"हाईकोर्ट से संपर्क करें", सुप्रीम कोर्ट ने मप्र लव जिहाद कानून को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार किया

Update: 2021-02-19 07:45 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक रिट याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसमें धार्मिक रूपांतरण और अंतर-धार्मिक विवाह से संबंधित मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी।

भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने रिट याचिका पर कहा,

"मप्र हाईकोर्ट से संपर्क करें। हम हाईकोर्ट के विचार देखना चाहेंगे। हमने इसी तरह के मामलों को हाईकोर्ट को वापस भेजा है।"

पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से याचिका वापस लेने को कहा और उच्च न्यायालय में याचिका स्थानांतरित करने की स्वतंत्रता दी। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने पहले ही 30 जनवरी को धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया है।

याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि उत्तर प्रदेश द्वारा 'लव जिहाद' के नाम पर बनाया गया इसी तरह का अध्यादेश (उत्तर प्रदेश निषेध धर्म परिवर्तन अध्यादेश 2020) व्यक्ति की निजता और पसंद की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है, जिससे भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और 21 के तहत मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के इसी प्रकार के अध्यादेश के खिलाफ पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ( पीयूसीएल) द्वारा दायर की गई एक ऐसी ही याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था।

याचिकाओं में पारित उत्तर प्रदेश निषेध धर्म परिवर्तन अध्यादेश 2020 और उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट, 2018 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 'जमीयत उलेमा-ए-हिंद' (इस्लामिक विद्वानों की एक संस्था) को उत्तर प्रदेश निषेध धर्म परिवर्तन अध्यादेश 2020 और उत्तराखंड फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट, 2018 और अन्य राज्यों द्वारा बनाए गए इस प्रकार के कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं में प्रतिवादी के रूप में खुद को जोड़ने की अनुमति दी।

जब अदालत धार्मिक परिवर्तन कानूनों को चुनौती देने वाली दो जनहित याचिकाओं पर विचार कर रही थी, तब वरिष्ठ अधिवक्ता एजाज मकबूल ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद 'द्वारा दायर किए गए हस्तक्षेप आवेदन का उल्लेख किया।

दिल्ली के वकीलों के एक समूह, विशाल ठाकरे, अभयसिंह यादव और प्रणवेश ने भी शीर्ष अदालत के समक्ष इन कानूनों की वैधता को चुनौती दी।

जनहित याचिका में कहा गया कि "लव जिहाद" के नाम पर बनाए गए इन कानूनों को शून्य घोषित किया जाना चाहिए क्योंकि "वे संविधान के बुनियादी ढांचे को बिगाड़ते हैं।" जनहित याचिका में कहा गया है कि "लव जिहाद" के नाम पर बनाए गए इन कानूनों को शून्य घोषित किया जाना चाहिए क्योंकि "वे संविधान की मूल सरंचना को भंग करते हैं।" यह दलील दी गई कि हमारे संविधान ने भारत के नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए हैं जिसमें अल्पसंख्यकों और अन्य पिछड़े समुदायों के अधिकार भी शामिल हैं।

Tags:    

Similar News