सब- इंस्पेक्टर एवं कांस्टेबल के 30 हजार खाली पद: पटना हाईकोर्ट ने चार सप्ताह के भीतर बिहार सरकार से कार्रवाई रिपोर्ट मांगी
पटना हाईकोर्ट ने सब - इंस्पेक्टर और कांस्टेबल के खाली पदों पर भर्ती के मामले में स्थिति रिपोर्ट पेश करने का राज्य सरकार को हाल ही में निर्देश दिया है।
मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति एस कुमार की खंडपीठ को अवगत कराया गया कि फिलहाल 30 हज़ार से अधिक पद रिक्त हैं।
कोर्ट ने राज्य सरकार को अपने पांच फरवरी 2020 के आदेश के मद्देनजर चार सप्ताह के भीतर स्थिति रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया।
गौरतलब है कि पटना हाईकोर्ट बिहार में सब इंस्पेक्टर एवम् कांस्टेबल के खाली पदों पर भर्ती से संबंधित मामले की निरंतर निगरानी करता आ रहा है।
पांच फरवरी 2020 के अपने अंतिम आदेश में कोर्ट ने राज्य सरकार को चयन एजेंसी के तौर पर भी सभी खाली पदों को भरने के दिशानिर्देश दिए थे।
राज्य सरकार की ओर से पेश वकील ने कोर्ट के समक्ष दलील दी थी कि भर्ती की प्रक्रिया जारी है और पांच फरवरी 2020 के उसके आदेश पर अमल किए जाने और कार्रवाई रिपोर्ट के सम्बन्ध में चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर कर दिया जाएगा।
इसके मद्देनजर याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में कोर्ट को सहयोग करने की छूट संबंधी हस्तक्षेप याचिका पर जोर नहीं दिया।
कोर्ट ने आगे दिशानिर्देश दिया कि उसके पांच फरवरी के आदेश के संदर्भ में कार्रवाई की स्थिति रिपोर्ट चार सप्ताह की अवधि के भीतर निश्चित तौर पर पेश की जाये।
मामले की अगली सुनवाई के लिए 27 नवम्बर की तारीख मुकर्रर की गयी है।
ज्ञातव्य है कि मार्च 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट से अनुरोध किया था कि वे संबंधित राज्यों के पुलिस बलों में बड़ी संख्या में खाली पड़े पदों पर भर्तियां करने को लेकर स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिकाएं दायर करे।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अमल करते हुए पटना हाईकोर्ट ने भी मई 2019 में एक जनहित याचिका दायर की थी और इसकी सुनवाई शुरू कर दी थी।
ज्ञातव्य है कि अगस्त 2019 में पटना हाईकोर्ट ने इस मामले में कहा था :
"हमारे हिसाब से, नौकरशाही द्वारा भर्ती की प्रक्रिया में अडंगा सरकार द्वारा नागरिकों की मूलभूत जरूरतों को प्राथमिकता न दिये जाने का संकेत देता है। यह प्रथमदृष्टया सरकार की विफलता है कि वह उन तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने के लिए भर्ती के वास्ते बुनियादी ढांचा या पर्याप्त सुविधाएं दे पाने में असफल रही है, जो न केवल तत्काल जरूरी है बल्कि सरकार के संवैधानिक दायित्वों में पहले पायदान पर आती हैं।"