क्लाइंट और कोर्ट को धोखा देने से नाराज़ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकील की निंदा की, याचिकाकर्ताओं पर 50 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को सख़्त नाराजगी व्यक्त की और एक वकील को उसी एफआईआर के खिलाफ याचिका खारिज होने के 5 दिन बाद आपराधिक रिट याचिका (एफआईआर को चुनौती देने) दायर करने के लिए फटकार लगाई।
जस्टिस राहुल चतुर्वेदी और जस्टिस विवेक कुमार सिंह की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के साथ-साथ वकील के आचरण को 'अत्यधिक निंदनीय' बताते हुए याचिकाकर्ता पर 50 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया।
कोर्ट ने दूसरी याचिका दायर करने की निंदा करते हुए टिप्पणी की,
“यह क्लाइंट के साथ-साथ अदालत के साथ भी धोखा है। यह स्थापित है कि न्यायालय से अनुमति लिए बिना कोई दूसरी रिट याचिका दायर नहीं की जा सकती, लेकिन याचिकाकर्ता ने कार्रवाई के एक ही कारण के लिए लगातार रिट याचिका दायर करने का दुस्साहस किया।”
मूलतः यह मामला सोमवार (18 सितंबर) को सामने आया, जब अदालत एफआईआर को चुनौती देने वाली रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, क्योंकि पीठ ने कहा कि उसी याचिकाकर्ता ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आईपीसी की धारा 363 और 366 के तहत दर्ज उसी एफआईआर को चुनौती देते हुए पहले भी एक याचिका दायर की थी।
इसके बाद अदालत ने पिछली रिट याचिका का रिकॉर्ड मांगा और इस संबंध में याचिकाकर्ताओं के वकील की उपस्थिति में आदेश पारित किया गया। हालांकि, जब मंगलवार को मामला बुलाया गया तो उक्त वकील उपस्थित नहीं हुए।
यह देखते हुए कि याचिकाकर्ताओं के वकील अदालती कार्यवाही से बच रहे हैं, अदालत एजीए की मदद से याचिका पर फैसला करने के लिए आगे बढ़ी।
गौरतलब है कि कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दोनों याचिकाएं एक ही एफआईआर के खिलाफ हैं और वर्तमान याचिका 13 सितंबर को रिपोर्टिंग के लिए प्रस्तुत की गई, जबकि पिछली रिट याचिका 6 सितंबर को खारिज कर दी गई।
यह देखते हुए कि पिछली याचिका खारिज होने के अगले पांच दिनों के भीतर वर्तमान नई याचिका तैयार की गई और दायर की गई, अदालत ने वकील के साथ-साथ याचिकाकर्ताओं के कृत्य की निंदा की और जोर देकर कहा कि इससे सख्ती से निपटा जाना चाहिए।
नतीजतन, अदालत ने जुर्माने के साथ याचिका खारिज कर दी। याचिकाकर्ताओं को इस न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष 10 अक्टूबर, 2023 तक राशि जमा कराने का निर्देश देते हुए 50 हज़ार का जुर्माना लगाया। ऐसा न करने पर न्यायालय ने जिला मजिस्ट्रेट कासगंज को आदेश दिया कि वह 'भू-राजस्व' के माध्यम से राशि की वसूली करें और इसे याचिकाकर्ता से वसूल करें और 30 अक्टूबर तक राशि को इलाहाबाद हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति में जमा करवाएं।