आरोपी की फरारी को अपने आप में अपराध का निर्णायक सबूत नहीं माना जा सकता: कलकत्ता हाईकोर्ट ने 10 साल के बच्चे की हत्या के दोषी व्यक्ति को बरी किया
कलकत्ता हाईकोर्ट ने माना कि किसी आरोपी की फरारी अपने आप में उसके अपराध को स्थापित नहीं करती है और आईपीसी की धारा 302 के तहत हुई दोषसिद्धि के आदेश को रद्द कर दिया।
जस्टिस जॉयमाल्या बागची और जस्टिस अनन्या बंद्योपाध्याय की खंडपीठ 10 साल के लड़के की हत्या के लिए अपीलकर्ता के खिलाफ पारित दोषसिद्धि के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर फैसला सुना रही थी।
यह आरोप लगाया गया था कि अपीलकर्ता के लड़के की मां रसीदा के साथ अवैध संबंध थे। आगे यह तर्क दिया गया था कि बच्चे ने अपने पिता को अवैध संबंधों का खुलासा किया था और तदनुसार अपीलकर्ता ने उसके खिलाफ शिकायत की थी।
कार्यवाही के दरमियान, अभियोजन पक्ष की ओर से तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता घटना के तुरंत बाद मस्जिद से गायब हो गया था और गांव नहीं लौटा था और अपीलकर्ता को बाद में पंसकुरा रेलवे स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया था।
कोर्ट ने एसके युसुफ बनाम पश्चिम बंगाल राज्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, और माना कि यह एक स्थापित कानून है कि किसी अभियुक्त की अनुपस्थिति अपने आप में उसके अपराध को स्थापित नहीं करती है।
आगे यह भी नोट किया गया कि मृतक के पिता ने शुरू में अपीलकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज नहीं की थी और कुछ दिनों के बाद ही संदेह के कारण अपीलकर्ता को मौजूदा मामले में फंसाया गया था।
आगे यह मानते हुए कि इस बात की संभावना है कि अपीलकर्ता गांव से डर और झूठा फंसाए जाने की आशंका से भाग गया था, अदालत ने रेखांकित किया, "ऐसी परिस्थिति में, यह संभव है कि झूठा फंसाए जाने और उत्पीड़न के डर और आशंका से अपीलकर्ता गांव से भाग गया हो और खुद को छुपा रखा हो।"
न्यायालय ने माना कि अपीलकर्ता अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है और अपीलकर्ता बरी करने के आदेश का हकदार है।
केस टाइटल: मोहम्मद फिरोज आला @ फिरोज आलम बनाम पश्चिम बंगाल राज्य
केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (Cal) 204