त्रिपुरा हाईकोर्ट ने राजस्थान में त्रिपुरा राज्य की किशोरी को बेचे जाने के मामले में स्वतःसंज्ञान लिया; गृह राज्य वापस लाने पर दिया ज़ोर
त्रिपुरा हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते (17-जून-2020) उत्तर त्रिपुरा, उनाकोटी जिले की मूल निवासिनी, लगभग 14 वर्ष की एक किशोरी को कथित रूप से राजस्थान में एक परिवार को उसके परिवार की गरीबी के कारण बेच दिए जाने के मामले में स्वतः संज्ञान लिया था।
त्रिपुरा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अकील कुरैशी और न्यायमूर्ति एस. तलपत्रा की खंडपीठ ने मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए त्रिपुरा राज्य, त्रिपुरा राज्य मानवाधिकार आयोग (Tripura State Human Rights Commission), त्रिपुरा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (the Tripura State Legal Services Authority) और त्रिपुरा कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स को उत्तरदाता के रूप में जोड़ा था।
इसके अलावा, चूंकि लड़की वर्तमान समय में राजस्थान में है, इसलिए अतिरिक्त प्रतिवादी के रूप में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights) को और भविष्य में अदालत की सहायता और आगे की पूछताछ के लिए आवश्यकतावश, जिला कलेक्टर, उनाकोटि को भी मामले में शामिल किया गया था।
गौरतलब है कि स्वतः संज्ञान लेकर दर्ज की गयी यह जनहित याचिका, 16 जून, 2020 को "द ट्रिब्यून" में प्रकाशित एक समाचार रिपोर्ट के आधार पर उच्च न्यायालय द्वारा शुरू की गयी थी।
अदालत ने 17 जून के अपने आदेश में यह देखा था कि,
"उक्त समाचार रिपोर्ट का संज्ञान लेते हुए, हम मुख्य रूप से नाबालिग लड़की की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सही तथ्यों का पता लगाना चाहते हैं। किशोरी को उसके मूल स्थान पर वापस लाने और उसे अपने परिवार के साथ फिर से मिलाने या उचित स्थान पर उसकी उचित देखभाल और सुरक्षा प्रदान करने का सवाल भी हमारे दिमाग में है।"
अदालत ने अपने आदेश में आगे यह भी कहा था कि
"हम लड़की की वर्तमान मानसिक स्थिति की केवल कल्पना ही कर सकते हैं। हम सभी उत्तरदाताओं से अनुरोध करेंगे कि वे नाबालिग लड़की (जिनकी पहचान उसे प्रतिकूल प्रचार से बचाने के लिए छुपायी गई है) की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित तरीके सुझाएं। विशेष रूप से, उत्तरदाताओं द्वारा सुनवाई की अगली तारीख (19 जून) को यह सुझाव दिया जा सकता है कि कैसे जल्द से जल्द लड़की को त्रिपुरा में वापस लाया जा सकता है और जब उसे वापस लाया जाता है, तो उसकी सुरक्षा को और अच्छी तरह से कैसे सुनिश्चित किया जाए।"
इस घटना के सामने आने के बाद, उसे राजस्थान के झुंझुनू में एक महिला आश्रय गृह में रखा गया था। हालाँकि, मौजूदा समय में चूँकि वह COVID-19 पॉजिटिव पायी गयी है इसलिए उसका इलाज किया जा रहा है।
19 जून को मामले की अदालत में हुई सुनवाई
बीते 19 जून को जब मामला अदालत के समक्ष फिर से सुनवाई के लिए आया तो राज्य सरकार और राज्य के अधिकारियों का प्रतिनिधित्व करने वाले सरकारी अधिवक्ता ने कुछ दस्तावेज पीठ के समक्ष दायर किए और अदालत के पूर्व के आदेश में उठाए गए मुद्दों पर अदालत को संबोधित किया।
इसके अलावा, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की वकील सुश्री ए. पुजारी ने भी रिकॉर्ड पर कुछ दस्तावेजों को रखा और अदालत के आदेश में उठाए गए मुद्दों पर अदालत को संबोधित किया।
मामले के अतिरिक्त तथ्यों को जानने और दस्तावेजों को देखने के बाद, अदालत ने अपने आदेश में नोट किया कि यह किशोरी केवल गर्भवती ही नहीं है, बल्कि वह हाल ही में COVID-19 पॉजिटिव भी पायी गयी है।
अदालत ने मुख्य रूप से अपने आदेश में यह देखा कि,
"किशोरी का इलाज चल रहा है और COVID-19 से ठीक होने एवं उसकी अनिवार्य करन्तीन (Quarantine) अवधि खत्म होने के बाद ही उसे वापस लाने के लिए कोई कदम उठाया जा सकता है।"
इसी के मद्देनजर, अदालत ने मामले को 2 सप्ताह के बाद (6-जुलाई-2020) सूचीबद्ध करने का निर्णय लिया। इस बीच, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (National Commission for Protection of Child Rights) को अदालत द्वारा यह आदेश दिया गया कि वह दोनों राज्यों, त्रिपुरा एवं राजस्थान के बाल संरक्षण आयोग के बीच किशोरी के संरक्षण, स्वास्थ्य और भलाई सुनिश्चित करने के लिए समन्वय जारी रखेगा।
अदालत ने किशोरी को सुरक्षित रूप से उसके गृह राज्य वापस लाये जाने पर फिर से दिया ज़ोर
17 जून को हुई मामले की पिछली और प्रथम सुनवाई की ही तरह, 19 जून को हुई सुनवाई में अदालत ने किशोरी की उसके गृह राज्य वापसी पर ज़ोर दिया। अदालत ने अपने आदेश में यह कहा कि राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग, त्रिपुरा के साथ-साथ सरकारी अधिकारी भी COVID-19 से ठीक होते ही और उसकी करन्तीन अवाधि की समाप्ति होते ही किशोरी की वापसी सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगे।
अदालत ने आगे राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को इस मामले की निगरानी करने का आदेश देते हुए कहा,
"वर्तमान में, यह स्पष्ट नहीं है कि क्या उसका परिवार किशोरी को वापस लेने के लिए तैयार है या उसे वापस लेने में सक्षम है या नहीं। जैसा भी मामला हो, अन्य सभी मुद्दों पर बाद में विचार-विमर्श किया जा सकता है। अभी के लिए, हम राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग से यह अनुरोध करते हैं कि स्थिति की बारीकी से निगरानी करें और मामले की सुनवाई की अगली तारीख से पहले लड़की की करन्तीन अवधि समाप्त होने पर न्यायालय को सूचित करें।"
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