'यह परेशान करने वाला है': आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा आंध्र प्रदेश में 'संवैधानिक टूट' की जांच के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई

Update: 2020-12-18 10:01 GMT

Supreme Court of India

सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी, जिसके तहत उसने यह जांच करने का निर्णय लिया था कि क्या आंध्र प्रदेश राज्य में "संवैधानिक टूट" की स्थिति है। भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने उच्च न्यायालय के आदेश पर कहा, "हम इससे परेशान हैं।"

पीठ ने याचिका पर नोटिस जारी किया। क्रिसमस की छुट्टियों के बाद इस मामले को सूचीबद्ध किया जाएगा। जस्टिस राकेश कुमार के नेतृत्व वाली उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा उक्त आदेश को वापस लेने के लिए राज्य सरकार द्वारा दायर एक अर्जी को खारिज कर दिया गया, जिसके बाद ऐसी स्थितियां पैदा हुईं।

राज्य में संवैधानिक मशीनरी के टूटने की जांच करने के लिए पीठ द्वारा पारित 1 अक्टूबर के आदेश को वापस लेने से इनकार करते हुए 14 दिसंबर को उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती देते हुए आंध्र प्रदेश राज्य ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

पृष्ठभूमि

जस्टिस राकेश कुमार ने राज्य के आदेश वापस लेने के आवेदन पर सुनवाई करते हुए टिप्पणी की, "मैं किसी को अपने आदेश को चुनौती देने की इजाजत नहीं दे रहा हूं ... आप सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।"

महाधिवक्ता सुब्रह्मण्यम श्रीराम ने शिकायत की कि पीठ ने उन्हें मामले को पेश करने का पर्याप्त अवसर द‌िए बिना आवेदन को खारिज करने का फैसला लिया। उन्होंने कहा कि वह कुछ ऐसे उदाहरण देना चाहते हैं, जब एक न्यायाधीश ने अपने ही आदेश को वापस लेने का आदेश दिया है, लेकिन अदालत ने उन्हें अपनी प्रस्तुतियां पूरी करने की अनुमति नहीं दी।

एजी ने "संवैधानिक टूट" के सवाल से निपटने के न्यायालय के अधिकार क्षेत्र पर आपत्ति जताई थी और पीठ से इसे प्रारंभिक मुद्दा मानने का आग्रह किया था।

एक अक्टूबर को, पीठ ने, जिसमें न्यायमूर्ति उमा देवी भी शामिल थी, बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं और याचिकाओं के एक बैच पर, जिसमें पुलिस ज्यादतियों के आरोप लगाए गए थे, सुनवाई करे हुए, उसे इस मुद्दे पर परिवर्त‌ित कर दिया कि क्या आंध्र प्रदेश राज्य में "संवैधानिक टूट" की स्थिति है।

पीठ ने सरकारी वकील को निर्देश दिया था कि वह इस संबंध में प्रस्तुत करें कि "आंध्र प्रदेश राज्य में व्याप्त परिस्थितियों के मद्देनजर है, क्या अदालत यह पता लगा सकती है कि राज्य में संवैधानिक टूट स्थिति है।"

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए, राज्य ने एक याचिका दायर किए और आदेश को वापस लेने का आग्रहा किया, जिसमें कहा गया था कि रिट याचिका में किसी भी दलील के अभाव में अदालत राज्य में संवैधानिक टूट के विषय में जांच नहीं कर सकती है।

सोमवार को आवेदन खारिज करते हुए, पीठ ने कहा,  "01/01/2020 को जब वर्तमान पीआईएल को अन्य 16 मामलों के साथ लिया गया तो न्यायालय ने नोट किया कि कई अवसरों पर" पुलिस द्वारा व्यक्तियों को अवैध रूप से उठाकर ले जाया गया "था और बंदी प्रत्यक्षीकरण दायर करने के बाद या तो उन्हें रिहा किया जा रहा था या रिमांड पर लिया जा रहा था।

कोर्ट ने डीजीपी को तलब किया था, जिन्होंने आश्वासन दिया था कि पुलिस कर्मियों को डीके बसु मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सभी दिशानिर्देशों का पालन करने और अन्य संशोधनों का पालन करने के निर्देश दिए जाएंगे।

हालांकि पुलिस महानिदेशक द्वारा आश्वासन दिया गया था, लेकिन पुलिस द्वारा इस तरह की ज्यादती की जा रही थीं और इस अदालत ने यह भी देखा कि न्यायिक आदेश पारित करने के बाद, सोशल मीडिया पर सत्ताधारी पार्टी के संसद सदस्य सहित कई लोगों द्वारा उच्च न्यायालय पर हमला किया गया था।…

इस अदालत ने राज्य के वकील से पूछा था कि इस बिंदु पर भी तैयार हो सकते हैं कि क्या, जैसी परिस्थितियां व्याप्त हैं, अदालत यह जांच कर सकती है कि क्या राज्य में संवैधानिक टूट की स्‍थ‌िति है।

राज्य के वकील ने वर्तमान कार्यवाही में कई दिनों तक भाग लिया, उसके बाद भी कोई आपत्ति नहीं जताई गई और अब वर्तमान IA ने पहले के आदेश को वापस लेने की प्रार्थना की है (एक अक्टूबर)।

यह न्यायालय का विचार है कि यदि कोई न्यायालय के आदेश से दुखी होता है, तो उसे उसी न्यायालय के समक्ष प्रश्न करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। श्रेष्ठ न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए राज्य पर कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन वे केवल मामले को घसीटने की दृष्टि से हमारे सामने आ रहे हैं। इसलिए, हम वर्तमान आवेदन को अस्वीकार करते हैं।"

इस बिंदु पर, सरकारी वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता एसएस प्रसाद ने कहा कि यह कहना गलत है कि उन्होंने मामले को कई दिनों तक खींचा, क्योंकि सुनवाई के दौरान अदालत ने यह दर्ज किया था कि कार्यवाही संवैधानिक टूट के सवाल पर सुनवाई के अधीन थी। एसएस प्रसाद ने तर्क दिया कि सही तथ्य और डॉकेट कार्यवाही दर्ज नहीं की जा रही है।

संवैधानिक टूट की जांच करने के स्वतः संज्ञान की न्यायालय की श‌क्ति को सरकार ने चुनौती दी

सरकारी वकील एसएस प्रसाद ने कहा कि न्यायालय के पास राज्य मशीनरी के संवैधानिक टूट के बारे में स्वतः संज्ञान प्रश्न पर विचार करने के लिए क्षेत्राधिकार का अभाव है। उन्होंने प्रस्तुत किया कि अनुच्छेद 356 में प्रयुक्त 'राज्य मशीनरी की संवैधानिक टूट' शब्द परिभाषित नहीं है और पिछले निर्णयों के अनुसार, राज्य में राजनीतिक उथल-पुथल, न्यायिक अराजकता या विधायी विफलता होने पर ऐसा होता है।

प्रसाद ने यह भी कहा कि वर्तमान याचिका राज्य मशीनरी के टूटने के बारे में कोई सवाल नहीं उठाती है और न्यायालय को सुनवाई के दायरे का विस्तार करने से बचना चाहिए। AIR 1988 SC 1883, केहर सिंह बनाम दिल्ली राज्य पर भरोसा किया गया, जिसमें कहा गया था, "इस न्यायालय ने अक्सर इस बात पर जोर दिया है कि न्यायालय के फैसले को सीधे उसके सामने उठाए गए संकीर्ण बिंदुओं तक ही सीमित रखा जाना चाहिए। मामले के तथ्यों की सीमा के बाहर बड़े पैमाने पर कानून का कोई भी प्रतिपादन नहीं होना चाहिए। सीधे तौर पर मामले में शामिल नहीं होने वाले सवालों के संबंध में मामूली अवलोकन भी नहीं होना चाहिए। ये सिद्धांत इस समय विशेष रूप से प्रासंगिक हैं, जब हम संवैधानिक सवालों से निपट रहे हैं। मुझे इन सीमाओं को नहीं बदलना चाहिए। "

ज‌स्टिस राकेश कुमार को पिछले साल पटना उच्च न्यायालय से आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय स्थानांतरित किया गया था।

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में स्थानांतरण से कुछ समय पहले, जस्टिस राकेश कुमार ने अधीनस्थ न्यायपालिका में कथित भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच के लिए एक निर्देश पारित करके पटना उच्च न्यायालय में सनसनी पैदा कर दी थी। उस आदेश में, जस्टिस कुमार ने चौंकाने वाली टिप्पणियां की थीं, जैसे "उच्च न्यायालय में भ्रष्टाचार खुला रहस्य है" और कहा था कि "न्यायाधीश न्याय का प्रबंधन करने की तुलना में विशेषाधिकार प्राप्त करने में अधिक रुचि रखते है"।

उस आदेश के तुरंत बाद, 11-जजों की पीठ ने जस्टिस राकेश कुमार की टिप्पणियों को "न्यायिक और प्रशासनिक अतिसक्रियता" के रूप में देखने के बाद इसे निलंबित कर दिया।

हाई कोर्ट और राज्य सरकार टकराव के रास्ते पर दिख रहे हैं। पिछले महीने, मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उच्च न्यायालय के कुछ न्यायाधीश टीडीपी द्वारा दायर याचिकाओं पर सरकार खिलाफ प्रतिकूल आदेश पारित करके सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं।

उच्च न्यायालय ने तीन-राजधानी के निर्णय पर यथास्थिति का आदेश दिया था और सरकार द्वारा अमरावती भूमि घोटाले में घोषित एसआईटी जांच पर रोक लगा दी थी।

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