"कीमती दवा की आपराधिक बर्बादी": इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बिना इस्तेमाल हुए COVID 19 वैक्सीन को कचरे में फेंकने की आरोपी नर्स को जमानत देने से इनकार किया

Update: 2021-07-19 05:26 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते COVID-19 वैक्सीन की 29 खुराकों को जरूरतमंदों को दिए बिना कचरे में फेंककर उनकी आपराधिक बर्बादी में शामिल आरोपी नर्स को अग्रिम जमानत देने से इनकार किया।

जमानत से इनकार करते हुए अदालत ने टिप्पणी की कि जिस अपराध के लिए उसे आरोपी बनाया गया है, वह वास्तव में गंभीर प्रकृति का है। साथ ही यह बड़े पैमाने पर समाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि,

"न्यायालय उन 29 व्यक्तियों के बारे में अपनी गहरी चिंता दर्ज करता है, जो बिना वैक्सीनेशन के रह गए और इस गलत धारणा के तहत समाज में अपने वायरस के संभावित प्रसारक के रूप में स्वतंत्र रूप से घूम रहे हैं कि उन्हें वैक्सीन लगाई गई है। न्यायालय इस तथ्य के लिए अपना सबसे मजबूत अपवाद भी दर्ज करता है कि वहां कीमती दवा की आपराधिक बर्बादी हुई है।"

संक्षेप में मामला

आवेदक निहा खान प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जमालपुर अलीघर में एएनएम के पद पर कार्यरत है। उसके खिलाफ एक विभागीय जांच शुरू की गई थी। इसके बाद यह बताने के लिए एक एफआईआर दर्ज की गई थी कि वह कोविड वैक्सीन की कथित आपराधिक बर्बादी में प्रथम दृष्टया शामिल है।

जांच रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि वैक्सीन की 29 खुराकों को उसके संबंधित जरूरतमंदों को दिए बिना कचरे में फेंक दिया गया। लेकिन उनके नाम पोर्टल पर अपलोड कर दिए गए। इस प्रकार, 29 व्यक्तियों को बिना वैक्सीनेशन के छोड़ दिया गया।

आईपीसी की धारा 203, 176, 465, 427 और 120बी, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम, 1984 धारा 3/4 और महामारी अधिनियम की धारा 3/4 के तहत मामले में गिरफ्तारी की आशंका के चलते उसने इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष अग्रिम जमानत के अनुदान के लिए आवेदन किया था।

उसने बिना अपना काम पूरा किए सीधे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, यानी नीचे की अदालत से अग्रिम जमानत खारिज हुए बिना। हालांकि, अदालत ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि जिन कारणों का खुलासा / प्रचार किया गया वे सुनने और योग्यता के आधार पर निर्णय लेने के लिए काफी मजबूत है।

न्यायालय की टिप्पणियां

शुरुआत में मामले की अंतिम योग्यता के बारे में कोई राय व्यक्त किए बिना न्यायालय ने निम्नलिखित शब्दों में अपनी प्रारंभिक चिंता व्यक्त की:

"हाल ही में पूरे देश ने अदृश्य वायरस के प्रकोप को देखा है, जहां हजारों नागरिकों ने हमें हमेशा के लिए संसार को छोड़ दिया है। इस तथ्य के बावजूद हमारे पास सीमित संसाधन हैं। हमारे वैज्ञानिक ने इस घातक वायरस से हमारे साथी नागरिकों को बचाने के लिए दिन रात एक करके एक दवा का निर्माण किया है।"

कोर्ट ने आगे कहा,

"भारत सरकार भी एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते एक मिशन मोड पर है और अपने नागरिकों को पूरे भारत में मुफ्त में वैक्सीनेट करने के लिए सभी प्रयास कर रही है। हमारे स्वास्थ्य योद्धा अपने स्वयं के आराम की परवाह किए बिना दिन-प्रतिदिन रोगी की सेवा कर रहे हैं, बल्कि अपनी और अपने परिवार के सदस्यों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। ऐसी परिस्थितियों में हम इस मिशन में कोई गलती नहीं कर सकते हैं।"

इसलिए, अपराध की गंभीरता, आवेदक की कथित प्रथम दृष्टया संलिप्तता को ध्यान में रखते हुए अदालत ने तदनुसार अग्रिम जमानत की मांग करने वाले तत्काल आवेदन को खारिज कर दिया।

केस का शीर्षक - निहा खान बनाम यूपी राज्य और अन्य 

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