'केंद्र सरकार के पास राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल को खत्म करने की शक्ति है': सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल को खत्म करने की पुष्टि की

Update: 2023-03-21 05:46 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार द्वारा 2019 में ओडिशा एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (OAT) को खत्म करने के लिए जारी अधिसूचना को बरकरार रखा।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की खंडपीठ ने ओडिशा एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल बार एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी, जिसमें उड़ीसा हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई, जिसमें OAT को समाप्त करने को बरकरार रखा गया था।

फैसले के निष्कर्ष

सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने फैसले के ऑपरेटिव भाग को पढ़ा। फैसले में कहा गया कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 323ए केंद्र सरकार को राज्य एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल समाप्त करने से नहीं रोकता, क्योंकि यह केवल सक्षम शक्ति है, जो केंद्र सरकार को राज्य सरकार के अनुरोध पर अपने विवेक पर एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल स्थापित करने में सक्षम बनाती है।

एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल स्थापित करने की शक्ति में ट्रिब्यूनल को समाप्त करने की शक्ति भी शामिल है। OAT की स्थापना के बाद केंद्र सरकार कार्यकारी अधिकारी नहीं बनी। अनुच्छेद 323ए के तहत समर्थकारी शक्ति का प्रावधान है, उसको अनिवार्य प्रावधान के रूप में नहीं समझा जा सकता।

न्यायालय ने माना कि 2 अगस्त 2019 की अधिसूचना, जिसने OAT को समाप्त कर दिया, संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं है। न्यायालय ने कहा कि केंद्र सरकार से ट्रिब्यूनल को खत्म करने का अनुरोध करते हुए राज्य सरकार ने किसी भी अप्रासंगिक या बाहरी कारकों पर भरोसा नहीं किया।

ट्रिब्यूनल को खत्म करने का फैसला बेतुका या इतना अनुचित नहीं है कि कोई भी उचित व्यक्ति इसे नहीं लेता।

प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का भी उल्लंघन नहीं किया गया, क्योंकि निर्णय प्रशासनिक शक्ति का प्रयोग है न कि अर्ध-न्यायिक शक्ति का। इसलिए OAT को समाप्त करने के फैसले से प्रभावित व्यक्तियों का वर्ग सुनवाई का हकदार नहीं है।

2 अगस्त 2019 की अधिसूचना वैध है। हालांकि यह भारत के राष्ट्रपति के नाम से व्यक्त नहीं है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 77 का पालन न करने से अधिसूचना अमान्य नहीं होती है।

OAT को समाप्त करना न्याय तक पहुंच के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि OAT के समक्ष लंबित मामले उड़ीसा हाईकोर्ट में होंगे।

OAT के उन्मूलन से पहले न्यायिक प्रभाव मूल्यांकन करने में केंद्र सरकार की विफलता निर्णय को खराब नहीं करती, क्योंकि रोजर मैथ्यू के फैसले में दिशा सामान्य प्रकृति की है और न्यायिक प्रभाव मूल्यांकन का अभाव OAT जैसे विशिष्ट न्यायाधिकरणों के उन्मूलन पर रोक नहीं लगाती।

हालांकि, कोर्ट ने कानून और न्याय मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह रोजर मैथ्यू के फैसले के अनुसार न्यायिक प्रभाव का आकलन करे।

बेंच ने 21 सितंबर, 2022 को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया।

केस टाइटल: उड़ीसा एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ और अन्य। एसएलपी (सी) नंबर 10985/2021

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