आरोपी ट्रायल कोर्ट से अभियोजन एजेंसी को यह निर्देश देने के लिए नहीं कह सकता है कि विशेष साक्ष्य का एक हिस्सा जुटाया जाए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एक आरोपी ट्रायल कोर्ट से अभियोजन एजेंसी को यह निर्देश देने के लिए नहीं कह सकता है कि विशेष साक्ष्य का एक हिस्सा जुटाया जाए, जो उसके पक्ष में हो सकता है।
जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव गृह, डीजीपी, एडीजी महिला प्रकोष्ठ, पुलिस आयुक्त लखनऊ सहित अन्य पुलिस अधिकारियों के कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) के संरक्षण की मांग की गई थी।
दरअसल, ठाकुर के खिलाफ धारा 120 बी, 167, 195 ए, 218, 306, 504, 506 आईपीसी के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया है, जिसमें उन पर एक बलात्कार पीड़िता और उसके दोस्त को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया है। पीड़िता और उसके दोस्त ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के बाहर खुद को आग लगा ली थी।
मामले के मुताबिक, 24 वर्षीय महिला का 2019 में बहुजन समाज पार्टी के सांसद अतुल राय ने कथित रूप से बलात्कार किया था। सुप्रीम कोर्ट के सामले खुद को आग लगाने के बाद 24 अगस्त को उसने दम तोड़ दिया था। 27 वर्षीय उसके दोस्त की भी इलाज के दौरान मृत्यु हो गई।
ठाकुर ने हाईकोर्ट से संपर्क किया और अभियोजन/राज्य को कुल 18 व्यक्तियों के कॉल डिटेल रिकॉर्ड (सीडीआर) संरक्षित करने का निर्देश देने की मांग की। उन्होंने दावा किया कि ऐसे अधिकारियों/कर्मचारियों की सीडीआर मामले के न्यायसंगत निर्णय के लिए प्रासंगिक है।
उन्होंने विशेष रूप से कहा कि चूंकि वह सरकार और अधिकारियों को बेनकाब कर रहे थे, इसलिए एसीएस होम और डीजीपी सहित कुल 18 अधिकारियों ने उन्हें बलात्कार पीड़िता और उसके दोस्त के आत्मदाह के मामले में झूठा फंसाने की साजिश रची है।
अमिताभ ठाकुर की ओर से पेश वकील नूतन ठाकुर ने यह तर्क दिया कि कॉल विवरण से यह पता चलेगा कि निर्देश दिए गए थे, और याचिकाकर्ता को फंसाने के लिए विभिन्न पुलिस अधिकारियों के साथ-साथ गृह सचिव और अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) के बीच बातचीत हुई थी।
उनकी याचिका का जवाब देते हुए, कोर्ट ने कहा कि कॉल विवरण केवल यह प्रदर्शित करेगा कि कॉल एक दूसरे को किए गए हैं, और कॉल की सामग्री केवल सीडीआर से एकत्र नहीं की जा सकती है।
कोर्ट ने आगे कहा कि यदि दो अधिकारियों/कर्मचारियों ने किसी घटना के संबंध में एक-दूसरे से बात की है या निर्देश दिए हैं, तो इसका मतलब यह नहीं होगा कि आरोपी को झूठा फंसाया जा रहा है।
कोर्ट ने कहा,
"जैसा कि हो सकता है, चूंकि मुकदमा अभी भी लंबित है। आरोपी के पास उपलब्ध सभी बचावों को उचित चरण में उठाया जा सकता है। वह ट्रायल कोर्ट से अभियोजन एजेंसी को यह निर्देश देने के लिए नहीं कह सकता है कि विशेष साक्ष्य का एक टुकड़ा जुटाया जाए, जो उनके पक्ष में हो सकता है।"
कोर्ट ने ठाकुर की याचिका को खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट के आक्षेपित आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं पाया।
हालांकि, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि सुप्रीम कोर्ट के गेट नंबर 6 के सामने आत्महत्या करने से दो लोगों की मौत हो गई, कोर्ट ने कहा कि उसे उम्मीद है कि ट्रायल कोर्ट मुकदमे में तेजी लाएगा। हालांकि ट्रायल कोर्ट को आरोपी को निष्पक्ष सुनवाई के लिए उचित अवसर देना चाहिए।
केस टाइटल- अमिताभ ठाकुर बनाम स्टेट ऑफ यूपी प्रिंसिपल सेक्रेटरी होम, लखनऊ के माध्यम से, [Application u/s 482 No- 5954 of 2022 ]
केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 413