सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद फैज़ल को सांसद बने रहने की अनुमति दी, आपराधिक मामले में दोषसिद्धि निलंबित की
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (09.10.2023) को 3 अक्टूबर को पारित केरल हाईकोर्ट के हालिया आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें हत्या करने के प्रयास के मामले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अयोग्य लक्षद्वीप सांसद मोहम्मद फैज़ल की सजा को निलंबित करने से इनकार कर दिया गया था।
जस्टिस हृषिकेश रॉय और जस्टिस संजय करोल की खंडपीठ ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट के 22 अगस्त के आदेश, जिसमें कोर्ट ने आदेश दिया कि मामले को हाईकोर्ट में भेजे जाने तक सजा के निलंबन का लाभ जारी रहेगा। इस प्रकार अनुमति दी गई है। मोहम्मद फैज़ल का लक्षद्वीप का प्रतिनिधित्व करने वाला संसद सदस्य (सांसद) के रूप में जारी रहना चालू हो जाएगा। कोर्ट ने फैज़ल की याचिका पर 4 सप्ताह में वापसी योग्य नोटिस भी जारी किया।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,
"इस बीच, हाईकोर्ट के दिनांक 03.10.2023 के आक्षेपित आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी गई। परिणामस्वरूप, इस न्यायालय द्वारा दिनांक 22.08.2023 के रिमांड आदेश में याचिकाकर्ता के पक्ष में पारित अंतरिम आदेश को लागू किया जाता है।"
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने अंतरिम आदेश देने का कड़ा विरोध किया।
फैज़ल की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने दलील दी कि फैज़ल के सांसद चुने जाने के बाद बाद में हत्या के हथियार के रूप में लोहे की रॉड को शामिल करने के लिए एफआईआर को संशोधित किया गया।
उन्होंने कहा,
"वर्षों बाद उनके सांसद बनने के बाद पूरी कहानी बदल जाती है। मैंने इस मामले पर हाईकोर्ट में बहस की, लेकिन इस पर विचार नहीं किया गया। यह कांग्रेस और राकांपा के बीच की लड़ाई है। सभी गवाह कांग्रेस कार्यकर्ता हैं। सत्र न्यायाधीश ने पाया कि कोई भी गवाह नहीं है। स्वतंत्र गवाह.. .उन्होंने सबसे पहले आकर मुझ पर हमला किया और उन्हें दोषी ठहराया गया...''
सिब्बल ने दलील दी कि एफआईआर में याचिकाकर्ता के हाथ में कोई हथियार होने का जिक्र नहीं है। लेकिन बाद में एफआईआर में याचिकाकर्ता के हाथ में हमले के हथियार के रूप में लोहे की रॉड पेश की गई। उन्होंने अदालत को यह भी बताया कि घटना के समय 16.04.2009 को याचिकाकर्ता राजनीतिक कार्यकर्ता था, लेकिन तब से वह 2014 और 2019 में संसद सदस्य के रूप में चुना गया और उसका कार्यकाल मई 2024 में समाप्त होगा। दलील दी गई कि याचिकाकर्ता जिस लक्षद्वीप निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है, उसे बिना प्रतिनिधित्व के जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, यही एक कारण है कि याचिकाकर्ता की सजा पर रोक पर उच्च न्यायालय द्वारा अनुकूल विचार किया जाना चाहिए।
अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए दर्ज किया,
"...हमलावर और घायल प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों से संबंधित हैं और याचिकाकर्ता के समूह पर हमले की एक पूर्व घटना हुई थी, जिसके कारण आदेश पक्ष के हमलावरों को दोषी ठहराया गया।"
03.10.2023 को केरल हाईकोर्ट के फैसले के तुरंत बाद फैज़ल को संसद से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
लोकसभा सचिवालय बुलेटिन में कहा गया,
“माननीय केरल हाईकोर्ट के दिनांक 03.10.2023 के आदेश के मद्देनजर, केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप के लक्षद्वीप संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले लोकसभा सदस्य मोहम्मद फैज़ल पी.पी. को उनकी सजा की तारीख, यानी 11 जनवरी, 2023 से लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित किया जाता है।“
इस साल 11 जनवरी को कवरत्ती सत्र न्यायालय ने फैज़ल और तीन अन्य को 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री पी एम सईद के दामाद मोहम्मद सलीह की हत्या के प्रयास के लिए दर्ज किए गए मामले में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 143, 147, 148, 448, 427, 324, 342, 307 और धारा 506 सपठित धारा 149 के तहत दोषी ठहराया और दस साल की कैद की सजा सुनाई। मोहम्मद फैजल साल 2014 और फिर 2019 में संसद सदस्य चुने गए। सजा के खिलाफ मोहम्मद फैजल और अन्य ने केरल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
शुरुआत में 25 जनवरी को केरल हाईकोर्ट ने फैज़ल की दोषसिद्धि और सजा को निलंबित कर दिया था। दोषसिद्धि के निलंबन के आदेश के खिलाफ केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप और शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त, 2023 के आदेश द्वारा छह सप्ताह की अवधि के भीतर दोषसिद्धि के निलंबन पर पुनर्विचार करने के लिए मामले को वापस हाईकोर्ट में भेज दिया। सुप्रीम कोर्ट ने उप-चुनाव की लागतों पर विचार करने में हाईकोर्ट के दृष्टिकोण की आलोचना की, जो कि दोषसिद्धि को निलंबित नहीं किए जाने पर आवश्यक होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था,
"हमने पाया कि हाईकोर्ट को इस न्यायालय द्वारा दिए गए प्रासंगिक निर्णयों को ध्यान में रखते हुए और कानून के अनुसार सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए दोषसिद्धि को निलंबित करने की मांग करने वाले आवेदन पर उचित परिप्रेक्ष्य में विचार करना चाहिए था।"
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि मामले को हाईकोर्ट में भेजे जाने तक दोषसिद्धि के निलंबन का लाभ जारी रहेगा। इस प्रकार मोहम्मद फैज़ल को लक्षद्वीप का प्रतिनिधित्व करने वाले संसद सदस्य (सांसद) के रूप में बने रहने की अनुमति मिल गई।
इसके बाद 3 अक्टूबर को केरल हाईकोर्ट के जस्टिस एन नागरेश की एकल पीठ ने मामले की नए सिरे से सुनवाई करते हुए उनकी सजा को निलंबित करने से इनकार कर दिया।
हाईकोर्ट ने विचार के दूसरे दौर में अवलोकन किया,
"चुनाव प्रक्रिया का अपराधीकरण हमारी लोकतांत्रिक राजनीति में गंभीर चिंता का विषय है। राजनीतिक अपराधों और चुनाव प्रक्रिया के अपराधीकरण ने स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। विधायी निकायों की बैठक के दौरान भी आपराधिक कृत्यों की घटनाएं सामने आ रही हैं। अपराध का प्रसार यदि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को लोकतांत्रिक प्रणाली का हिस्सा बने रहने की अनुमति दी जाती है तो चुनाव प्रक्रिया भारतीय लोकतंत्र को कमजोर कर सकती है। यदि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को सक्षम न्यायालय द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद भी संसद/विधानमंडल के सदस्यों के रूप में बने रहने की अनुमति दी जाती है। इससे बड़े पैमाने पर जनता में केवल गलत संकेत जाएगा।"
केस टाइटल: मोहम्मद फैज़ल बनाम यू.टी. लक्षद्वीप प्रशासन, एसएलपी (सीआरएल) नंबर 12819/2023