'पेगासस जासूसी मामले से संबंधित सभी मुद्दों की जांच के लिए विशेषज्ञों की समिति का गठन करेंगे': केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष केंद्र सरकार ने एक हलफनामा दायर किया है, जिसमें कहा है कि केंद्र सरकार ने विशेषज्ञों की एक समिति गठित की जाएगी जो कथित पेगासस जासूसी मामले से संबंधित सभी मुद्दों की जांच करेगी।
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने पेगासस के माध्यम से मोबाइल इंटरसेप्शन के सभी आरोपों से इनकार करते हुए प्रस्तुत किया कि,
"कुछ निहित स्वार्थों द्वारा फैलाए गए किसी भी झूठी आख्यान को दूर करने और उठाए गए मुद्दों की जांच करने के उद्देश्य से भारत सरकार विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करेगा जो इस मुद्दे के सभी पहलुओं की जांच करेगी।"
मंत्रालय ने सभी आरोपों से इनकार किया है और समाचार रिपोर्टों के आधार पर मामले की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिकाओं को सुनवाई योग्य बनाए रखने पर सवाल उठाया है।
हलफनामे में कहा गया है कि,
"उपरोक्त याचिकाओं के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि ये अनुमानों और या अन्य अप्रमाणित मीडिया रिपोर्टों या अधूरी या अपुष्ट सामग्री पर आधारित हैं। यह प्रस्तुत किया जाता है कि यह इस माननीय कोर्ट के रिट अधिकार क्षेत्र को लागू करने का आधार नहीं हो सकता है।"
इसमें दावा किया गया है कि आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव संसद में सरकार के रुख को पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं।
मंत्री वैष्णव ने विपक्षी नेताओं, पत्रकारों आदि की जासूसी करने के लिए पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल करने के सभी आरोपों से इनकार किया है।
मंत्री ने कहा कि एमनेस्टी की रिपोर्ट ही स्पष्ट करती है कि सूची में किसी नंबर की मौजूदगी जासूसी नहीं है। उन्होंने सदन को आगे बताया कि एनएसओ ने खुद आरोपों का खंडन किया है, यह दावा करते हुए कि समाचार रिपोर्ट बुनियादी जानकारी से लीक हुए डेटा की 'भ्रामक व्याख्या' पर आधारित हैं।
मंत्री वैष्णव ने कहा कि,
"इस रिपोर्ट का आधार यह है कि एक केंद्र है जिसके पास 50,000 फोन नंबरों के लीक हुए डेटाबेस तक पहुंच है। आरोप यह है कि इन फोन नंबरों से जुड़े व्यक्तियों की जासूसी की जा रही थी। हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि एक फोन नंबर की उपस्थिति डेटा में यह प्रकट नहीं होता है कि कोई डिवाइस पेगासस से संक्रमित था या हैक करने का प्रयास किया गया था। फोन को इस तकनीकी विश्लेषण के अधीन किए बिना यह अनुमान लगाना संभव नहीं है कि यह हैक किया गया था।
पेगासस विवाद 18 जुलाई को द वायर और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों द्वारा मोबाइल नंबरों के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित करने के बाद शुरू हुआ, जो भारत सहित विभिन्न सरकारों को एनएसओ कंपनी द्वारा दी गई स्पाइवेयर सेवा के संभावित लक्ष्य थे। द वायर के अनुसार, 40 भारतीय पत्रकार, राहुल गांधी जैसे राजनीतिक नेता, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर, ईसीआई के पूर्व सदस्य अशोक लवासा आदि को लक्ष्य की सूची में बताया गया है।
द वायर की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और उनके खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगाने वाली महिला कर्मचारी व परिवार के कुछ सदस्यों के को पेगासस जासूसी के संभावित लक्ष्य के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।
द वायर ने कल एक चौंकाने वाली रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें कहा गया कि पेगासस के लक्ष्यों की सूची में जस्टिस अरुण मिश्रा से जुड़ा एक पुराना मोबाइल नंबर, सुप्रीम कोर्ट के दो अधिकारियों और तीन अधिवक्ताओं के नंबर भी शामिल थे।
इस प्रकार शीर्ष न्यायालय के समक्ष विभिन्न याचिकाएं दायर की गई हैं, जिसमें मामले की स्वतंत्र जांच की मांग की गई है।
याचिकाएं अधिवक्ता एमएल शर्मा, पत्रकार एन राम और शशि कुमार, सीपीआई (एम) के राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास, पांच पेगासस लक्ष्यों (परंजॉय गुहा ठाकुरता, एसएनएम आब्दी, प्रेम शंकर झा, रूपेश कुमार सिंह और इप्सा शताक्शी), सामाजिक कार्यकर्ता जगदीप छोक्कर, नरेंद्र कुमार मिश्रा और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया द्वारा दायर की गई हैं।
अभी तक याचिकाओं पर नोटिस जारी नहीं किया गया है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने कथित घटना पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर रिपोर्ट सही हैं तो आरोप गंभीर हैं ।
सीजेआई एनवी रमना ने कहा था कि,
"सच्चाई सामने आनी चाहिए, यह एक अलग कहानी है। हमें नहीं पता कि इसमें किसके नाम शामिल हैं।"
इस मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी।