2008 जयपुर विस्फोट | '14 साल की कैद', राजस्थान हाईकोर्ट ने 'जिंदा बम की बरामदगी' मामले में मोहम्मद आजमी को जमानत दी

Update: 2023-10-14 13:37 GMT

राजस्‍थान हाईकोर्ट ने एक जैसी एफआईआर में बरी होने के बावजूद लंबे समय तक जेल में रहने का हवाला देते हुए 2008 के जयपुर सिलसिलेवार बम विस्फोटों के आरोपियों में से एक मोहम्मद आजमी को सशर्त जमानत दे दी है।

कोर्ट ने राज्य की दलीलों का विश्लेषण करने के बाद कहा,

“रबी प्रकाश के मामले (सुप्रा) में आरोपी याचिकाकर्ता पिछले 3.5 वर्षों से हिरासत में था… यूएपीए की धारा 43 डी (5) (में) में निहित प्रतिबंध तब अपना महत्व खो देगा जब 14 साल की कैद का मामला अन्य एफआईआर में बरी होने के अन्य तथ्यों के साथ जुड़ा हो। इसलिए, इस अदालत का दृढ़ विचार है कि याचिकाकर्ता को और हिरासत में रखने की आवश्यकता नहीं है, तदनुसार तत्काल जमानत आवेदन की अनुमति दी जाती है।”

राज्य ने जमानत देने पर कड़ी आपत्ति जताई थी।

अतिरिक्त महाधिवक्ता राजेश महर्षि ने तर्क दिया था कि ऐसे पर्याप्त सबूत हैं जो बताते हैं कि याचिकाकर्ता/अभियुक्त का कृत्य 'आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने और कानून-व्यवस्था के साथ-साथ देश की सुरक्षा को अस्थिर करने की साजिश' के समान है। एएजी ने यह भी प्रस्तुत किया कि गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम, 1967 की धारा 43 डी (5) में एक विशिष्ट रोक है जो अदालत को जमानत के लिए आवेदन पर विचार करते समय रिकॉर्ड पर सबूतों की जांच करने या 'मिनी-ट्रायल' में शामिल होने से रोकती है।

इसके विपरीत, याचिकाकर्ता के वकील, एडवोकेट सैयद सआदत अली ने तर्क दिया कि मोहम्मद आज़मी 2009 से 14 साल से जेल में हैं। वकील ने यह भी तर्क दिया कि आरोपी को विशेष अनुमति याचिका में सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत भी दी गई है। हाईकोर्ट द्वारा उन्हें बरी किए जाने के खिलाफ दायर किया गया।

जमानत देने में यूएपीए की धारा 43(डी)(5) के प्रभाव पर एकल-न्यायाधीश पीठ ने यूनियन ऑफ इंडिया बनाम केए नजीब एलएल 2021 एससी 56 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विश्लेषण किया, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा कि 'अदालतों से जमानत देने के खिलाफ विधायी नीति की सराहना करने की उम्मीद की जाती है, लेकिन ऐसे प्रावधानों की कठोरता वहां कम हो जाएगी जहां उचित समय और अवधि के भीतर सुनवाई पूरी होने की कोई संभावना नहीं हो। पहले ही जेल में बिताई गई सज़ा निर्धारित सज़ा के एक बड़े हिस्से से अधिक हो गई है।'

अदालत ने तब यह भी नोट किया था कि यूएपीए अधिनियम की धारा 43 (डी) (5) में जमानत प्रतिबंध एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 की तुलना में कम कठोर हैं।

इसके तुरंत बाद, अदालत ने समान प्रावधान, यानी एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के दायरे पर भी संक्षेप में गौर किया।

कोर्ट ने रबी प्रकाश बनाम ओडिशा राज्य 2023 लाइव लॉ (एससी) 533 का जिक्र किया, जहां शीर्ष अदालत ने राय दी थी कि 'लंबे समय तक कारावास के मामलों' में सशर्त स्वतंत्रता एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के तहत वैधानिक प्रतिबंध को खत्म कर देगी। उक्त टिप्‍पणियों के साथ बीरेंद्र कुमार ने मोहम्मद आजमी की ओर से दायर जमानत याचिका को मंजूर कर लिया।

जस्टिस बीरेंद्र कुमार ने आरोपी/याचिकाकर्ता को एक लाख रुपये के जमानत बांड और इतनी ही राशि की दो जमानत राशि प्रस्तुत करने पर जमानत पर रिहा करने की अनुमति दी।

केस टाइटल: मोहम्मद सरवर आज़मी बनाम राजस्थान राज्य

केस नंबर: एसबी आपराधिक विविध जमानत आवेदन संख्या 9815/2023

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