सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश राज्य को सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए वन भूमि को बदलने की अनुमति दी
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में हिमाचल प्रदेश राज्य को कुछ परियोजनाओं के निर्माण के लिए वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 (एफसीए) के तहत वन भूमि के मोड़ की अनुमति दी।
जस्टिस एलएन राव, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ एक आवेदन पर विचार कर रही थी। इसमें राज्य ने अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 ('एफआरए') के तहत 54 परियोजनाओं के निर्माण के लिए वन भूमि के डायवर्जन के लिए और निर्देश मांगा था।
सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए वन भूमि के मोड़ की अनुमति देते हुए पीठ ने कहा कि यह हिमाचल प्रदेश राज्य द्वारा इस न्यायालय के पूर्व निर्देशों के अनुसार पुनर्वनीकरण के लिए भूमि की पहचान के लिए कदम उठाने के अधीन है।
पीठ ने अपने आदेश में यह भी माना कि सार्वजनिक उद्देश्य के लिए वन भूमि के डायवर्जन की अनुमति के आवेदन की सीईसी द्वारा जांच की गई और सीईसी ने मंजूरी देने के लिए कुछ सिफारिशें की थीं।
पीठ ने आगे नोट किया:
1. सीईसी ने सिफारिश की कि एफआरए के तहत आने वाली परियोजनाओं के संबंध में स्कूलों और अन्य लघु जल निकायों, वर्षा जल संचयन संरचनाओं और औषधालयों को अनुमति दी जा सकती है।
2. एफआरए के तहत उल्लिखित 47 सड़कों के संबंध में पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता एडीएन राव (एमिकस क्यूरी) की इस दलील पर भी विचार किया कि मुख्य सड़कों को जोड़ने वाली कम दूरी की सड़कों के संबंध में मंजूरी दी जा सकती है।
3. कोर्ट ने यह भी नोट किया कि हालांकि 11 मार्च, 2019 को उसने उन मामलों में भी पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी थी, जहां डीएफओएस द्वारा मंजूरी दी गई थी। कोर्ट ने आगे टिप्पणी की कि एफआरए के तहत डीएफओएस द्वारा शक्ति का प्रयोग भविष्य की तारीख में विचार करने के लिए एक बिंदु था।
राज्य को एक हलफनामा दायर करने के निर्देश भी जारी किए गए थे। इसमें पहचान की गई भूमि और पुनर्वनीकरण के लिए कानून के अनुसार उठाए गए कदमों का विवरण दिया गया था।
केस का शीर्षक: IN RE: T.N. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अन्य| रिट याचिका(ओं)(सिविल) संख्या(ओं).202/1995
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