महामारी में अंतरिम जमानत का लाभ लेते हुए अभियुक्त को सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत डिफॉल्ट जमानत का 'दोहरा लाभ' नहीं मिल सकता : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक आरोपी को डिफॉल्ट जमानत देने से इनकार कर दिया, क्योंकि उसको हिरासत में लेने के दो सप्ताह बाद ही कोरोना महामारी के कारण अंतरिम जमानत दे दी गई थी, जिसे समय-समय पर बढ़ा दिया गया था और उसे अब चार सितम्बर को आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता है।
न्यायमूर्ति एच एस मदान इस मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ दायर एक रिविजन याचिका पर विचार कर रहे थे। निचली अदालत ने सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत वैधानिक जमानत देने से इनकार कर दिया था।
न्यायमूर्ति मदान ने फैसला सुनाया कि वह ''निश्चित रूप से ऐसी रियायत के हकदार नहीं हैं।''
एकल पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि
''याचिकाकर्ता दो सप्ताह से भी कम समय के लिए सलाखों के पीछे रहा है। इसलिए वह अब बेवजह का विलाप करते हुए सीआरपीसी की धारा 167 (2) के संदर्भ में जमानत नहीं मांग सकता है।''
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ''केवल दोहरा लाभ लेना चाहता है'' ताकि अंतरिम जमानत का आनंद लेता रहे और इसलिए वह अब सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत जमानत मांग रहा है।प
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को 19 मार्च 2020 को भ्रष्टाचार के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था। कोरोना महामारी के प्रकोप के कारण, सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वत संज्ञान रिट याचिका नंबर 1/2020 (RE: CONTAGION OF COVID-19 VIRUS IN PRISONS ) में जारी किए गए दिशा-निर्देश और उच्च स्तरीय समिति की 24 मार्च 2020 की नीति के तहत याचिकाकर्ता को 31 मार्च 2020 के आदेश के तहत 45 दिन के लिए अंतरिम जमानत पर रिहा कर दिया गया था। वह अवधि 14 मई 2020 को खत्म हो गई थी। समिति द्वारा बाद में पांच मई 2020 को जारी निर्देश के मद्देनजर अंतरिम जमानत को छह सप्ताह के लिए 25 जून 2020 तक बढ़ा दिया गया था और उसके बाद फिर से 25 जून 2020 को जारी आदेश के अनुसार 10 सप्ताह के लिए बढ़ा दिया गया था। अब याचिकाकर्ता को 4 सितम्बर 2020 को जिला जेल में आत्मसमर्पण करना है।
जस्टिस मदान ने कहा कि
''सीआरपीसी की धारा 167 (2) यह सुनिश्चित करने के लिए है कि मामले की जांच शीघ्रता से पूरी कर ली जाए और इसके बाद जल्द से जल्द न्यायालय में चालान दायर कर दिया जाए ताकि आपराधिक मामले के एक आरोपी को बहुत लंबे समय तक जेल में न रहना पड़े।''
पीठ ने कहा कि यह प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए है ताकि जांच एजेंसी ''जांच करने में बेरूखी और सुस्ती न दिखाएं''। यह प्रावधान इसलिए बनाए गए हैं ताकि जांच एजेंसी को इस तथ्य से अवगत कराया जा सकें कि अगर उन्होंने मामले की जांच पूरी नहीं की और गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर चालान दायर नहीं किया तो आरोपी जमानत का हकदार बन जाएगा(ऐसे मामले जिनमें फांसी या उम्रकैद की सजा और कम से कम दस साल की सजा का प्रावधान है) और अन्य मामलों में साठ दिन की अवधि के भीतर चालान दायर करना जरूरी है अन्यथा आरोपी को जमानत मिल जाएगी। वहीं ऐसी स्थिति में जांच अधिकारी को निश्चित समय सीमा के भीतर जांच पूरी न करने के कारण बताने होंगे।
एकल पीठ ने दोहराते हुए कहा कि निचली अदालत के आदेश में कोई अवैधता या दुर्बलता नहीं है,जो उस आदेश को देखने के बाद स्पष्ट हो रही है।
पीठ ने कहा कि-
''यह कानून में अच्छी तरह से तय है कि इस न्यायालय का पुनरीक्षण क्षेत्राधिकार काफी सीमित है। यह न्यायालय केवल तभी हस्तक्षेप कर सकता है, जब निचली अदालत द्वारा दिए गए निर्णय/ आदेश में अवैधता या दुर्बलता स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है या वह आदेश विकृत है और अन्यथा नहीं।''
न्यायमूर्ति मदान ने कहा कि एएसजे का आदेश ''निश्चित रूप से आपराधिक न्यायशास्त्र के व्यवस्थित सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता है।''