सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए वकीलों के डिजिटल डिवाइस की प्रस्तुति पर निर्देश जारी किए, कहा- मुवक्किलों के दस्तावेज़ BSA की धारा 132 के अंतर्गत नहीं आते
सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों के दस्तावेज़ों और डिजिटल डिवाइस, जिनमें मुवक्किलों की जानकारी हो सकती है, उनकी प्रस्तुति को विनियमित करने के लिए विस्तृत निर्देश जारी किए।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मुवक्किल से संबंधित लेकिन वकील द्वारा रखे गए दस्तावेज़, भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) की धारा 132 के तहत विशेषाधिकार के अंतर्गत नहीं आते, चाहे वे दीवानी या आपराधिक कार्यवाही में हों। हालांकि, ऐसी प्रस्तुति में सख्त प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन किया जाना चाहिए।
आपराधिक मामलों में यदि किसी वकील को मुवक्किल का दस्तावेज़ प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है तो उसे भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 94 के साथ पठित BSA की धारा 165 के तहत अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए, जिससे न्यायिक पर्यवेक्षण सुनिश्चित हो सके। दीवानी कार्यवाही में प्रस्तुति BSA की धारा 165 और सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 16 नियम 7 द्वारा शासित होगी। प्रस्तुत किए जाने पर न्यायालय को प्रस्तुतीकरण या स्वीकार्यता से संबंधित आपत्तियों पर निर्णय देने से पहले वकील और मुवक्किल दोनों की बात सुननी होगी।
महत्वपूर्ण बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल उपकरणों के लिए विशेष सुरक्षा उपाय निर्धारित किए:
1. यदि कोई जांच अधिकारी BNSS की धारा 94 के तहत किसी अधिवक्ता के डिजिटल उपकरण को प्रस्तुत करने का निर्देश देता है तो डिवाइस केवल क्षेत्राधिकार वाली अदालत के समक्ष ही प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
2. कोर्ट को संबंधित मुवक्किल को नोटिस जारी करना होगा और डिवाइस से खोज की अनुमति देने से पहले वकील और मुवक्किल दोनों की बात सुननी होगी।
3. यदि आपत्तियों को खारिज कर दिया जाता है तो डिवाइस की जांच केवल वकील और मुवक्किल की उपस्थिति में की जा सकती है, जो अपनी पसंद के किसी डिजिटल प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ की सहायता ले सकते हैं।
कोर्ट ने आगे निर्देश दिया कि अन्य मुवक्किलों के डेटा की गोपनीयता से समझौता नहीं किया जाना चाहिए। केवल वही जानकारी प्रकट की जा सकती है, जो विशेष रूप से मांगी गई हो और जिसे अदालत द्वारा स्वीकार्य माना गया हो।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने आपराधिक मामलों में वकीलों को जांच अधिकारियों द्वारा समन जारी करने के मुद्दे पर न्यायालय द्वारा स्वतः संज्ञान लेते हुए ये निर्देश पारित किए।
दस्तावेजों और डिजिटल डिवाइस को प्रस्तुत करने के संबंध में पीठ द्वारा दिए गए निर्देश इस प्रकार हैं:
1. मुवक्किल के वकील के कब्जे से प्राप्त दस्तावेजों को प्रस्तुत करना, चाहे वह दीवानी मामला हो या आपराधिक मामला, धारा 132 के तहत विशेषाधिकार के अंतर्गत नहीं आएगा।
2. किसी आपराधिक मामले में कोर्ट या अधिकारी द्वारा निर्देशित दस्तावेज प्रस्तुत करने का अनुपालन, BNSS की धारा 94 के तहत न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करके किया जाएगा, जो BSA की धारा 165 द्वारा भी विनियमित है।
3. किसी दीवानी मामले में दस्तावेज प्रस्तुत करना BSA की धारा 165 और सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 16 नियम 7 द्वारा विनियमित होगा। ऐसे दस्तावेज़ प्रस्तुत किए जाने पर न्यायालय को वकील और उनके द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने वाले पक्षकार की सुनवाई के बाद दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के आदेश और उसकी स्वीकार्यता के संबंध में किसी भी आपत्ति पर निर्णय लेना होगा।
4. यदि किसी जांच अधिकारी द्वारा BNSS की धारा 94 के अंतर्गत डिजिटल डिवाइस को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है तो निर्देश केवल उन्हें क्षेत्राधिकार प्राप्त न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने का होगा।
5. वकील द्वारा न्यायालय के समक्ष डिजिटल डिवाइस प्रस्तुत किए जाने पर न्यायालय उस पक्षकार को नोटिस जारी करेगा, जिसके संबंध में डिजिटल डिवाइस से विवरण प्राप्त करने की मांग की जा रही है। डिजिटल डिवाइस के प्रस्तुतीकरण, उससे प्राप्त जानकारी और उस जानकारी की स्वीकार्यता के संबंध में किसी भी आपत्ति पर पक्षकार और अधिवक्ता की बात सुनेगा।
6. यदि कोर्ट द्वारा आपत्तियों को खारिज कर दिया जाता है तो डिवाइस केवल पक्षकार और वकील की उपस्थिति में ही खोला जाएगा, जिन्हें अपनी पसंद के डिजिटल प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता रखने वाले व्यक्ति की उचित सहायता प्राप्त होगी। डिजिटल डिवाइस की जांच करते समय कोर्ट को इस बात का ध्यान रखना होगा कि वकील के अन्य मुवक्किलों के संबंध में गोपनीयता प्रभावित न हो, और प्रकटीकरण केवल जांच अधिकारी द्वारा मांगी गई जानकारी तक ही सीमित रहेगा, यदि वह अनुमेय और स्वीकार्य पाया जाता है।
कोर्ट ने समन जारी करने के नियमन के लिए भी निर्देश जारी किए, जिसमें आदेश दिया गया कि वकीलों को केवल तभी समन किया जा सकता है, जब मामला BSA की धारा 132 के तहत वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार के अपवादों के अंतर्गत आता हो। साथ ही वकील को समन जारी करने के लिए एसपी के पद से नीचे के सीनियर अधिकारी की पूर्व स्वीकृति आवश्यक है।
Case : In Re : Summoning Advocates Who Give Legal Opinion or Represent Parties During Investigation of Cases and Related Issues | SMW(Cal) 2/2025