सुप्रीम कोर्ट ने MP/MLAs पर दोषसिद्धि के बाद आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग वाली जनहित याचिका दूसरी बेंच को सौंपने से किया इनकार

जस्टिस सूर्यकांत की अगुआई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने MP/MLAs के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे और दोषसिद्धि के बाद उक्त वर्ग के राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की मांग वाली 2016 की जनहित याचिका को दूसरी बेंच को सौंपने से इनकार किया।
जस्टिस कांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच से सीनियर एडवोकेट विजय हंसारिया (एमिक्स क्यूरी के रूप में कार्य कर रहे) ने अनुरोध किया कि मामले को उस बेंच के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए, जिसका हिस्सा जस्टिस सिंह नहीं हैं, जाहिर तौर पर इस कारण से कि उन्होंने और जस्टिस सिंह ने साथ मिलकर काम किया था।
यह देखते हुए कि यदि मामला विरोधात्मक प्रकृति का होता तो बेंच अनुरोध को स्वीकार कर लेती, जस्टिस कांत ने स्थानांतरण से इनकार किया और इस बात पर जोर दिया कि मामला जनहित में है। मामले को अब 8 अप्रैल को सूचीबद्ध किया गया।
संक्षेप में मामला
वर्तमान जनहित याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई, जिसमें निर्वाचित MP/MLAs के खिलाफ आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे के साथ-साथ दोषी MP/MLAs और भ्रष्टाचार या विश्वासघात के लिए सरकारी सेवा से बर्खास्त किए गए व्यक्तियों पर आजीवन कोई भी चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग की गई। याचिकाकर्ता ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती दी, जो दोषी राजनेताओं को जेल की सजा काटने के बाद केवल 6 साल तक चुनाव लड़ने से रोकता है।
2023 में पूर्व सीजेआई डॉ डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने पहली प्रार्थना का निपटारा किया और सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटारे की निगरानी के लिए कई निर्देश जारी किए।
इस साल फरवरी में एमिक्स क्यूरी हंसारिया ने अदालत को सूचित किया कि जनहित याचिका दायर करने के बाद से मामले में कई निर्देश पारित होने के बावजूद, MP/MLAs से संबंधित लगभग 5000 आपराधिक मामले लंबित हैं।
जवाब में जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने कहा कि MP/MLAs मामलों के शीघ्र निपटान का मुद्दा 2023 में निपटाया गया तथा इसकी निगरानी हाईकोर्ट पर छोड़ दी गई। हालांकि, जैसा कि दावा किया गया कि उनके निपटान में लगातार देरी हो रही थी, हाईकोर्ट केवल स्थिति रिपोर्ट मांग रहे थे और मामलों को स्थगित कर रहे थे, पीठ ने उचित पीठ के गठन के लिए इस मुद्दे को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना के समक्ष रखा।
इसने मौखिक रूप से यह भी टिप्पणी की कि राजनीति का अपराधीकरण एक बहुत बड़ा मुद्दा है तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने पर भारत संघ और चुनाव आयोग से जवाब मांगा।
केस टाइटल: अश्विनी कुमार उपाध्याय बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) संख्या 699/2016 (और संबंधित मामला)