सुप्रीम कोर्ट ने नेत्रहीन उम्मीदवारों को सामान्य श्रेणी में आवेदन करने से रोकने वाली उत्तराखंड सरकार की अधिसूचना पर लगाई रोक
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड सरकार की 2018 की उस अधिसूचना पर रोक लगा दी, जिसमें नेत्रहीन, दृष्टिबाधित और गतिबाधित दिव्यांगजनों (जो पहले से ही बेंचमार्क दिव्यांगजनों (PwBD) के तहत आरक्षण से बाहर हैं) को उत्तराखंड न्यायिक सेवा की सामान्य श्रेणी में शामिल होने से प्रतिबंधित किया गया।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि जो व्यक्ति PwBD श्रेणी से बाहर हैं और PwBD श्रेणी से बाहर होने के कारण सामान्य श्रेणी से भी बाहर हैं, 31 अगस्त को सामान्य श्रेणी/SC/ST/OBC में होने वाली प्रारंभिक परीक्षा में शामिल हो सकते हैं।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ नेत्रहीन उम्मीदवार द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उत्तराखंड न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल होने की मांग की गई। उन्होंने उत्तराखंड न्यायिक परीक्षाओं में दिव्यांगजनों (PwBD) कोटे के लिए दृष्टिबाधित और गतिबाधित व्यक्तियों और उत्तराखंड के निवासी न होने वाले व्यक्तियों को पात्र न बनाए जाने को चुनौती दी है। पिछली बार न्यायालय ने उत्तराखंड लोक सेवा आयोग (UKPSC) को नोटिस जारी किया था।
सीनियर एडवोकेट और एमिक्स क्यूरी गौरव अग्रवाल ने कहा कि वर्तमान में उत्तराखंड राज्य और UKPSC इस बात पर सहमत हैं कि सुप्रीम कोर्ट के उस निर्णय का अनुपालन किया जाना चाहिए, जिसमें यह कहा गया था कि दृष्टिबाधित और अल्पदृष्टि वाले उम्मीदवार न्यायिक सेवा के अंतर्गत पदों के लिए चयन प्रक्रिया में भाग लेने के पात्र हैं।
उत्तराखंड राज्य की ओर से एडवोकेट वंशजा शुक्ला और UKPSC की ओर से एडवोकेट आशुतोष कुमार तथा हाईकोर्ट के अधिवक्ता इस पक्ष से सहमत हैं।
निवास के मुद्दे पर न्यायालय ने कहा कि इस मुद्दे पर और विचार किए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि अधिनियम भी है, जो कहता है कि न्यायिक सेवाओं के लिए आवेदन करने हेतु दिव्यांगजनों का उत्तराखंड का निवासी होना आवश्यक है। न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए एडवोकेट से इस पर लिखित दलीलें पेश करने को कहा।
इसके बाद अग्रवाल ने सुझाव दिया कि अगले वर्ष से इन श्रेणियों के व्यक्तियों पर राज्य न्यायिक सेवाओं में शामिल होने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता। उन्होंने आगे कहा कि फिलहाल याचिकाकर्ता सामान्य श्रेणी में ही परीक्षा देगा। उन्होंने यह भी दावा किया कि लिपिक के मामले में कोई उचित व्यवस्था नहीं है। हालांकि, UKPSC के वकील ने बताया कि अगर उम्मीदवार को दिव्यांगजन कोटे से बाहर रखा जाता है तो वह सामान्य श्रेणी के लिए भी आवेदन नहीं कर सकती।
इस पर जस्टिस पारदीवाला ने कहा:
"तो चूंकि वह दिव्यांगजनों के लिए आवेदन करने के योग्य नहीं है तो वह सामान्य श्रेणी में भी आवेदन नहीं कर सकती? यह बेतुका सरकारी आदेश है। हम इसे अभी और यहीं रद्द करते हैं।"
जस्टिस पारदीवाला ने UKPSC से उन उम्मीदवारों को आवेदन करने की अनुमति देने और उन्हें अतिरिक्त समय और लिपिक की सुविधा देने का अनुरोध किया।
इसने आदेश दिया:
"एमिक्स क्यूरी गौरव अग्रवाल, उत्तराखंड राज्य की ओर से उपस्थित एडवोकेट वंशजा शुक्ला, उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के एडवोकेट आशुतोष कुमार शर्मा और उत्तराखंड हाईकोर्ट की ओर से उपस्थित एडवोकेट सुदर्शन सिंह रावत को सुना गया। बहस समाप्त हुई, निर्णय सुरक्षित।
हालांकि, हम 31 अगस्त को होने वाली प्रारंभिक परीक्षा के संबंध में संक्षिप्त आदेश पारित करना चाहेंगे। हमें बताया गया कि वे सभी उम्मीदवार जो शारीरिक रूप से विकलांग श्रेणी के अंतर्गत अर्हता प्राप्त नहीं करते हैं, वे सामान्य श्रेणी में भी आवेदन नहीं कर सकते। उपरोक्त स्थिति राज्य सरकार की 29.9.18 की अधिसूचना के कारण है। उपरोक्त अधिसूचना के मद्देनजर, UKPSC का यह रुख है कि केवल चिन्हित विकलांगता श्रेणियों के उम्मीदवार ही रिक्ति में अधिसूचित अनारक्षित/सामान्य श्रेणी के लिए आवेदन करने के पात्र हैं। इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों और मुख्य निर्णय में दिए गए कारणों को देखते हुए हम 26.9.2018 की इस अधिसूचना के क्रियान्वयन पर रोक लगाते हैं।
हम आगे कहते हैं: यह स्पष्ट किया जाता है कि दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम की अनुसूची के अंतर्गत निर्दिष्ट विकलांगता की श्रेणी में आने वाले सभी अभ्यर्थियों को 31 अगस्त को निर्धारित प्रारंभिक परीक्षा में सामान्य वर्ग/अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों के रूप में बैठने का अवसर दिया जाना चाहिए। इस संबंध में हम निर्देश देते हैं कि उन्हें नियमों के अनुसार एक लेखक और प्रति घंटे 20 मिनट का अतिरिक्त समय प्रदान किया जाएगा।
न्यायालय ने अभ्यर्थियों से कहा कि वे इस शुक्रवार शाम 5 बजे तक ईमेल द्वारा या व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर आवेदन करें।
Case Details: SRAVYA SINDHURI v. UTTARAKHAND PUBLIC SERVICE COMMISSION AND ORS.|W.P.(C) No. 570/2025