ओपन कोर्ट में एडवोकेट ने सरकारी वकील के साथ दुर्व्यवहार करने का प्रयास किया: उड़ीसा हाईकोर्ट ने 'उपयुक्त प्राधिकारी' द्वारा कार्रवाई का निर्देश दिया
उड़ीसा हाईकोर्ट ने घटनाओं के एक अमान्य मोड़ पर ओपन कोर्ट मामले की सुनवाई के दौरान सरकारी वकील के साथ मारपीट करने के प्रयास के प्रथम दृष्टया अवमाननापूर्ण आचरण के लिए एक दूसरे वकील के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया।
जस्टिस संजीब कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने घटना पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा,
“अदालतों के समक्ष पेश होने वाले वकील न्यायालय के अधिकारी हैं और उनसे बेंच के प्रति शिष्टाचार और सम्मान बनाए रखने की उम्मीद की जाती है। हालांकि, एडवोकेट बहाली का ऐसा अनियंत्रित और आक्रामक व्यवहार न केवल न्यायालय की महिमा को कमजोर करता है, बल्कि न्यायालय की मर्यादा को भी कमजोर करता है, जो पूरी तरह से अनुचित है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। इस अप्रिय घटना के कारण अदालती कार्यवाही गंभीर रूप से प्रभावित हुई।”
अदालत एक लड़के की मां द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसकी पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी। याचिकाकर्ता ने अपने बेटे की हिरासत में अप्राकृतिक मौत के लिए 50 लाख रुपये के मुआवजे की मांग की है।
पिछली तारीख पर अदालत ने कुछ पुलिस कर्मियों को व्यक्तिगत रूप से पेश होने का आदेश दिया गया था, जो मृतक लड़के की मृत्यु के समय मुंबई से कोलकाता तक ट्रेन में उसके साथ थे। पुलिस ने कहा कि उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन मृतक ने उन्हें अपनी बेचैनी के बारे में बताया और अचानक ट्रेन के प्रवेश द्वार की ओर गया। वहां से वह चलती ट्रेन से कूद गया, जिसके परिणामस्वरूप उसकी असामयिक मृत्यु हो गई।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए एडवोकेट बिप्लब पी.बी. बहाली ने पुलिस अधिकारी द्वारा दिए गए बयान का पुरजोर विरोध किया और कहा कि पुलिस द्वारा दिया गया बयान बिल्कुल गलत और मनगढ़ंत है।
इस समय राज्य की ओर से पेश एडिशनल सरकारी वकील ज्ञानरंजन महापात्र ने एडवोकेट बहाली की दलीलों का विरोध किया। इसके बाद ओपन कोर्ट में दोनों के बीच अभद्र भाषा के साथ तीखी नोकझोंक हुई।
इस दौरान, क्रोधित होकर एडवोकेट बहाली ने एएससी महापात्रा के साथ दुर्व्यवहार करने का प्रयास करते हुए चिल्लाकर कहा कि "आपको बहुत जूनियर होने के नाते इस प्रकार का बयान नहीं देना चाहिए। आप हमेशा शरारत करते रहते हैं और अपने सीनियर क्लीग्स के साथ दुर्व्यवहार करते हैं।"
जस्टिस पाणिग्रही ने यहां हस्तक्षेप करने की कोशिश की और दोनों एडवोकेट से शांत होने और अदालत के सौहार्दपूर्ण माहौल को खराब न करने का अनुरोध किया। न्यायाधीश ने उनसे उचित शिष्टाचार बनाए रखने को भी कहा, क्योंकि वे न्यायालय के अधिकारी हैं।
हालांकि, कोर्ट को उस वक्त झटका लगा, जब एडवोकेट बहाली ने आक्रामक तरीके से बेंच को जवाब देते हुए कहा कि कोर्ट उनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई कर सकता है। उन्हें इसकी परवाह नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि यहां तक कि कोर्ट उनके खिलाफ बार काउंसिल या चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को भी लिख सकता है। उन्हें उसकी भी परवाह नहीं है।
जस्टिस पाणिग्रही ने बेहद निराशा के साथ कहा,
"याचिकाकर्ता की ओर से अदालत में पेश हुए एडवोकेट बहाली का ऐसा दुर्व्यवहार अदालत की पवित्रता को ठेस पहुंचाता है और अदालत के सुचारू कामकाज में बाधा डालता है।"
न्यायालय की यह सुविचारित राय थी कि एडवोकेट बहाली का आचरण एक वकील के लिए पूरी तरह से अशोभनीय है। उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया यह संविधान के अनुच्छेद 215 के सपठित न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 14 के तहत दंडनीय आपराधिक अवमानना का मामला बनता है।
न्यायालय ने आदेश दिया,
"उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए मामले को कानून के अनुसार कदम उठाने के लिए उचित प्राधिकारी के समक्ष रखा जाए।"
याचिकाकर्ता के वकील: ब्योमकेश त्रिपाठी और बिप्लब पी.बी. बहली। राज्य के लिए वकील: ज्ञानरंजन महापात्र, एडिशनल सरकारी वकील