सुप्रीम कोर्ट ने तोड़फोड़ पर रोक लगाने के आदेश का उल्लंघन करने का आरोप लगाने वाली याचिका पर विचार से किया इनकार

Update: 2024-10-24 11:52 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन (NFIW) द्वारा दायर जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार किया। उक्त याचिका में कुछ राज्य अधिकारियों द्वारा बिना अनुमति के तोड़फोड़ पर रोक लगाने के कोर्ट के अंतरिम आदेश की अवमानना ​​करने का आरोप लगाया गया था।

जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार किया। पीठ ने यह देखते हुए इनकार कियया कि यह ऐसे पक्ष द्वारा दायर की गई है, जो कथित कृत्यों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं है।

जस्टिस गवई ने मौखिक रूप से टिप्पणी की,

"हम भानुमती का पिटारा नहीं खोलना चाहते।"

आदेश इस प्रकार लिखा गया:

"वर्तमान मामले के तथ्यों और विशेष रूप से वर्तमान आवेदकों के कहने पर, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कथित कृत्यों से संबंधित नहीं हैं, हम वर्तमान याचिका पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं"।

NFIW की ओर से एडवोकेट निजाम पाशा पेश हुए और उन्होंने तर्क दिया कि 1 अक्टूबर से, जब न्यायालय ने बिना पूर्व अनुमति के ध्वस्तीकरण की कार्रवाई पर रोक बढ़ाई थी, उत्तर प्रदेश (कानपुर), उत्तराखंड (हरिद्वार) और राजस्थान (जयपुर) में न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करते हुए 3 घटनाएं हुईं। घटनाओं को कवर करने वाली रिपोर्टों के माध्यम से न्यायालय को बताते हुए पाशा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उत्तर प्रदेश की घटना उस मामले से संबंधित है, जहां रेस्तरां को शाकाहारी भोजन के साथ मांसाहारी भोजन मिलाने के आरोप के बाद ध्वस्त कर दिया गया।

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने प्रस्तुत किया कि NFIW तीसरा पक्ष है, जिसने समाचार पत्रों की रिपोर्टों के आधार पर जनहित याचिका दायर की है। एएसजी ने आगे कहा कि कथित घटना फुटपाथ पर अतिक्रमण हटाने से संबंधित है।

आपत्ति का प्रतिवाद करते हुए पाशा ने कहा कि NFIW केवल न्यायालय के संज्ञान में मामले ला रहा है, जो तथ्यों का स्वतः संज्ञान ले सकता है। उन्होंने आगे NFIW के अधिकार का बचाव करते हुए कहा कि कथित घटनाओं में से दो से प्रभावित व्यक्ति जेल में हैं।

पाशा के तर्क में दम न पाते हुए जस्टिस गवई ने कहा,

"उनके परिवार आ सकते हैं। कोई भी व्यक्ति जो उस स्थान से है, आ सकता है। हम हरिद्वार से आने वाले वादी की जनहित याचिका की सराहना कर सकते हैं, जिसके पास कम से कम कुछ तथ्य तो हैं ही...अन्यथा, केवल समाचार पत्रों की रिपोर्टों के आधार पर हम [भानुमती का पिटारा] खोल देंगे।"

जवाब में वकील ने बताया कि इन दिनों पत्रकारों को कथित घटनाओं जैसी घटनाओं को सार्वजनिक जानकारी में लाने के लिए किस तरह से कष्ट सहना पड़ रहा है।

इससे असंतुष्ट जस्टिस गवई ने जवाब दिया,

"पत्रकारों को न्यायालय के समक्ष आने दीजिए, हम जांच करेंगे।"

इस बिंदु पर पाशा ने आग्रह किया कि पीड़ित लोगों की अक्सर न्यायालय तक पहुंच नहीं होती है। NFIW के "तीसरे पक्ष" होने के आधार पर याचिका को अस्वीकार करना अन्य व्यक्तियों (सीधे तौर पर शामिल नहीं, लेकिन प्रभावित क्षेत्र से संबंधित) के न्यायालय में आने पर प्रतिबंध के रूप में कार्य कर सकता है।

न्यायालयों तक पहुंच न होने के बारे में दलील पर आपत्ति जताते हुए जस्टिस गवई ने कहा,

"ऐसा मत कहिए। कृपया ऐसा मत कहिए। अब हर जगह जनहितैषी नागरिक हैं।"

स्थान के मुद्दे पर न्यायाधीश ने कहा,

"जो लोग उस विध्वंस से पीड़ित हैं, उन्हें न्यायालय के समक्ष आने दीजिए। यदि हमारे आदेशों के बावजूद किसी का ढांचा ध्वस्त किया जाता है तो हम उसका ध्यान रखेंगे। आप सीधे तौर पर प्रभावित नहीं हैं। यदि कोई वास्तव में आता है, तो हम इस पर विचार करेंगे।"

NFIW द्वारा आरोपित 3 घटनाएं

NFIW ने वर्तमान याचिका दायर की, जिसमें 3 अलग-अलग राज्यों में हुई 3 घटनाओं को सामने रखा गया।

याचिका में इनका उल्लेख इस प्रकार किया गया:

- 19.10.2024, हरिद्वार, उत्तराखंड: हरिद्वार जिला प्रशासन ने भारी सुरक्षा के बीच उत्तराखंड के बहादराबाद के मीरपुर गांव में एक मजार (मकबरा) को ध्वस्त कर दिया।

- 20.10.2024, जयपुर, राजस्थान: अधिकारियों ने एक मंदिर की भूमि पर अवैध रूप से निर्मित भवन के एक हिस्से को ध्वस्त कर दिया, कथित तौर पर पिता-पुत्र की जोड़ी द्वारा तीन दिन पहले मंदिर परिसर में शरद पूर्णिमा कार्यक्रम के दौरान 10 आरएसएस कार्यकर्ताओं पर चाकू से हमला करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।

- 21.10.2024, कानपुर, उत्तर प्रदेश: बजरंग दल द्वारा विरोध प्रदर्शन के बाद अधिकारियों ने एक मुस्लिम व्यक्ति के स्वामित्व वाले रेस्तरां को ध्वस्त कर दिया, जिन्होंने इसके मालिक पर अपनी पहचान छिपाने और मांसाहारी भोजन परोसने का आरोप लगाया।

यह दावा किया गया कि राज्य के अधिकारी न्यायालय के निर्देशों से बंधे थे और बिना अनुमति के ध्वस्तीकरण नहीं कर सकते थे।

केस टाइटल: राष्ट्रीय भारतीय महिला महासंघ बनाम राकेश कुमार सिंह और अन्य, डायरी संख्या 49497-2024

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