इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को तब्लीगी जमात के 16 विदेशी सदस्यों को ज़मानत दे दी। इन सभी पर आरोप है कि यह प्रशासन को कोई सूचना दिए बिना ही प्रयागराज में छुपे हुए थे और इन्होंने महामारी प्रोटोकॉल का उल्लंघन भी किया।
न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने उनकी (दो अलग-अलग) ज़मानत याचिकाओं को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया है कि पुलिस इस मामले में पहले ही आरोप पत्र दायर कर चुकी है।
इन आवेदकों में से सात इंडोनेशिया के निवासी हैं और नौ थाईलैंड के निवासी हैं। इन सभी के खिलाफ स्थानीय पुलिस ने आईपीसी की धारा 188, 269, 270, 271 व महामारी अधिनियम 1897 की धारा 3 और फाॅरनर एक्ट 1946 की धारा 14 (बी) के तहत मामला दर्ज किया था। यह सभी 21 अप्रैल, 2020 से जेल में बंद थे।
इनकी तरफ से दलील दी गई थी कि उन्हें वर्तमान मामले में 'गलत तरीके से फंसाया' गया है और उन्होंने फाॅरनर एक्ट सहित कानून के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं किया है। यह तर्क भी दिया गया था कि वे वैध पासपोर्ट और वीजा पर भारत आए थे और उनके दस्तावेजों में कोई कमी नहीं है।
न्यायालय ने मामले की योग्यता पर कोई विचार व्यक्त किए बिना ही इन सभी के आवेदनों को स्वीकार कर लिया है। इन सभी को एक व्यक्तिगत बांड प्रस्तुत करने और संबंधित अदालत की संतुष्टि के लिए दो जमानती पेश करने की शर्त पर जमानत दे दी गई है।
आदेश में कहा गया है कि
,''मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के साथ-साथ आवेदकों के वकीलों की तरफ से दी गई दलीलों, महामारी के प्रोटोकॉल और अभियुक्त-आवेदकों की वीजा व पासपोर्ट की वैधता आदि को देखते हुए इस मामले की योग्यता पर कोई राय व्यक्त किए बिना ही यह न्यायालय आवेदकों को जमानत प्रदान कर रहा है।''
आवेदकों ने प्रस्तुत किया था कि उनका कोई आपराधिक पृष्ठभूमि नहीं रही है और उनके न्यायिक प्रक्रिया से भागने या गवाहों के साथ छेड़छाड़ करने की भी कोई संभावना नहीं है।
इससे पहले भी हाईकोर्ट ने तब्लीगी जमात के छह सदस्यों की जमानत याचिका की स्वीकार कर लिया था। जो किर्गिस्तान के नागरिक थे।
हाईकोर्ट ने उस आदेश में कहा था कि
''कानून जमानत देने से संबंधित मामले में भारतीय नागरिकों और विदेशी नागरिकों के बीच किसी भी तरह के भेदभाव की अनुमति नहीं देता है। प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के दौरान यह अनुमेय है कि न्यायालय विभिन्न शर्त लगा सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सकें कि मामले की ट्रायल का सामना करने के लिए अभियुक्त उपलब्ध या पेश हो सकें। किसी आवेदक को सिर्फ इस आधार पर जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि वह एक विदेशी नागरिक है।''
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