"ऐसी जनहित याचिकाएं लेकर आने के बजाय आपने लॉ स्कूल में पढ़ाई क्यों नहीं की?": सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक प्रावधानों में ‘पुरुष’ सर्वनाम को खत्म करने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने तुच्छ जनहित याचिकाओं (PIL) दायर कर "प्रक्रिया के दुरुपयोग" की तीखी निंदा की। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने संवैधानिक प्रावधानों में "पुरुष" सर्वनाम को खत्म करने की मांग करने वाले एक याचिकाकर्ता की आलोचना की।
याचिकाकर्ता लॉ स्टूडेंट है। वो व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुआ था। उन्होंने तर्क दिया कि संवैधानिक प्रावधानों में "पुरुष" सर्वनामों का इस्तेमाल लैंगिक भेदभाव है और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
हालांकि, CJI चंद्रचूड़ ने अपनी अस्वीकृति व्यक्त करने में कोई समय बर्बाद नहीं किया।
उन्होंने याचिकाकर्ता से सवाल किया, "ऐसी जनहित याचिकाएं लेकर आने के बजाय आपने लॉ स्कूल में पढ़ाई क्यों नहीं की?"
चीफ जस्टिस ने इस बात पर प्रकाश डाला कि नए प्रावधान पहले से ही "चेयरपर्सन" जैसे जेंडर न्यूट्रल की ओर बढ़ चुके हैं।
इस पर याचिकाकर्ता ने तर्क दिया,
"ये समानता का उल्लंघन है। लोग समझते हैं कि चेयरमैन का मतलब एक आदमी होता है।"
हालांकि, सीजेआई आश्वस्त नहीं थे और उन्होंने याचिकाकर्ता से स्पष्ट रूप से पूछा कि क्या "चेयरमैन" को "चेयरपर्सन" से बदलने का मतलब यह है कि महिला इस पद के लिए पात्र नहीं होगी।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने पूछा,
"अब आप संवैधानिक प्रावधानों को खत्म कर देंगे? नए प्रावधानों में "चेयरपर्सन" का उल्लेख है। यदि पुराने प्रावधानों में "चेयरपर्सन" का उल्लेख है तो क्या महिला को नियुक्त नहीं किया जाएगा? यह किस मौलिक अधिकार का उल्लंघन है? मामला खारिज किया जाता है।"
डिवीजन बेंच ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता लॉ स्टूडेंट नहीं होता तो मामले में जुर्माना लगाया जाता।