''हमारे साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है'': उपभोक्ता फोरम के 234 संविदा कर्मचारी अपने हाईकोर्ट, जिला न्यायालयों के समकक्षों के साथ समानता की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे

Update: 2021-07-10 14:30 GMT

 देशभर में स्थित उपभोक्ता फोरम/आयोगों के 234 संविदा कर्मचारियों (जो तीसरे पक्ष के अनुबंध के तहत तकनीकी सहायता स्टाफ के रूप में काम कर रहे हैं) ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर कर विभिन्न हाईकोर्ट और जिला न्यायालयों में काम कर रहे अपने समकक्षों के साथ समानता दिए जाने की मांग की है।

याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं की मूल शिकायत यह है कि ''आउटसोर्स व्यवस्था के तहत पूरे भारत में उपभोक्ता फोरम/ आयोगों के साथ काम करने वाले तकनीकी सहायक स्टाफ के साथ अन्य न्यायिक फोरम/आयोगों (जैसे हाईकोर्ट, जिला न्यायालय, एनसीएलटी, एनसीडीआरसी, मानवाधिकार आयोग, एनसीडब्ल्यू आदि) के साथ काम करने वाले कर्मचारियों की तुलना में सौतेला व्यवहार किया जा रहा है।''

यह भी प्रस्तुत किया गया कि भारतीय न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के कार्यान्वयन के लिए अगस्त 2005 की राष्ट्रीय नीति व कार्य योजना और विभिन्न कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार, देशभर के अधिकांश हाईकोर्ट और जिला न्यायालयों ने अपने मौजूदा तकनीकी कर्मचारियों को पूर्ण रूप से नियुक्त कर लिया है। हालांकि, उपभोक्ता फोरम/आयोगों के तकनीकी कर्मचारियों के मामले में,उन्हें साल-दर-साल आधार पर तीसरे पक्ष के ठेकेदारों के माध्यम से काम पर रखा जाता है,जो ठेकेदारों की मर्जी और पसंद के अनुसार किए जाने वाले नवीनीकरण के अधीन हैं।

''वर्तमान याचिकाकर्ता विभिन्न हाईकोर्ट और जिला न्यायालयों द्वारा नियुक्त और नियोजित तकनीकी सहायक कर्मचारियों के समान व्यवहार पाने के इच्छुक हैं और इसलिए, इस माननीय न्यायालय के समक्ष विभिन्न उपभोक्ता अदालतों के सभी तकनीकी सहायता कर्मचारियों के लिए निश्चित कार्यकाल तय करने और उनको निश्चित मुआवजा दिए जाने और तदनुसार दिशानिर्देश तैयार करने की मांग करते हुए यह याचिका दायर कर रहे हैं।''

याचिका में आगे तर्क दिया गया है कि जिला उपभोक्ता आयोगों और राज्य आयोगों के अध्यक्ष के पास राज्य आयोग या राष्ट्रीय आयोग से परामर्श के बाद कर्मचारियों को नियुक्त करने का एकमात्र अधिकार होना चाहिए और आयोगों द्वारा की जा रही सीधी नियुक्तियों में राज्य सरकार के हस्तक्षेप को रोकना चाहिए। 

याचिका में अपने तर्कों के समर्थन में एक तालिका प्रदान की गई है कि हाईकोर्ट के नियमों के अनुसार और यहां तक​कि विभिन्न अन्य अधिकरणों, आयोगों और अन्य न्यायिक निकायों के लिए तकनीकी कर्मचारियों की नियुक्ति जिला न्यायाधीश और संबंधित पीठासीन न्यायाधीश के विवेक के आधार पर होती है, जिसके परिणामस्वरूप, कम से कम जिला न्यायालयों में उन्हें सरकार के पास लंबित अनुमोदन के दौरान कर्मचारियों की कमी का सामना नहीं करना पड़ता है।

उपरोक्त के आलोक में, याचिका में सर्वोच्च न्यायालय की ई-कमेटी की राष्ट्रीय नीति को उपभोक्ता आयोगों में लागू करने और सरकार के कम से कम हस्तक्षेप के साथ इन आयोगों में कर्मचारियों की नियुक्ति के उद्देश्य के लिए गाइड-लाइन तैयार करने के लिए निर्देश दिए जाने की प्रार्थना की गई है।

याचिका में ई-कोर्ट परियोजना की राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना दस्तावेज चरण-1 में निर्धारित दिशानिर्देशों के अनुसार मौजूदा तकनीकी कर्मचारियों/याचिकाकर्ताओं को पूर्ण रूप से नियुक्त करने के लिए निर्देश दिए जाने की भी मांग की गई है।

यह याचिका अधिवक्ता ओम प्रकाश परिहार और दुष्यंत तिवारी द्वारा तैयार व दायर की गई है।

(मामलाः मनदीप सिंह व अन्य बनाम भारत संघ व अन्य)

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