सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व Congress MLA की गिरफ्तारी रद्द करने के खिलाफ ED की याचिका खारिज की
सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) खारिज की, जिसमें पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा कथित अवैध खनन और ई-रवाना बिलों के निर्माण से संबंधित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में पूर्व Congress MLA सुरेंद्र पंवार की गिरफ्तारी को रद्द करने के फैसले को चुनौती दी गई था।
जस्टिस अभय एस. ओक और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट के निष्कर्ष केवल गिरफ्तारी की वैधता के मुद्दे को संबोधित करने के लिए दिए गए और धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) की धारा 44 के तहत चल रही शिकायत के गुण-दोष को प्रभावित नहीं करेंगे।
हाईकोर्ट ने ED को जांच के दौरान अनुचित उत्पीड़न को रोकने के लिए उपचारात्मक उपाय करने का भी निर्देश दिया। इसने पूछताछ सत्रों के लिए उचित समय सीमा अपनाने और संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित मानवाधिकार मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने की सिफारिश की।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा -
“प्रतिवादी से संबंधित मामले के तथ्यों में हम हाईकोर्ट के इस निष्कर्ष में हस्तक्षेप करने के लिए इच्छुक नहीं हैं कि प्रतिवादी की गिरफ्तारी अवैध थी। हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निष्कर्ष केवल इस मुद्दे पर निर्णय लेने के उद्देश्य से हैं कि प्रतिवादी की गिरफ्तारी अवैध थी या नहीं। ये निष्कर्ष धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 की धारा 44 के तहत लंबित शिकायत के गुण-दोष को प्रभावित नहीं करेंगे। उपरोक्त अवलोकन के अधीन, विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।”
मामले की पृष्ठभूमि
23 सितंबर, 2023 को पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने लंबी पूछताछ और कथित अपराधों से उन्हें जोड़ने वाली पर्याप्त सामग्री की कमी का हवाला देते हुए ED द्वारा पंवार की गिरफ्तारी को अवैध घोषित किया। धोखाधड़ी का आरोप लगाने वाली आठ FIR के आधार पर दर्ज प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ECIR) के संबंध में हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस उम्मीदवार पंवार से 19 जुलाई, 2023 को 14 घंटे और 40 मिनट तक पूछताछ की गई।
जस्टिस महाबीर सिंह सिंधु ने गिरफ्तारी खारिज करते हुए पूछताछ की अवधि के बारे में चिंता व्यक्त की। कहा कि इस तरह की लंबी पूछताछ व्यक्ति की गरिमा का हनन करती है और संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करती है, जो जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। न्यायालय ने ED से बुनियादी मानवाधिकार सिद्धांतों के अनुरूप निष्पक्ष जांच के लिए तंत्र स्थापित करने का आग्रह किया।
हाईकोर्ट ने कहा कि पंवार का नाम न तो शुरुआती आठ FIR में था और न ही बाद की नौवीं FIR में। इसने देखा कि पंवार के अवैध खनन में शामिल कंपनी के निदेशक होने का ED का दावा समर्थन योग्य नहीं है। कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय से मिली जानकारी से पता चला कि पंवार 7 नवंबर, 2013 से संबंधित कंपनी के निदेशक नहीं रहे।
न्यायालय ने कहा कि आरोपों का आधार "अवैध खनन" PMLA के तहत अनुसूचित अपराध नहीं है। इसके अलावा, ED द्वारा उद्धृत पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत अपराधों को 2023 में संशोधन द्वारा PMLA के तहत अनुसूचित अपराधों की सूची से हटा दिया गया।
अदालत ने पाया कि आज की तारीख में पंवार की अपराध की आय से जुड़ी गतिविधियों में कथित संलिप्तता को प्रमाणित करने के लिए कोई प्रथम दृष्टया सामग्री मौजूद नहीं है। हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि गिरफ्तारी में प्रारंभिक अवैधता को बाद के न्यायिक आदेशों द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता।
केस टाइटल- प्रवर्तन निदेशालय बनाम सुरेन्द्र पंवार