सुप्रीम कोर्ट को एशियाई रिसर्फेसिंग' जजमेंट पर संदेह, पांच जजों की बेंच को संदर्भित किया

Update: 2023-12-01 10:04 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने एशियन रिसर्फेसिंग ऑफ रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड निदेशक बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो के मामले में अपने 2018 के फैसले पर संदेह व्यक्त किया। उस फैसले के मुताबिक, हाईकोर्ट और अन्य अदालतों की ओर से दीवानी और फौजदारी मामलों में दिए गए अंतरिम स्‍थगन आदेश छह महीने के बाद स्वतः समाप्त हो जाएंगे, जब तक कि उन आदेशों को विशेष रूप से बढ़ाया नहीं जाता है।

सुप्रीम कोर्ट ने एशियन रिसर्फेसिंग में कहा था कि ट्रायल कोर्ट छह महीने की अवधि समाप्त होने पर, किसी अन्य सूचना की प्रतीक्षा किए बिना कार्यवाही फिर से शुरू कर सकती हैं, जब तक कि रोक बढ़ाने का स्पष्ट आदेश प्रस्तुत नहीं किया जाता है।

यह देखते हुए कि रोक के स्वत: हटने से कुछ मामलों में न्याय को क्षति हो सकती है, चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की तीन जजों की पीठ ने मामले को पुनर्विचार के लिए एक बड़ी पीठ के पास भेज दिया। पीठ ने ऐसा इस तथ्य के मद्देनजर किया कि एशियन रिसर्फेसिंग जजमेंट भी तीन जजों की समन्वय पीठ ने दिया था।

पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट की ओर से दिए गए अपील प्रमाणपत्र के आधार पर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, इलाहाबाद की ओर से दायर एक अपील पर विचार कर रही थी, जिसने एशियन रिसर्फेसिंग फैसले के संबंध में कई संदेह पैदा किए थे। तीन नवंबर को दिए गए अपने फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन जजों की पीठ ने रोक के स्वत: निरस्तीकरण के आदेश के संबंध में सुप्रीम कोर्ट के विचार-विमर्श के लिए दस प्रश्न तैयार किए।

हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह फैसला कई मुश्किलें पैदा कर रहा है। उन्होंने बताया कि एशियन रिसर्फेसिंग में पीठ एक अन्य कानूनी मुद्दे पर विचार कर रही थी और स्‍थगन स्वत: समाप्त होने से संबंधित निर्देश वास्तव में ओबिटर की प्रकृति में था।

सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ ने द्विवेदी की चिंताओं से सहमति व्यक्त की।

पीठ ने आदेश में कहा,

"इसमें कोई दो राय नहीं कि अनिश्चितकालीन प्रकृति के स्‍थगन के कारण सिव‌िल या आपराधिक कार्यवाही अनावश्यक रूप से लंबी हो जाएगी, हालांकि साथ ही, यह भी ध्यान में रखना होगा कि देरी हमेशा शामिल पक्षों के आचरण के कारण नहीं होती है। देरी कार्यवाही को शीघ्रता से आगे बढ़ाने में अदालतों की असमर्थता के कारण भी हो सकती है।''

पीठ ने यह भी कहा कि एशियन रिसर्फेसिंग में, वास्तविक मुद्दा यह था कि क्या आरोप तय करने का आदेश एक अंतरिम आदेश था और क्या हाईकोर्ट के पास आरोप तय करने के आदेश पर रोक लगाने की शक्ति थी। हालांकि, इन मुद्दों का जवाब देते हुए, एशियन रिसर्फेसिंग की पीठ ने सिविल और आपराधिक मुकदमों के संबंध में हाईकोर्ट और अन्य न्यायालयों द्वारा पारित स्थगन आदेशों को स्वचालित रूप से हटाने के संबंध में निर्देश जारी किए।

मामले को पांच जजों की एक बड़ी पीठ के पास भेजते हुए कोर्ट ने भारत के अटॉर्नी जनरल या भारत के सॉलिसिटर जनरल की सहायता का भी अनुरोध किया।

सीजेआई ने कहा कि मामले को जल्द से जल्द सूचीबद्ध किया जाएगा। हाल ही में, जस्टिस बीआर गवई और पीके मिश्रा की पीठ ने मौखिक रूप से कहा था कि एशियन रिसर्फेसिंग फैसला मुश्किलें पैदा कर रहा है।

अगस्त 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि अंतरिम स्थगन आदेशों पर छह महीने की सीमा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर लागू नहीं होगी। कोर्ट ने कहा था कि यदि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया अंतरिम आदेश रद्द नहीं होता है और अपील लंबित होने के कारण 6 महीने की अवधि से अधिक जारी रहता है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि अंतरिम आदेश स्वचालित रूप से रद्द हो जाएगा।

केस टाइटलः हाई कोर्ट बार एसोसिएशन इलाहाबाद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य | Crl A Number 3589/2023

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