'स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति' की मांग तभी की जा सकती है जब अधिकारी पात्रता मानदंड को पूरा करता हो; इस्तीफा कभी भी हो सकता है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक व्यक्ति अपनी सेवा के दौरान किसी भी समय इस्तीफा दे सकता है, लेकिन वह स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए तभी मांग कर सकता है, जब वह पात्रता मानदंडों को पूरा करता हो।
न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने 'भारत सरकार एवं अन्य बनाम अभिराम वर्मा' मामले में फैसले सुनाते हुए कहा,
"एक व्यक्ति अपनी सेवा के दौरान किसी भी समय इस्तीफा दे सकता है, हालांकि, एक अधिकारी समय से पहले / स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए नहीं कह सकता है जब तक कि वह पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करता है।"
यह मामला भारतीय सेना (सशस्त्र चिकित्सा कोर) में एक अधिकारी की पात्रता से संबंधित है, जिसने पेंशन लाभ के लिए लगभग 8 वर्षों की सेवा के बाद इस्तीफा दे दिया था। सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (एएफटी) ने उन्हें पेंशन लाभ का हकदार ठहराया था, और इसे जम्मू एवं कश्मीर हाईकोर्ट ने भी अनुमोदित किया था। इन फैसलों को चुनौती देते हुए, भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
एएफटी और हाईकोर्ट के अनुसार, अधिकारी ने जो आवेदन दिया था वह "इस्तीफा" कतई नहीं था, बल्कि "स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति" के लिए एक आवेदन था। यह माना गया कि अधिकारी पेंशन विनियमों के नियम 15 के तहत "लेट इंट्रेंट" के रूप में 15 वर्ष की अर्हक सेवा लेते हुए टर्मिनल/पेंशनरी लाभों का हकदार था।
सुप्रीम कोर्ट ने एएफटी और हाई कोर्ट दोनों के निष्कर्षों से असहमति जताई। कोर्ट ने कहा कि "स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति" के उद्देश्य के लिए अर्हक सेवा न्यूनतम 10 वर्ष की सेवा है, जो अधिकारी के पास नहीं थी। साथ ही, अपने पिछले पत्राचार में, उन्होंने उल्लेख किया था कि वह प्रोमोशनल अवसरों की कमी के लिए इस्तीफा दे रहे थे।
यहां तक कि, "इस्तीफा" और "स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति" के बीच अंतर है। एक व्यक्ति अपनी सेवा के दौरान किसी भी समय इस्तीफा दे सकता है, हालांकि, एक अधिकारी समय से पहले/स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए नहीं कह सकता जब तक कि वह पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करता।
निर्णय में 'वरिष्ठ मंडल प्रबंधक, एलआईसी बनाम श्री लाल मीणा (2019)' और 'बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड बनाम घनश्याम चंद शर्मा (2020)' का हवाला दिया गया, जिसमें "इस्तीफा" और "स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति" के बीच अंतर पर चर्चा की गई थी।
न्यायमूर्ति शाह द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया है, ॉ
"जब विधायिका, अपने विवेक में, किसी विशेष तिथि से विशेष नियमों और शर्तों पर पेंशन विनियमों के रूप में कुछ लाभकारी प्रावधानों को सामने लाती है, तो जिन पहलुओं को शामिल नहीं किया जाता है, उन्हें इसमें किसी भी रूप में शामिल नहीं किया जा सकता है। इसलिए, 'इस्तीफा' देने के बाद प्रतिवादी को परिणाम भुगतना ही पड़ेगा है और अब उसे यह कहते हुए 'यू' टर्न लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है कि प्रतिवादी "समय से पहले सेवानिवृत्ति" चाहता था न कि वह इस्तीफा देना चाहता था।"
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि पेंशन विनियमों के अनुसार पेंशन के लिए न्यूनतम अर्हक सेवा 20 वर्ष है।
साथ ही, कोर्ट ने कहा कि नियम 15 के तहत अधिकारी को "लेट इंट्रेंट" नहीं माना जा सकता है।
विनियम 15 के अनुसार, "लेट इंट्रेंट" एक अधिकारी होता है जो कम से कम 15 साल की कमीशन सेवा (वास्तविक) के साथ अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए निर्धारित आयु सीमा तक पहुंचने पर सेवानिवृत्त होता है। चूंकि प्रतिवादी अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिए निर्धारित आयु सीमा तक पहुंचने पर सेवानिवृत्त नहीं हुआ, इसलिए प्रतिवादी को "लेट इंट्रेंट" नहीं कहा जा सकता है।
केंद्र सरकार की अपील स्वीकार करते हुए, न्यायालय ने एएफटी और हाईकोर्ट के निर्णयों को रद्द कर दिया।
मामले का विवरण
केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम अभिराम वर्मा
साइटेशन : एलएल 2021 एससी 531
उपस्थिति: भारत सरकार के लिए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल माधवी दीवान; प्रतिवादी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह
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