सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेशों के माध्यम से स्टूडेंट को कोर्ट पूरा करने की अनुमति देने के बाद उसे BAMS डिग्री देने से इनकार करने के लिए हाईकोर्ट की आलोचना की

सुप्रीम कोर्ट ने BAMS (आयुर्वेदिक चिकित्सा एवं शल्य चिकित्सा में स्नातक) के स्टूडेंट को राहत प्रदान की, जिसे इस आधार पर डिग्री देने से इनकार कर दिया गया था कि उसने कोर्स में एडमिशन के समय 10+2 कक्षा में अंग्रेजी का अध्ययन करने की पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं किया था।
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस ए.जी. मसीह की खंडपीठ ने स्टूडेंट को BAMS कोर्स की डिग्री जारी करने का आदेश दिया, जिसमें कहा गया कि एडमिशन के समय उसकी उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में अंग्रेजी विषय के रूप में अध्ययन न करने की प्रारंभिक कमी को बाद में सुधारा गया, जब उसने कॉलेज द्वारा अपेक्षित अंग्रेजी परीक्षा को सफलतापूर्वक उत्तीर्ण किया।
न्यायालय ने आदेश दिया,
"अपीलकर्ता को शासकीय स्वाशाशी धन्वंतरि आयुर्वेदिक चिकित्सा महाविद्यालय, उज्जैन में अपना कोर्स और इंटर्नशिप पूरा करने की अनुमति दी जाएगी। उसके बाद संबंधित अधिकारी उसे उचित प्रक्रिया के अनुसार BAMS की डिग्री जारी करेंगे।"
अपीलकर्ता जैद शेख ने 2008 में BAMS कोर्स में दाखिला लिया था। हालांकि, उसके पहले साल के बाद कॉलेज की मान्यता रद्द कर दी गई। जुलाई, 2012 में उस कॉलेज के स्टूडेंट्स को दूसरे कॉलेज में भेज दिया गया। हालांकि, अपीलकर्ता को यह लाभ इस आधार पर नहीं दिया गया कि वह वास्तव में BAMS डिग्री कोर्स में दाखिला लेने के लिए अयोग्य था, क्योंकि उसने अपनी 10+2 परीक्षा में 'अंग्रेजी' विषय नहीं लिया और न ही पास किया।
इसके बाद उसने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने दिसंबर 2012 में अंतरिम आदेश पारित कर उसे अपना कोर्स जारी रखने की अनुमति दी। इस बीच अपीलकर्ता ने 12वीं की परीक्षा फिर से दी और अंग्रेजी विषय के साथ पास हुआ।
हालांकि, उसने अंतरिम आदेश के तहत अपना BAMS कोर्स पूरा किया, लेकिन हाईकोर्ट ने अंततः उसकी याचिका इस आधार पर खारिज की कि उसका प्रारंभिक प्रवेश पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करता था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपीलकर्ता के छह वर्षों के प्रयास की अनदेखी करने के लिए हाईकोर्ट की आलोचना की, जो उसके अंतरिम आदेश के अनुपालन में उसके कोर्स को पूरा करने और उसके अनिवार्य इंटर्नशिप कार्यक्रम के हिस्से को पूरा करने के लिए किया गया था।
जस्टिस कुमार द्वारा लिखे गए फैसले में "एक्टस क्यूरी नेमिनम ग्रेवबिट" (न्यायालय का कोई भी कार्य किसी के लिए भी पक्षपातपूर्ण नहीं होगा) के सिद्धांत का आह्वान किया गया।
न्यायालय ने कहा,
"हालांकि, 30.10.2012 को हाईकोर्ट द्वारा दिए गए अंतरिम आदेश में दर्ज किया गया कि अपीलकर्ता इक्विटी का दावा करने का हकदार नहीं होगा, लेकिन यह तथ्य कि उसे पूरा कोर्स पूरा करने की अनुमति दी गई और उसने अपनी अनिवार्य इंटर्नशिप का कुछ हिस्सा भी पूरा कर लिया था, उसे हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए था। यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अपीलकर्ता ने तब तक BAMS डिग्री कोर्स करने में लगभग 6 साल लगा दिए और हाईकोर्ट के आदेश का अंतिम परिणाम उन सभी वर्षों की उसकी पूरी मेहनत को बर्बाद करना है। न्यायालय के किसी भी कार्य से सामान्य रूप से किसी को भी पक्षपात नहीं करना चाहिए (एक्टस क्यूरी नेमिनम ग्रेवाबिट)। यह न्याय का मौलिक सिद्धांत है, लेकिन अपीलकर्ता के मामले पर विचार करते समय हाईकोर्ट द्वारा इसकी अवहेलना की गई।"
न्यायालय ने टिप्पणी की,
"यह ध्यान देने योग्य है कि अपीलकर्ता ने तब तक BAMS डिग्री कोर्स करने में लगभग 6 साल लगा दिए और हाईकोर्ट के आदेश का अंतिम परिणाम उन सभी वर्षों की उसकी पूरी मेहनत को बर्बाद करना था। न्यायालय के किसी भी कार्य से सामान्यतः, किसी को भी कोई पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए (एक्टस क्यूरीए नेमिनम ग्रेवबिट)। यह न्याय का मौलिक सिद्धांत है, लेकिन अपीलकर्ता के मामले पर विचार करते समय हाईकोर्ट ने इसकी अवहेलना की। किसी भी स्थिति में अपीलकर्ता की तथाकथित अयोग्यता, जो उसके द्वारा लिए गए कोर्स के संदर्भ में आवश्यक नहीं थी, उसके बाद कॉलेज द्वारा सितंबर, 2012 में उसे कोर्स में अनंतिम रूप से प्रवेश देते समय दी गई स्वतंत्रता के कारण उसके द्वारा ठीक कर दी गई। इन विशिष्ट तथ्यों को देखते हुए हमारा मत है कि यह हस्तक्षेप के लिए एक उपयुक्त मामला है, जिससे अपीलकर्ता को लगभग पूरा कोर्स पूरा करने के बाद भी अकेला न छोड़ा जाए।"
उपर्युक्त के संदर्भ में न्यायालय ने अपील को अनुमति दी।
केस टाइटल: जैद शेख बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य