न्यायिक हिरासत में कैदी की हत्या के मामले में तिहाड़ के पूर्व उपाधीक्षक को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी
सुप्रीम कोर्ट ने 6 जनवरी को तिहाड़ जेल के पूर्व उपाधीक्षक नरेंद्र मीना को न्यायिक हिरासत में विचाराधीन कैदी, 29 वर्षीय गैंगस्टर अंकित गुज्जर की मौत के आरोपों के संबंध में जमानत दी।
जस्टिस एम.एम. सुंदरेश और जस्टिस राजेश बिंदल की खंडपीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें उन्हें जमानत देने से इनकार किया गया था।
तथ्यों के अनुसार, गुज्जर 4 अगस्त, 2021 को तिहाड़ जेल के अंदर मृत पाया गया। आरोप है कि मीना और अन्य जेल अधिकारियों ने 03 अगस्त, 2021 को अंकित गुज्जर की बेरहमी से पिटाई की थी। उसे कोई मेडिकल सुविधा नहीं दी, जिसके कारण जेल परिसर में उसकी मौत हो गई। यह भी आरोप लगाया गया कि आरोपी व्यक्ति मृतक के रिश्तेदारों से पैसे ऐंठने के लिए उसे परेशान कर रहे थे।
घटना के सिलसिले में डीजीपी ने मीना समेत चार अधिकारियों को निलंबित कर दिया। दो सहायक अधीक्षक और एक वार्डन को निलंबित कर दिया गया। मीना को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 304 और 323 के साथ धारा 34 के तहत आरोप पत्र दाखिल किया गया।
मीना ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) द्वारा मुकदमे में देरी के आधार पर जमानत के लिए दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 26 सितंबर, 2024 को दिल्ली हाईकोर्ट ने अपराध की प्रकृति और गंभीरता और गवाहों को प्रभावित करने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने की संभावना को ध्यान में रखते हुए मीना को जमानत देने से इनकार कर दिया।
गुज्जर की मां द्वारा दायर याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट की एक समन्वय पीठ ने जांच को दिल्ली पुलिस से CBI को स्थानांतरित कर दिया।
हाईकोर्ट के जस्टिस सुधीर कुमार जैन ने कहा कि ऐसा कोई भी साक्ष्य रिकॉर्ड में नहीं है, जिससे यह पता चले कि मुकदमे में देरी, यदि कोई हो, केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) के कारण हुई थी, जिसे सितंबर 2021 में न्यायिक आदेश के माध्यम से जांच स्थानांतरित कर दी गई थी।
हाईकोर्ट ने कहा:
"पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यूटीपी अंकित गुज्जर के शरीर पर कई पूर्व-मृत्यु चोटों को दर्शाया गया। ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश की और समाज के व्यापक हित को आरोपी की स्वतंत्रता पर वरीयता दी जानी चाहिए।"
केस टाइटल: नरेंद्र मीना बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो, डायरी नंबर 45425-2024