हत्या मामले में मुख्य आरोपी को भगाने में मदद करना साफ तौर पर मिलीभगत दिखाता है: हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत से इनकार किया
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक आरोपी द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका खारिज की, जिस पर सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर कंचन कौर भाभी की हत्या के मुख्य संदिग्ध को भागने में मदद करने का आरोप है। कोर्ट ने कहा कि ऐसा व्यवहार साफ तौर पर मिलीभगत दिखाता है और याचिकाकर्ता को गिरफ्तारी से पहले के चरण में विवेकाधीन राहत का हकदार नहीं बनाता।
जस्टिस सुमीत गोयल ने कहा,
"याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर मुख्य आरोपी अमृतपाल सिंह को घटना के तुरंत बाद जांच एजेंसी के अधिकार क्षेत्र से भागने में मदद की, जो साफ तौर पर उसकी मिलीभगत और जांच को पटरी से उतारने की कोशिश को दिखाता है। इस कोर्ट की राय में अग्रिम जमानत की याचिका पर विचार करते समय ऐसे व्यवहार को हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह तथ्य कि अमृतपाल सिंह और वर्तमान याचिकाकर्ता दोनों फरार हैं, याचिकाकर्ता को विवेकाधीन राहत का हकदार नहीं बनाता है।"
यह याचिका भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 482 के तहत दायर की गई, जिसमें गिरफ्तारी से पहले जमानत मांगी गई, जो बठिंडा में BNSS की धारा 103, 238, 61(2) और 3(5) के तहत अपराधों के लिए दर्ज की गई।
यह मामला लुधियाना की सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर कंचन कुमारी उर्फ कंचन कौर भाभी की मौत से संबंधित है। उनका सड़ा-गला शव बठिंडा में एक कार के अंदर मिला था।
FIR उनकी मां ने दर्ज कराई, जिन्होंने बताया कि मृतक 09.06.2025 को अमृतपाल सिंह नाम के एक व्यक्ति का फोन आने के बाद घर से निकली थी, जिसने उसे कार प्रमोशन के काम के लिए बुलाया था। जब वह वापस नहीं लौटी और उससे संपर्क नहीं हो पाया तो शिकायतकर्ता को बाद में पता चला कि उसकी बेटी का शव बरामद कर लिया गया।
शुरुआत में अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज किए गए इस मामले में बाद में जांच के बाद जसप्रीत सिंह और निर्मलजीत सिंह को गिरफ्तार किया गया, जिनके खुलासे के बयानों में कथित तौर पर वर्तमान याचिकाकर्ता की संलिप्तता का पता चला। अभियोजन पक्ष के अनुसार, याचिकाकर्ता ने अपराध के तुरंत बाद मुख्य आरोपी अमृतपाल सिंह को अमृतसर हवाई अड्डे की ओर भागने में मदद की, जिसके कारण और भी दंडात्मक प्रावधान जोड़े गए।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसका नाम FIR में नहीं था और उस पर कोई स्पष्ट कार्य का आरोप नहीं लगाया गया। उसका नाम केवल सह-आरोपियों के खुलासे के बयानों से सामने आया। उसका मृतक से कोई संबंध नहीं है और उस पर कोई मकसद साबित नहीं हुआ और उससे कुछ भी बरामद नहीं किया जाना है।
याचिका का विरोध करते हुए राज्य ने तर्क दिया कि इस अपराध में एक युवा महिला की संदिग्ध मौत शामिल है, जिससे आरोप बहुत गंभीर हो जाते हैं।
राज्य के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता ने मुख्य आरोपी को भागने में सक्रिय रूप से मदद की, जो न्याय में बाधा डालने के बराबर है और याचिकाकर्ता और मुख्य आरोपी दोनों फरार थे।
कोर्ट ने कहा कि हालांकि याचिकाकर्ता का नाम शुरुआती FIR में नहीं था, लेकिन जांच से पहली नज़र में घटना के तुरंत बाद मुख्य आरोपी को भागने में मदद करने में उसकी भूमिका का पता चलता है। कोर्ट ने कहा कि अग्रिम जमानत पर विचार करते समय ऐसे आचरण को हल्के में नहीं लिया जा सकता।
जस्टिस गोयल ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि हिरासत में पूछताछ अनावश्यक है, क्योंकि कुछ भी बरामद नहीं किया जाना है, यह देखते हुए कि फरार आरोपी का पता लगाने और घटनाओं की व्यापक श्रृंखला का पता लगाने के लिए पूछताछ आवश्यक है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के कथित आपराधिक इतिहास और उसके फरार होने के आचरण पर भी ध्यान दिया।
स्टेट बनाम अनिल शर्मा (1997) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने दोहराया कि हिरासत में पूछताछ अक्सर महत्वपूर्ण होती है और गिरफ्तारी से पहले जमानत गंभीर अपराधों में प्रभावी जांच में बाधा डाल सकती है।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक हित के बीच संतुलन बनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि अपराध की गंभीरता, मुख्य आरोपी को भागने में मदद करने में याचिकाकर्ता की विशिष्ट भूमिका और चल रही जांच उसे अग्रिम जमानत का हकदार नहीं बनाती है।
तदनुसार, याचिका खारिज कर दी गई।
Title: Ranjit Singh v. State of Punjab