श्रीलंकाई सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया, भारतीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का किया उल्लेख

Update: 2023-05-11 09:55 GMT

भारत में समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर हो रही सुनवाई के बीच पड़ोसी मुल्क श्रीलंका की सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की मांग करने वाले विधेयक को हरी झंडी दे दी है। मंगलवार को श्रीलंकाई संसद के स्पीकर ने यह खुलासा किया।

श्रीलंकाई सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में पुट्टास्वामी (2017) और नवतेज जौहर (2018) के भारतीय सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिए गए ऐतिहासिक फैसलों का हवाला दिया है।

चीफ जस्टिस ऑफ श्रीलंका जयंता जयसूर्या, और जस्टिस विजिथ मललगोडारे और जस्टिस अर्जुन ओबेयेसेकेरे की पीठ ने डिक्रिमिनलाइजेशन बिल के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया। उक्त बिल इसी वर्ष गैजेट किया गया था और संसद में पेश किया गया था।

याचिकाकर्ताओं ने श्रीलंका के संविधान के अनुच्छेद 121(1) का आह्वान किया था, जिसके तहत विधेयकों के संबंध में संवैधानिक अधिकार क्षेत्र की सामान्य प्रैक्टिस का प्रावधान है, यानी यह निर्धारित करने के लिए कि कोई विधेयक या उसका कोई प्रावधान संविधान के साथ असंगत तो नहीं है?

विस्तृत विश्लेषण के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पाया, "यौन अभिविन्यास के बावजूद सहमत वयस्कों के बीच यौन गतिविधि को अपराध की श्रेणी से बाहर करना केवल मानवीय गरिमा को आगे बढ़ाता है और इस प्रकार इसे अपराध नहीं माना जा सकता है।"

पीठ ने अपने फैसले में भारतीय सुप्रीम कोर्ट के नवतेज सिंह जौहर के फैसले सहित कई मामलों का हवाला दिया, जिसमें पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलग-अलग निर्णयों पर विशेष जोर दिया गया था।

तीन-जजों की पीठ ने समलैंगिक और समलैंगिक समानता के लिए राष्ट्रीय गठबंधन बनाम न्याय मंत्री (1998) में पूर्व न्यायाधीश अल्बर्ट लुइस सैक्स के फैसले पर भी भरोसा किया था, जिसमें दक्षिण अफ्रीका की संवैधानिक अदालत ने सहमति से समलैंगिकता को प्रतिबंधित करने वाले कानूनों को रद्द कर दिया था। यह निर्णय, वैसे कई निर्णयों की श्रृंखला में पहला था, जिसने अंततः अफ्रीकी राष्ट्र में विवाह समानता को मान्यता दी।


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