यौन अपराधों का आरोप लगाने वाली महिलाओं की पहचान प्रकाशित करने वाले यूट्यूब चैनलों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने दिया
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राजस्थान राज्य को भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 72 (कुछ अपराधों की पीड़िता की पहचान का खुलासा, आदि) के तहत उचित कदम उठाने का निर्देश दिया। यह निर्देश तब दिया गया, जब उसे बताया गया कि पीड़िता की पहचान, उनके नाम और अदालती कार्यवाही, याचिकाकर्ता द्वारा यूट्यूब चैनलों पर प्रकाशित की गई, जो BNS की धारा 69 (छलपूर्ण तरीकों से यौन संबंध बनाना आदि) के तहत आरोपी है।
BNS की धारा 69 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति धोखे से या बिना इरादे के किसी महिला से शादी करने का वादा करके उसके साथ यौन संबंध बनाता है तो यह अपराध बलात्कार नहीं माना जाएगा, लेकिन इसके लिए 10 साल से अधिक की कैद की सजा हो सकती है। BNS की धारा 72 के अनुसार, यौन अपराधों में पीड़िता की पहचान उजागर करने पर अधिकतम 2 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है।
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की खंडपीठ ने इस संबंध में एक आदेश पारित किया।
प्रतिवादी नंबर 1 - राज्य की ओर से उपस्थित वकील ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि इस न्यायालय की कार्यवाही, जिसमें तथाकथित पीड़ितों की तस्वीरें और उनके नाम शामिल हैं, यूट्यूब चैनलों पर प्रकाशित की जा रही हैं। वास्तव में BNS 2023 (पुरानी भारतीय दंड संहिता, 1860) की धारा 72 इसका पूर्ण उत्तर है। इस पृष्ठभूमि में राज्य या पीड़ित इस संबंध में उचित कदम उठा सकते हैं।
यह मामला याचिकाकर्ता अर्पित नारायणवाल के विरुद्ध तीन अलग-अलग शिकायतकर्ताओं द्वारा शादी का झूठा वादा करने के आरोप से संबंधित है, जिन्होंने इसे रद्द करने के लिए CrPC की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। 3 जून के एक सामान्य आदेश द्वारा तीनों याचिकाओं को खारिज कर दिया गया। व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट पिंकी आनंद ने तर्क दिया कि FIR में लगाए गए आरोप स्पष्ट रूप से इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि कथित पीड़ितों ने याचिकाकर्ता को हनीट्रैप में फंसाने का प्रयास किया और लिव-इन के रूप में स्वैच्छिक संबंधों को शादी का वादा करके यौन शोषण के आरोप का रंग दिया गया।
उन्होंने यह भी कहा कि दोनों FIR में पुलिस ने जांच के बाद CrPC की धारा 173(2) के तहत निगेटिव रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें मजबूत कारण बताए गए और संबंधित पीड़ितों द्वारा शुरू किए गए अभियोजन में स्पष्ट झूठ की ओर इशारा किया गया।
26 जून को जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस पीबी वराले की खंडपीठ ने नोटिस जारी किया और निर्देश दिया कि तीनों FIR में याचिकाकर्ता के विरुद्ध कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी।
31 अक्टूबर को जब मामले की सुनवाई हुई तो प्रतिवादी नंबर 2 (शिकायतकर्ताओं में से एक) व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुई और कहा कि याचिकाकर्ता ने उसे धमकी दी थी। उसने बताया कि उसने संबंधित पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई और यह भी बताया गया कि प्रताप नगर, भीलवाड़ा के थाना प्रभारी सुरजीत ठोलिया भी उसे धमका रहे हैं।
राजस्थान राज्य के वकील ने जवाब में कहा कि यदि आवश्यक हुआ तो सुरक्षा के लिए तत्काल निर्देश दिए जाएंगे।