निकाय चुनाव के लिए सीटों को आरक्षित करने की प्रक्रिया में राज्य सरकार ने 'ट्रिपल टेस्ट' की औपचारिकताओं को पूरा किया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अनिवार्य किया हुआ है।

इससे पहले प्रदेश सरकार ने उक्त प्रश्न का जवाब देने के लिए एक दिन का समय मांगा था।

जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की खंडपीठ वैभव पांडे और अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर विचार कर रही है, जिसमें राज्य सरकार की उस अधिसूचना को चुनौती दी गई है, जिसमें उसने शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में कोटा तय करने पर आपत्ति मांगी थी।

याचिकाकर्ता इस तथ्य से व्यथित हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार विकास किशनराव गवली बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य LL 2021 SC 13 के मामले में ओबीसी कम्यूनिटी के राजनीतिक पिछड़ेपन को निर्धारित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 'ट्रिपल टेस्ट' औपचारिकताओं को पूरा किए बिना अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए राज्य में 4 मेयर सीटें आरक्षित करने के बाद शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराने का इरादा रखती है।

जब मामला बुधवार को सुनवाई के लिए पेश किया गया तो उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा कि उसे जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए तीन दिन का समय चाहिए। सरकार के अनुरोध को स्वीकार करते हुए, अदालत ने मामले को 20 दिसंबर को आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट किया और तब तक एसईसी को यूएलबी चुनाव अधिसूचना जारी नहीं करने का निर्देश दिया गया।

इसका मतलब यह होगा कि न तो राज्य चुनाव आयोग यूएलबी के लिए चुनाव की तारीखों की घोषणा कर सकता है और न ही राज्य विशेष रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए राज्य में 4 मेयर सीटों को आरक्षित करने का अंतिम आदेश दे सकता है।

मामला

5 दिसंबर को उत्तर प्रदेश सरकार ने नगर निगमों और नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों के अध्यक्षों में महापौर की सीटों के लिए आरक्षण की घोषणा करते हुए एक मसौदा अधिसूचना जारी की, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ, यह प्रावधान किया गया कि चार महापौर सीटें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षित होंगी।

मसौदा आदेश में कहा गया कि अंतिम आदेश देने से पहले, राज्य 7 दिनों के भीतर कोटा आवंटन पर आम जनता से आपत्तियां आमंत्रित की जा रही है। इससे असंतुष्ट होकर, याचिकाकर्ताओं ने मसौदा अधिसूचना को चुनौती देते हुए मौजूदा जनहित याचिका के साथ हाईकोर्ट का रुख किया, यह तर्क देते हुए कि राज्य सरकार उत्तर प्रदेश राज्य में विभिन्न स्तरों पर नगरपालिकाओं के चुनाव कराने की प्रक्रिया में है, हालांकि आरक्षण प्रदान करने के लिए सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य, 2022 LiveLaw (SC) 463 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया जा रहा है क्योंकि आज तक ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकता पूरी नहीं हुई है।

दूसरी ओर, राज्य ने तर्क दिया कि अब तक केवल एक मसौदा आदेश जारी किया गया है और आपत्तियां आमंत्रित की गई हैं, और इस प्रकार, जो कोई भी उक्त मसौदा आदेश से असंतुष्ट है, वह अपनी आपत्तियां दर्ज कर सकता है, और इस उद्देश्य के लिए फाइलिंग कर सकता है। मौजूदा जनहित याचिका समय से पहले दायर की गई थी।

यह भी तर्क दिया गया था कि यदि 'ट्रिपल टेस्ट' के लिए कोई कवायद की जाएगी, तो इससे चुनाव की प्रक्रिया में केवल देरी होगी, जो नगरपालिकाओं के लोकतांत्रिक ढांचे की अवधारणा के खिलाफ होगा।

हमारे पाठक नोट कर सकते हैं कि सुरेश महाजन केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि शहरी निकाय चुनावों के उद्देश्य से अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोई आरक्षण प्रदान नहीं किया जा सकता है, जब तक कि संबंधित राज्य विकास किशनराव गवली बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य LL 2021 SC मामले में निर्धारित ट्रिपल टेस्ट औपचारिकताओं को पूरा नहीं करता है।

संदर्भ के लिए, विकास किशनराव गवली मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ओबीसी श्रेणी के लिए आरक्षण का प्रावधान करने से पहले एक ट्रिपल टेस्ट का पालन करना आवश्यक है।

ट्रिपल टेस्ट के अनुसार-

(1) राज्य के भीतर स्थानीय निकायों के रूप में पिछड़ेपन की प्रकृति और निहितार्थों की एक समकालीन कठोर अनुभवजन्य जांच करने के लिए एक समर्पित आयोग की स्थापना करना;

(2) आयोग की सिफारिशों के आलोक में स्थानीय निकाय-वार प्रावधान किए जाने के लिए आवश्यक आरक्षण के अनुपात को निर्दिष्ट करना, ताकि अतिव्याप्ति का उल्लंघन न हो;

(3) अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित कुल सीटें, कुल 50 प्रतिशत से अधिक न हो।

यह ध्यान रखना आवश्यक है कि सुप्रीम कोर्ट ने आगे निर्देश दिया है कि यदि राज्य चुनाव आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम जारी करने से पहले इस तरह की कवायद पूरी नहीं की जा सकती है, तो सीटों (अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित को छोड़कर) को सामान्य श्रेणी के लिए अधिसूचित किया जाना चाहिए।

सोमवार को इस मामले की सुनवाई के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शुरुआत में कहा कि न्यायालय के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक था कि क्या शहरी स्थानीय निकायों के चुनावों के लिए सीटों को आरक्षित करने की प्रक्रिया में राज्य सरकार सुरेश महाजन (सुप्रा) के मामले में शासनादेश का पालन हो रहा है या नहीं।

इसलिए याचिका पर विचार करते हुए कोर्ट ने राज्य से जवाब मांगा था कि क्या 5 दिसंबर को ड्राफ्ट ऑर्डर जारी करने से पहले 'ट्रिपल टेस्ट' पूरा हो गया था। कोर्ट ने राज्य को ड्राफ्ट ऑर्डर के आधार पर कोई भी अंतिम आदेश देने से भी रोक दिया था। याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट शरद पाठक और पीयूष पाठक पेश हुए।

केस टाइटल: वैभव पाण्डेय बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, प्रधान सचिव के माध्यम से, शहरी विकास विभाग, सिविल सचिव, लखनऊ और अन्य। PIL No- 878 of 2022]


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