1992 में हुए वाचाथी अपराध का मामला: मद्रास हाईकोर्ट ने पुलिस, वन और राजस्व अधिकारियों की सजा बरकरार रखी, बलात्कार पीड़ितों के लिए 10 लाख मुआवजे का आदेश दिया

Update: 2023-09-29 08:26 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार (29 सितंबर) को तमिलनाडु के धर्मपुरी जिले के वाचथी में हुए विभिन्न अपराधों के लिए उनकी दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ 126 वन अधिकारियों, 84 पुलिस कर्मियों और 5 राजस्व अधिकारियों की अपील को खारिज कर दिया। संयोगवश, आरोपी को दोषी ठहराने वाला सत्र न्यायालय का फैसला भी वर्ष 2011 में 29 सितंबर को पारित किया गया था।

जस्टिस पी वेलमुरुगन ने तत्कालीन जिला कलेक्टर, जिला वन अधिकारी और पुलिस अधीक्षक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आह्वान किया।

पीठ ने राज्य को बलात्कार पीड़ितों को प्रत्येक को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया, जिसमें से 50% बलात्कार के अपराध के लिए दोषी ठहराए गए आरोपियों से वसूल किया जाना है। अदालत ने राज्य को उन पीड़ितों को उचित रोजगार देने का भी निर्देश दिया जिनके घर अधिकारियों द्वारा नष्ट कर दिए गए थे।

जज ने शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए कहा,

“सभी आपराधिक अपीलों को योग्यता और तथ्यहीन होने के कारण खारिज कर दिया जाता है… सरकार को प्रत्येक पीड़ित (बलात्कार के) को 10 लाख मुआवजा देने का निर्देश दिया जाता है। यदि पीड़ित जीवित नहीं है तो परिजनों को मुआवजा दिया जाएगा। जिन आरोपियों पर रेप का आरोप लगा है, उनसे मुआवजे की 50 फीसदी रकम वसूली जानी है। सरकार पीड़ितों को स्वरोजगार या किसी अन्य माध्यम से उपयुक्त नौकरियां देगी। तत्कालीन जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक और जिला वन अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”

जज ने पहले फैसला सुनाने से पहले गांव का दौरा करने और ग्रामीणों से बात करने का फैसला किया। चूंकि मुकदमे की सुनवाई के दौरान कई अभियुक्तों की मृत्यु हो गई थी, इसलिए उनके खिलाफ आरोप समाप्त कर दिए गए।

मामले की पृष्ठभूमि

20 जून 1992 को 155 वन कर्मियों, 108 पुलिसकर्मियों और छह राजस्व अधिकारियों की एक टीम ने तस्करी की चंदन की लकड़ी की तलाश में आदिवासी बहुल गांव वाचथी में प्रवेश किया और कुख्यात भारतीय डाकू से घरेलू आतंकवादी बने वीरप्पन के बारे में जानकारी इकट्ठा की। यह आरोप लगाया गया कि तलाशी के बहाने अधिकारियों ने ग्रामीणों की संपत्ति में तोड़फोड़ की, घरों को नष्ट कर दिया, मवेशियों को मार डाला, ग्रामीणों पर हमला किया और यहां तक कि गांव की महिलाओं के साथ बलात्कार भी किया।

हालांकि सीपीआई (एम) ने शुरू में इस मामले को उठाने के लिए मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष जनहित याचिका दायर की थी, लेकिन अदालत ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया कि सरकारी अधिकारी इस तरह के आचरण में शामिल नहीं होंगे। इसके बाद सीपीआई (एम) के राज्य सचिव ए नल्लासिवन ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की, जिसने हाईकोर्ट को मामले की जल्द से जल्द सुनवाई करने का निर्देश दिया।

बाद में हाई कोर्ट ने मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए। मामले में आरोपी कुल 269 व्यक्तियों में से 54 की मुकदमे के दौरान मृत्यु हो गई। शेष 126 वन कर्मियों में से 84 पुलिसकर्मी और 5 राजस्व अधिकारी दोषी ठहराये गए।

हालांकि राज्य द्वारा सीबीआई जांच के ख़िलाफ़ अपील दायर की गई थी, लेकिन हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इसे खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कथित "तस्करी" के लिए ग्रामीणों के खिलाफ दायर आरोप पत्र को भी रद्द कर दिया।

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