"बिना पूछे नौकर का सिम इस्तेमाल करना उसकी प्रतिष्ठा के खिलाफ": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गैंगस्टर विकास दुबे की पत्नी की आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज की

Update: 2021-10-07 05:18 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में मारे गए गैंगस्टर विकास दुबे (बीकरू, कानपुर) की पत्नी ऋचा दुबे द्वारा दायर एक याचिका को खारिज कर दिया। इसमें उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 419 और 420 के तहत नौकर की इच्छा के बिना उसके सिम कार्ड का उपयोग करने के लिए दर्ज एक मामले में पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी।

न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि आईपीसी की धारा 419, 420 के तहत अपराध के लिए सामग्री पूरी तरह से उसके खिलाफ बनाई गई।

खंडपीठ ने जोर देकर कहा कि उसके कृत्यों और चूक ने नौकर की प्रतिष्ठा को धूमिल किया, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसके जीवन के अधिकार का हिस्सा है।

संक्षेप में मामला

अभियोजन पक्ष के अनुसार, ऋचा दुबे एक सिम कार्ड का उपयोग कर रही थी, जो मूल रूप से महेश के नाम पर था। महेश विकास दुबे (बीकरू घटना) का नौकर था और ऋचा दुबे की पत्नी है। आरोप है कि ऋचा दुबे महेश के सिम का इस्तेमाल उसकी इच्छा खिलाफ कर रही थी।

इस मामले में एफआईआर एसआईटी की विस्तृत रिपोर्ट के आधार पर दर्ज की गई। रिपोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंची कि ऋचा दुबे द्वारा दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के दिशानिर्देशों का घोर उल्लंघन किया गया था, जो कि प्रकृति में अपराध है।

विशेष रूप से कुख्यात बिकरू मुठभेड़ के बाद, जिसमें पिछले साल दुबे और उसके सहयोगियों द्वारा आठ पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतार दिया गया था। महेश (नौकर) ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत एक बयान दर्ज कराया कि उसके मोबाइल सिम कार्ड का इस्तेमाल ऋचा दुबे द्वारा 2017 से उसकी मर्जी के खिलाफ किया गया।

उसने यह भी दावा किया कि उसे कोई 'अनापत्ति प्रमाण पत्र' नहीं दिया गया। हालांकि, यह ट्राई के दिशानिर्देशों के अनुसार अनिवार्य है। उक्त प्रमाण पत्र कहता है कि रक्त संबंध के अलावा, सिम कार्डधारक का नाम बिना अपनी "मर्जी" के किसी अन्य व्यक्ति द्वारा बदला या उपयोग नहीं किया जा सकता। उसने यह भी दावा किया कि चूंकि दुबे एक गैंगस्टर था, इसलिए उसके पास उसके निर्देश का पालन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

दूसरी ओर, ऋचा दुबे ने तर्क दिया कि विचाराधीन सिम कार्ड का उसके द्वारा किसी भी अपराध में दुरुपयोग नहीं किया गया, इसलिए उसने जब भी जरूरत पड़ी अपने नौकर के मोबाइल का इस्तेमाल किया और महेश को इससे कोई समस्या नहीं थी।

न्यायालय की टिप्पणियां

शुरुआत में कोर्ट ने कहा कि ऋचा दुबे ने एक दबंग स्थिति में होने के कारण महेश को निर्देश दिया कि वह उसे सिम दे और उसका उपयोग अपने लाभ के लिए करे।

इसके अलावा, आईपीसी की धारा 415 के तहत सिम कार्ड को एक संपत्ति के रूप में रखते हुए अदालत ने कहा कि डर के कारण नौकर अपनी मर्जी के खिलाफ अपने सिम कार्ड का इस्तेमाल करने के लिए एक प्रसिद्ध गैंगस्टर मालिक के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का साहस नहीं जुटा सका।

अंत में यह निष्कर्ष निकालते हुए कि आवेदक के खिलाफ प्रथम दृष्टया अपराध बनता है, अदालत ने इस प्रकार नोट किया कि उसने उसकी याचिका को खारिज कर दिया:

"अपराध केवल प्रतिरूपण और धोखा देने, उसके नौकर और उसे उसकी सहमति के बिना संपत्ति (सिम कार्ड) देने के लिए प्रेरित करने पर हैं। इसलिए, आईपीसी की धारा 419, 420 के तहत अपराध के लिए सामग्री पूरी तरह से बनाई गई। साथ ही ऐसा करने में आवेदक का स्पष्ट पुरुषार्थ है, जो प्रथम दृष्टया रिकॉर्ड के सामने स्पष्ट है और भारत सरकार, संचार मंत्रालय और आईटी विभाग द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के खंड -सात और 10 के अनुसार भी आवेदक के खिलाफ प्रथम दृष्टया अपराध है।"

संबंधित समाचार में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को मारे गए गैंगस्टर विकास दुबे की नौकरानी रेखा अग्निहोत्री को पिछले साल कानपुर के कुख्यात बिकरू मुठभेड़ में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या में अपने पति और अन्य आरोपी व्यक्तियों को कथित रूप से सहायता देने और उकसाने के लिए जमानत देने से इनकार कर दिया।

केस का शीर्षक - ऋचा दुबे बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य

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