हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण संबंधी स्वतः संज्ञान मामले में सुप्रीम कोर्ट 23 सितंबर को सुनाएगा अपना आदेश

Update: 2025-09-16 04:37 GMT

सुप्रीम कोर्ट 23 सितंबर को उस मामले में अपना आदेश सुनाएगा, जिसमें उसने हिमाचल प्रदेश में अनियंत्रित विकास गतिविधियों के कारण उत्पन्न पर्यावरणीय चिंताओं का स्वतः संज्ञान लिया था।

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने राज्य के एडिशनल एडवोकेट जनरल और सीनियर एडवोकेट के. परमेश्वर (एमिक्स क्यूरी) की दलीलें सुनने के बाद इस मामले में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया। जस्टिस मेहता ने संकेत दिया कि न्यायालय केवल हिमाचल प्रदेश ही नहीं, बल्कि पूरे हिमालयी क्षेत्र के बारे में चिंतित है।

जस्टिस नाथ ने राज्य के वकील से कहा,

"हम सब कुछ संक्षेप में प्रस्तुत करने के बाद आपको संक्षिप्त आदेश देंगे ताकि आप विशिष्ट निर्देश प्राप्त कर सकें।"

वकील ने सुनवाई के दौरान राज्य द्वारा उठाए गए कदमों और क्षेत्र की पारिस्थितिकी में आए बदलावों के बारे में बताया।

जस्टिस मेहता ने अंत में यह भी कहा कि पिछली सुनवाई के बाद से बिलासपुर में बादल फटने की एक और घटना हुई।

गौरतलब है कि इस साल पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर समेत भारत के कई राज्य भारी बारिश, बादल फटने और बाढ़ की चपेट में आए। इसके बाद यह चिंता जताई गई कि ये आपदाएं उन इलाकों में पारिस्थितिक परिवर्तनों के कारण थीं, जहां विकास गतिविधियाँ, पेड़ों की कटाई और खनन बड़े पैमाने पर हो रहे थे।

28 अगस्त को जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने चिंता जताई और चेतावनी दी कि अगर हिमाचल प्रदेश में अनियंत्रित विकास जारी रहा, तो "पूरा राज्य देश के नक्शे से गायब हो सकता है"। यह देखते हुए कि ग्रीन टैक्स फंड को असंबंधित उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने से रोकने के लिए उचित निगरानी की आवश्यकता है, खंडपीठ ने कहा कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में पर्यावरणीय क्षरण की कीमत पर राजस्व उत्पन्न करना सरकारों का प्राथमिक उद्देश्य नहीं होना चाहिए।

खंडपीठ ने राज्य सरकार को नोटिस जारी किया और उसे क्षेत्र में बिगड़ती पारिस्थितिक और पर्यावरणीय स्थितियों से निपटने के लिए उठाए गए कदमों का विवरण चार सप्ताह के भीतर प्रस्तुत करने का निर्देश दिया।

इसके बाद यह मामला जस्टिस नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आया।

राज्य की 165 पृष्ठों की रिपोर्ट न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गई, जिस पर विचार करते हुए एमिक्स क्यूरी ने कहा कि इसमें दिए गए कथन विभिन्न पहलुओं को शामिल करते हैं - वृक्षावरण से लेकर खनन, ग्लेशियर आदि। उन्होंने तर्क दिया कि दायरा व्यापक होने के कारण सभी मुद्दों पर एक साथ विचार करना संभव नहीं होगा। यह भी कहा गया कि राज्य की रिपोर्ट में विशिष्ट विवरण का अभाव था और केवल मुद्दों पर विचार करने के लिए एक समिति के गठन का प्रस्ताव था।

Case Title: IN RE: ISSUES RELATING TO ECOLOGY AND ENVIRONMENTAL CONDITIONS PREVAILING IN THE STATE OF HIMACHAL PRADESH Versus, W.P.(C) No. 758/2025

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