'जिन अधिवक्ताओं को कंप्यूटर की कम जानकारी है, वे अदालतों से संपर्क नहीं कर सकते', दिल्ली बार काउंसिल ने लॉकडाउन में सुनवाई के लिए नया सिस्टम बनाने का अनुरोध किया

Update: 2020-04-15 03:30 GMT

दिल्‍ली बार काउंसिल के चेयरमैन केसी मित्तल ने दिल्‍ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने लॉकडाउन के मद्दनजर पेश आ रही मुश्किलों को कम करने के लिए सीमित कामकाज का एक सिस्टम बनाने की बात कही है।

पत्र में उस संकटपूर्ण चरण को स्वीकार किया गया है, जिससे होकर देश गुजर रहा है और जिसके परिणामस्वरूप अदालतों ने वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के जर‌िए केवल जरूरी मामलों की सुनवाई का फैसला किया है और कोर्ट के कामकाज को सीमित किया गया है।

पत्र में उन कठिनाइयों की चर्चा की गई है, जिनका सामना अधिवक्ताओं का ऐसा वर्ग कर रहा है, जिन्हें कंप्यूटर की जानकार नहीं हैं और इसलिए वो न्यायालयों से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं।

सा‌थ ही पत्र में अंडर ट्रायल कैदियों की रिहाई के मामलों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने कई अंडर ट्रायल्स को रिहा किया है, हालांकि अब भी कई कैदी जेलों में बंद हैं ओर वो कोर्ट से संपर्क करने में असमर्थ हैं।

ऐसे मामले भी हैं, जिनमें लॉकडाउन से पहले आवेदन किए गए थे, वे विचाराधीन हैं लेकिन अब तक सूचीबद्ध नहीं किए गए हैं।

ऐसे कई मामले हैं, जिनमें राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए गए हैं, लेकिन उन्होंने उन पर ध्यान नहीं दिया है, जिसके चलते व्यक्ति अब तक जेल में ही बंद है। कई अन्य जरूरी मामलों में भी ऐसा ही हाल है।

पत्र में दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया गया है कि व्यापक मापदंड और पर्याप्त सुरक्षात्मक उपायों का निर्धारण करें ताक‌ि न्यायालय परिसर में अधिवक्ताओं के प्रवेश को स‌ीमित और विनियमित किया जा सके और न्यूनतम अदालती कामकाज हो सके।

"इसमें कोई शक नहीं है, घर में बेकार बैठना हमारी मजबूरी है, लेकिन इससे भी ज्यादा, यह मुकदमेबाजों के साथ अन्याय है और किसी भी तरह, हमारा प्रयास हो कि हम अपने संसाधनों का उपयोग करें ताकि कोरोना वायरस से लड़ने के लक्ष्य के साथ समझौता किए बिना अधिक से अधिक मामलों की सुनवाई कर सकें।"

पत्र में किसी भी प्रकार के सुरक्षा उपायों और प्रक्रियाओं के संदर्भ में, जिन्हें न्याय की सुगम और सुरक्षात्मक सुविधा प्रदान करने के लिए उच्‍च न्यायालय द्वारा तैयार किया जा सकता है, को बार काउंसिल ऑफ दिल्ली की ओर से पूर्ण सहयोग किए जाने का दावा किया गया है।

बार काउंसिल ने इस संदर्भ में किसी ऐप या किसी अन्य प्रणाली के निर्माण में सहयोग का भी वादा किया है।

पूरी चिट्ठी पढ़ें

माननीय मुख्य न्यायाधीश

दिल्ली का उच्च न्यायालय

नई दिल्ली।

आदरणीय महोदय,

COVID-19 के संक्रमण के के कारण देश संकटपूर्ण दौर से गुजर रहा है। कई विकसित देशों में बड़ी संख्या में मौतें हुई हैं। भारत में लॉकडाउन के जर‌िए हालात पर काबू पाया जा सकता है।

COVID 19 के कारण अदालतों ने भी नियमित कामकाज बंद कर दिया था। शुरुआत में वीडियोकांफ्रेंसिंग के जर‌िए से बेहद जरूरी मामलों की सुनवाई ही हुई, बाद में बेंचों की संख्या बढ़ाई गई और जरूरी मामलों को सुनवाई में आंशिक ढील दी गई।

हालांकि ये अनुभव बहुत उत्साहजनक नहीं रहे हैं, क्योंकि अधिवक्ताओं के एक हिस्से को छोड़कर हाईकोर्ट और जिला अदालतों के अधिकांश अधिवक्ता, जिन्हें कंप्यूटर की जानकारी नहीं है, वो वीडियोकांफ्रेंसिंग की सुविधा का लाभ नहीं उठा सके और माननीय न्यायालय से संपर्क करने में विफल रहे। कई अधिवक्ताओं ने हमें अवगत कराया है कि वे सच्‍चे मामलों में भी माननीय न्यायालयों से संपर्क नहीं कर पा रहे हैं।

माननीय उच्च न्यायालय ने, भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के संदर्भ में, अंडर ट्रायल्स के मामलों में पार्यप्त राहत दी है, हालांकि समग्र स्थिति को देखते हुए एक प्रणाली विकसित करना जरूरी लगता है, ताकि आम आदमी की मुश्क‌िलों को कम करने के लिए मामलों में अधिक सुनवाई हो सके। हम जानते हैं कि कई अंडर ट्रायल जेलों में बंद हैं। वे जमानत के लिए माननीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाने में सक्षम नहीं हैं, और कई मामलों में, जहां लॉकडाउन से पहले आवेदन को किए गए था, विचाराधीन हैं, उन्हें सूचीबद्ध नहीं किया जा रहा है। कई ऐसे मामले हैं, जहां राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए गए, लेकिन उन्होंने उन पर ध्यान नहीं दिया और इसके परिणामस्वरूप, व्यक्ति अब तक जेल में ही बंद है।

इसी तरह, अन्य मामलों में, जहां अंतरिम राहत के लिए तत्काल सुनवाई की आवश्यकता है, मामलों को सुना नहीं जा रहा है।

मौजूदा स्थिति में यदि नियमित सुनवाई संभव नहीं है तो कुछ न्यायालयों में कामकाज के लिए कुछ व्यापक मापदंडों और पर्याप्त सुरक्षा उपायों का निर्धारण किया जासकता है, अदालतों में एक सुरक्षात्मक तंत्र के जर‌िए अधिवक्ताओं के प्रवेश को सी‌मित और विनियमित किया जा सकता है ताकि न्यूनतम संभव कार्य किए जा सकें।

चूंकि अधिकांश अधिवक्ता पूरी तरह से वीडियोकांफ्रेंसिंग सुविधा का लाभ उठाने की स्थिति में नहीं हैं, इसलिए ज्यादा मामलों की सुनवाई के ‌लिए ऐप या किसी तंत्र को स्थापित करने पर भी विचार किया जा सकता है।

इसमें कोई शक नहीं है, घर में बेकार बैठना हमारी मजबूरी है, लेकिन इससे भी ज्यादा, यह मुकदमेबाजों के साथ अन्याय है और किसी भी तरह, हमारा प्रयास हो कि हम अपने संसाधनों का उपयोग करें ताकि कोरोना वायरस से लड़ने के लक्ष्य के साथ समझौता किए बिना अधिक से अधिक मामलों की सुनवाई कर सकें।

दिल्ली बार काउंसिल पूरी तरह से माननीय न्यायालय के साथ सहयोग करेगा और सभी आवश्यक सुरक्षा उपायों और प्रक्रियाओं का पालन करेगा और यह ऐप या किसी अन्य प्रणाली के निर्माण में भी मदद करेगा, जैसा कि माननीय अदालत द्वारा सुझाया जाएगा।

सस्नेह,

(केसी मित्तल)

अध्यक्ष,

बार काउंसिल ऑफ दिल्ली

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