सुप्रीम कोर्ट ने भगोड़े मेहुल चोकसी और पत्नी के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला बहाल किया; कहा- गुजरात हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने में गलती की

Update: 2023-12-06 11:34 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में गुजरात हाईकोर्ट के 2017 के फैसले को रद्द कर दिया, जिसने व्यवसायी मेहुल चीनूभाई चोकसी के खिलाफ 2015 में गुजरात पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कर दिया था। जो बाद में भगोड़ा हो गया और पीएनबी ऋण घोटाला मामले के बाद 2017 में भारत छोड़ दिया।

मौजूदा मामले में अहमदाबाद पुलिस ने आपराधिक विश्वासघात, धोखाधड़ी, जालसाजी और आपराधिक साजिश के अपराधों के लिए दिग्विजयसिंह हिम्मतसिंह जाडेजा की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की थी, जिन्होंने आरोप लगाया था कि चोकसी की कंपनी उन्हें 30 करोड़ रुपये (शिकायत की तारीख के अनुसार) सोने की ईंटें लौटाने में विफल रही है और समझौते की शर्तों का उल्लंघन करते हुए उनका दुरुपयोग किया। चोकसी की पत्नी प्रीति को भी आरोपी बनाया गया था।

गुजरात हाईकोर्ट ने इस आधार पर एफआईआर को रद्द कर दिया कि शिकायत ज्यादातर सिविल अनुबंध का उल्लंघन थी और कोई आपराधिक अपराध नहीं बनाया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को यह कहते हुए पलट दिया कि उसने तथ्यात्मक विवादों की गहराई में जाकर आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन किया है।

ज‌स्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा, "यह देखना पर्याप्त है कि हाईकोर्ट को एफआईआर को रद्द करने के लिए विवादित तथ्य की जांच और निष्कर्ष दर्ज नहीं करना चाहिए था।"

कोर्ट ने कहा, "कोई गलती सिविल गलती हो सकती है, या किसी दिए गए मामले में सिविल गलती हो सकती है और समान रूप से एक आपराधिक कृत्य बन सकती है।"

चोकसी ने दलील दी कि गीतांजलि जेम्स लिमिटेड की सहायक कंपनी गीतांजलि ज्वैलरी रिटेल लिमिटेड (जीजेआरएल) पर समझौते बाध्यकारी नहीं थे। दूसरी ओर, अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि ये समझौते वैध और बाध्यकारी हैं।

उपर्युक्त तर्कों पर गौर करने के बाद न्यायालय ने कहा कि ये 'विवादित तथ्यात्मक प्रश्न' हैं।

कोर्ट ने कहा, "हम उक्त पहलुओं की विस्तार से जांच नहीं कर रहे हैं, क्योंकि पहले तथ्यों का पता लगाना होगा, जिसमें जमा राशि की प्रकृति और चरित्र भी शामिल है।"

सुप्रीम कोर्ट ने अंत में आक्षेपित निर्णय के पैरा 49 के संबंध में अपनी आपत्ति व्यक्त की। उसमें, हाईकोर्ट ने कहा था कि एक अन्य अपीलकर्ता की पत्नी होने के नाते प्रीति मेहुल चोकसी को परोक्ष दायित्व के माध्यम से जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा, “जहां तक संबंधित आवेदन के आवेदक का सवाल है, वह कंपनी के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक की पत्नी हैं। फिलहाल मैं यह मान लूं कि प्रथम दृष्टया कंपनी और अन्य आरोपियों के खिलाफ आपराधिक विश्वासघात का मामला बनता है। मेरा विचार है कि पत्नी को परोक्ष दायित्व बांधकर किसी भी तरह से जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए अन्यथा भी, भारतीय दंड संहिता के तहत किसी अपराध के लिए किसी व्यक्ति पर कोई परोक्ष दायित्व तय नहीं किया जा सकता है।''

हालांकि, शीर्ष न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ये टिप्पणियां केवल सामान्य हैं, और जांच के बाद ही प्रतिवादी (प्रीति मेहुल चोकसी) की विशिष्ट भूमिका का पता लगाया जा सकता है।

इस प्रकार, न्यायालय ने विवादित आदेश को रद्द कर दिया और जांच जारी रखने का निर्देश दिया। न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि इस मौजूदा आदेश में उसकी टिप्पणी को मामले की योग्यता के आधार पर नहीं माना जाएगा। इसके अलावा, यह भी दर्ज किया गया कि जांच विवादित और वर्तमान आदेश से प्रभावित हुए बिना जारी रहेगी।

केस टाइटल: दिग्विजयसिंह हिम्मतसिंह जड़ेजा बनाम गुजरात राज्य, डायरी नंबर- 31223 - 2017

साइटेशनः 2023 लाइव लॉ (एससी) 1039

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