बिना ट्रायल बर्खास्त किए गए जामिया मिल्लिया इस्लामिया के असिस्टेंट प्रोफेसर को मिली राहत

Update: 2025-08-12 06:46 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया द्वारा असिस्टेंट प्रोफेसर की सेवाएं समाप्त करने का आदेश रद्द कर दिया। उक्त प्रोफेसर पर बिना अनुमति अनुपस्थित रहने का आरोप था, जबकि उनका कहना था कि कुछ अन्य प्रोफेसरों द्वारा कथित उत्पीड़न के चलते उन्होंने कुछ समय तक कक्षाएं लेना बंद कर दिया था।

जस्टिस प्रतीक जालान ने पाया कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अपर्याप्त पालन हुआ, क्योंकि जिस जांच रिपोर्ट के आधार पर एग्जीक्यूटिव काउंसिल ने बर्खास्तगी का निर्णय लिया वह रिपोर्ट कभी भी याचिकाकर्ता को सौंपी ही नहीं गई।

कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया अधिनियम 1988 की धारा 37(4) के तहत निर्णय लेने से पहले संबंधित संकाय सदस्य को कारण बताने का उचित अवसर दिया जाना अनिवार्य है।

सरफ़राज़ अहमद फ़ारसी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर वर्ष 2012 में यूनिवर्सिटी से जुड़े थे। अनुपस्थिति के बाद 2021 में रजिस्ट्रार ने उन्हें फिर से कक्षाएं लेने की अनुमति दी थी। हालांकि, जामिया का कहना था कि वह लगभग दो वर्षों तक बिना अनुमति अनुपस्थित रहे, जिससे विभाग का शैक्षणिक माहौल प्रभावित हुआ।

कोर्ट ने नोट किया कि कारण बताओ नोटिस, एग्जीक्यूटिव काउंसिल द्वारा पहले ही बर्खास्तगी की सिफारिश के बाद जारी किया गया, जिसे अदालत ने स्पष्ट रूप से बहुत कम बहुत देर कहा है।

कोर्ट ने जामिया को निर्देश दिया कि काउंसिल की सिफारिश को केवल प्रस्ताव मानते हुए जांच रिपोर्ट याचिकाकर्ता को सौंपी जाए।

कोर्ट के आदेश में कहा गया,

“याचिकाकर्ता को रिपोर्ट मिलने के दो सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने का अवसर दिया जाए, जिसमें वह बताए कि उसकी सेवाएं क्यों समाप्त न की जाएं। यह जवाब 1988 अधिनियम की धारा 37(4) के तहत दिया गया अवसर माना जाएगा।”

कोर्ट ने कहा कि एग्जीक्यूटिव काउंसिल का प्रस्ताव केवल जांच समिति की रिपोर्ट पर आधारित था और रिपोर्ट न सौंपने से याचिकाकर्ता मुख्य आरोपों का जवाब देने के अवसर से वंचित रह गया।

केस टाइटल: सरफ़राज़ अहमद बनाम कुलपति, जामिया मिल्लिया इस्लामिया एवं अन्य

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