लंबे समय तक शादी का झांका देकर यौन संबंध बनाने के आरोपी को हाईकोर्ट ने जमानत देने से किया इनकार
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने शादी का झूठा वादा करके महिला का यौन शोषण करने के आरोपी व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसी सामग्री है, जो दर्शाती है कि याचिकाकर्ता ने सोशल मीडिया पर शिकायतकर्ता से संबंध बनाए।
अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता ने शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाए और फिर अपना वादा पूरा करने में विफल रहा।
जस्टिस संजय धर की पीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि FIR प्रेरित या निराधार है, जबकि यह देखते हुए कि जांच के चरण में जमानत देने से महत्वपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य एकत्र करने में बाधा आ सकती है और ऐसे अपराधों के पीड़ितों को गलत संकेत मिल सकता है।
हालांकि अदालत ने परिवार के सदस्यों के संबंध में FIR यह कहते हुए खारिज की कि अन्य याचिकाकर्ताओं के खिलाफ FIR में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो दर्शाता हो कि वे याचिकाकर्ता नंबर 1 और प्रतिवादी नंबर 2 के बीच यौन संबंधों के बारे में जानते हैं। उनके खिलाफ मुकदमा चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
याचिकाकर्ता नंबर 1 के संबंध में न्यायालय ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है, जिसमें आरोप बेबुनियाद हों। इसने कहा कि आरोपों का समर्थन करने के लिए रिकॉर्ड पर सामग्री मौजूद है।
न्यायालय ने आरोपों की संवेदनशीलता और गंभीरता पर प्रकाश डाला और डिजिटल साक्ष्य एकत्र करने के महत्व पर जोर दिया।
इसने कहा कि जांच एजेंसी को याचिकाकर्ता के इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को जब्त करना होगा। यदि अग्रिम जमानत दी जाती है तो संभावना है कि वह ऐसे साक्ष्य नष्ट कर सकता है, जिससे जांच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
न्यायालय ने यह भी चेतावनी दी कि समय से पहले जमानत देने से यौन शोषण के अन्य पीड़ितों को आगे आने से हतोत्साहित किया जा सकता है, उन्होंने कहा कि "इससे अभियोक्ता पर हतोत्साहित करने वाला प्रभाव पड़ेगा, जिसने आरोपी के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के लिए सामाजिक बाधाओं का सामना किया।"
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि FIR बाद में सोची-समझी कार्रवाई का नतीजा है और याचिकाकर्ता द्वारा जिला मोबाइल मजिस्ट्रेट, अनंतनाग (डीएमएम) के समक्ष शिकायतकर्ता के खिलाफ दायर की गई आपराधिक शिकायत के जवाब में की गई, जिसमें शादी का प्रस्ताव छोड़ने के बदले 17 लाख रुपये की वसूली करने का आरोप लगाया गया।
अदालत ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि याचिकाकर्ता नंबर 1 ने प्रतिवादी नंबर 2 के खिलाफ तभी शिकायत दर्ज कराई, जब उसने उसके घर पर शादी का वादा तोड़ने को लेकर उससे बहस की, जिसके बाद गांव की औकाफ कमेटी ने हस्तक्षेप किया, जिससे पता चलता है कि उसकी शिकायत उसकी ओर से कार्रवाई से बचने के लिए एक प्रतिक्रिया हो सकती है।
वकील ने यह भी तर्क दिया कि कुछ परिस्थितियों के कारण शादी करने का वादा तोड़ना भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 69 के तहत अपराध नहीं हो सकता।
अदालत ने कहा कि अग्रिम जमानत का दावा अधिकार के रूप में नहीं किया जा सकता, खासकर बलात्कार या शादी का झूठा वादा करके धोखा देने जैसे गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों में।
अदालत ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक हित के बीच संतुलन बनाने पर जोर दिया और पीड़ित के अधिकारों को बनाए रखा जाना चाहिए।
जांच का प्रारंभिक चरण साक्ष्य संकलन के लिए महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से सोशल मीडिया और डिजिटल संचार से जुड़े मामलों में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के लिए।
Case-Title: SHAKIR-UL-HASSAN & ORS. Vs UT OF J&K & another, 2025